नवरात्रों के दौरान श्रद्धालुओं की सुरक्षा व सुविधा को लेकर जिला प्रशासन द्वारा व्यापक प्रबंध

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना…

  • नवरात्रि की प्रचलित कथाएं

सिद्धि प्राप्ति के लिये नवरात्रों का महत्व

सिद्धि प्राप्ति के लिये नवरात्रों का महत्व

माता के उपवासक प्रतिपदा तिथि में ही स्नान, ध्यानादि से निवृ्त होकर, नौ दिनों के व्रत का संकल्प लेते है। प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद प्रतिदिन ज्योति जलाकर, षोडशोपचार सहित माता की पूजा की जाती है। नवरात्रि के विषय में कई कथाएं प्रचलित है। कथाओं के माध्यम से नवरात्रे के महत्व को समझने का प्रयास करते है।

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रे प्रारम्भ होते है, तथा पूरे नौ दिन रहने के बाद नवमी तिथि को समाप्त होते है। नवरात्रे अर्थात नौ+रात्रियां। प्रत्येक एक वर्ष में दो बार नवरात्रे आते है। इन दोनों नवरात्रों में भी आश्चिन मास के नवरात्रों का विशेष महत्व है।

नवरात्रों के विषय में कई कथाएं प्रचलित है, जिसमें कुछ कथाएं इस प्रकार है:

एक पौराणिक कथा के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को उसके कष्टों से मुक्त किया था। एक बार की बात है, जब महिषासुर राक्षस के आंतक से सभी देवता भयभीत रहते थे। महिषासुर ने भगवान शिव की आराधना करके अद्वितीय शक्तियाम प्राप्त कर ली थी और तीनों देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी उसे हराने में असमर्थ थे। उस समय सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियों को मिलाकर शक्ति दुर्गा को जन्म दिया। अनेक शक्तियों के तेज से जन्मी माता दुर्गा ने महिषासुर का वध कर सबके कष्टों से मुक्त किया।

नवरात्रि के विषय में एक अन्य कथा प्रचलित है:

इसके अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह मां भगवती दुर्गा का परम भक्त था। उसकी एक कन्या थी। ब्राह्मण नियम पूर्वक प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करती थी। सुमति अर्थात ब्राह्मण की बेटी भी प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी। एक दिन सुमति खेलने में व्यस्त होने के कारण भगवती पूजा में शामिल नहीं हो सकी। यह देख उसके पिता को क्रोध आ गया है। और क्रोध वश उसके पिता ने कहा की वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढी से करेगा।

पिता की बाते सुनकर बेटी को बडा दु:ख हुआ, और उसने पिता के द्वारा क्रोध में कही गई बातों को सहर्ष स्वीकार कर लिया। कई बार प्रयास करने से भी भाग्य का लिखा नहीं बदलता है। अपनी बात के अनुसार उसके पिता ने अपनी कन्या का विवाह एक कोढी के साथ कर दिया है। सुमति अपने पति के साथ विवाह कर चली गई। उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन पर रात बडे कष्ट में बितानी पड़ी।

गरीब कन्या की यह दशा देखकर माता भगवती उसके पूर्व पुन्य प्रभाव से प्रकट हुई और सुमति से कहने लगी की “है कन्या मैं तुम पर प्रसन्न हूं” मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं मांगों क्या मांगती हों। इस पर सुमति ने कहा कि आप मेरी किस बात पर प्रसन्न हों, कन्या की यह बात सुनकर देवी कहने लगी की मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुन्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं, तू पूर्व जन्म में भील की स्त्री थी, और पतिव्रता थी।

एक दिन तेरे पति भिल द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तेरे और तेरे पति को भोजन भी नहीं

रामायण में नवरात्रों का वर्णन

रामायण में नवरात्रों का वर्णन

दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इसलिये नौ दिन तक नवरात्र का व्रत किया गया।

है ब्राह्माणी, उन दिनों में जो व्रत हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान दे रही हूँ, कन्या बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न है तो कृ्पा करके मेरे अति के कोढ दुर कर दिजियें। माता के कन्या की यह इच्छा शीघ्र पूरी कर दी। उसके पति का शरीर माता भगवती की कृ्पा से रोगहीन हो गया।

रामायण में नवरात्रों का वर्णन

रामायण के एक प्रसंग के अनुसार भगवान श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान व समस्त वानर सेना द्वारा आश्चिन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिनों तक माता शक्ति की

उपासना कर दशमी तिथि को लंका पर आक्रमण प्राप्त किया था। तभी से नवरात्रों में माता दुर्गा कि पूजा करने की प्रथा चल आ रही है।

नवरात्र साल में मुख्यतः दो बार आते हैं, आश्विन मास में आने वाले नवरात्रों को शारदीय एवं दुर्गा नवरात्रे तथा चैत्र मास में आने वाले नवरात्रे वासंतिक, राम एवं गौरी नवरात्रे कहलाते हैं। नवरात्रि में प्रतिदिन देवी के विभिन्न रूपों का पूजन और उपाय करके माता को प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

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