फीचर
- नीरज वाजपेयी
वर्ष भर चली मुहिम के बाद देश जैसे-जैसे अपने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के सर्वोत्कृष्ट कार्यक्रम के तहत नई ऊँचाइयों को छू रहा है, सफ़ाई तथा स्वच्छता के प्रति आम जागरूकता भी एक ‘’संक्रामक मुस्कान’’ की भॉंति फैल रही है। सफलता की कई कहानियॉं और इसके प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता इस बात का प्रमाण हैं, कि यह परियोजना मात्र कागज़ों में सिमट कर रह जाने वाली नहीं है।
केवल अधिकारिक ही नहीं, बल्कि इस अभियान में शामिल कई सामाजिक संस्थान तथा अन्य निकाय अभियान की रूपरेखा तथा इसकी उपलब्धियों के ढेर सारे ऑंकडें पेश कर रहे हैं। कहते हैं, कि इतने बड़े काम, जिसने कि एक स्वाभाविक गति पकड़ ली है, में ऑंकड़ों का कुछ खास महत्व नहीं होता। अब, अधिक से अधिक लोग और सरकारी तथा ग़ैर-सरकारी संस्थान स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने में जुट गये हैं। शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू का कहना है, कि स्वच्छ भारत अभियान सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहलों में से एक है, लेकिन जहॉं एक ओर अन्य पहलें मॉंग द्वारा प्रेरित हैं, इसका उद्धेश्य स्वच्छता सेवाओं तथा मूल-भूत सुविधाओं के लिये मॉंग पैदा करना है। इसमें लोगों को अभिप्रेरित करना और सही व्यावहारिक रवैया अपनाने की आवश्यकता के प्रति उन्हें सजग करना शामिल है।
स्वच्छ भारत अभियान की वर्षगॉंठ के मौके पर मंत्री ने कहा, कि एक स्वच्छ भारत सभा भी नियोजित की जा रही है। इस वर्ष अगस्त तक प्राप्त हुई रिपोर्टों के आधार पर गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, छत्तीसगढ़, ऑंध्र प्रदेश, राजस्थान तथा हरियाणा ने घरों में शौचालयों के निर्माण की दृष्टि से बेहतर प्रदर्शन किया है। मार्च 2016 तक शहरी क्षेत्रों में 25 लाख घरों में शौचालयों के निर्माण का जो लक्ष्य है, उसमें से 16 लाख 45 हज़ार शौचालय उपयोग किये जाने शुरु हो चुके हैं और 4 लाख 65 हज़ार शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। कुछ प्रमुख शहरों, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार तथा तमिलनाडु शामिल हैं, ने इस दिशा में अभी भी गति नहीं पकड़ी है। इनके अनुसार, केरल तथा तमिलनाडु के साथ-साथ, पॉंच केंद्र शासित प्रदेशों – अंदमान तथा निकोबार द्वीपसमूह, चंडीगढ़, दमन तथा दिउ, दादरा तथा नगर हवेली तथा दिल्ली और चार उत्तर-पूर्वी राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मेघालय तथा त्रिपुरा – में शौचालयों का निर्माण अभी शुरु भी नहीं हुआ है।
कई राज्यों द्वारा इस दिशा में दिखाये जा रहे उत्साह के विषय में नायडू ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक शौचालय के निर्माण के लिये केंद्र द्वारा दी जा रही 4000 रुपये की वित्तीय सहायता के अलावा, 13 राज्य 4000 से लकर 13000 रुपये तक की अतिरिक्त वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करा रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के संबंध में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, मार्च 2016 तक एक लाख टॉयलेट सीटों के निर्माण के लक्ष्य के मुकाबले 94,653 टॉयलेट सीट उपयोग होनी शुरु हो चुकी हैं और 24,233 सीटों का निर्माण शुरु हो चुका है। उन्होंने कहा, कि शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन इस अभियान का सबसे बड़ा हिस्सा है और इस वर्ष अगस्त तक देश के शहरी क्षेत्रों में कुल 78,003 वार्डों में से 31,593 वार्डों में घर-घर से शत-प्रतिशत म्युनिसिपल ठोस कचरा एकत्र किया गया और यह अभियान मार्च 2016 तक घर-घर से 50 प्रतिशत ठोस कचरा एकत्र करने के लक्ष्य को पूरा करने हेतु कार्यरत है। ठोस कचरे की बात करें, तो शहरी क्षेत्रों से प्रति दिन उत्पन्न हो रहे 1,42,580 टन ठोस कचरे के 35 प्रतिशत की प्रोसैसिंग के लक्ष्य के मुकाबले, वर्तमान में 17.34 प्रतिशत की प्रोसैसिंग की जा रही है।
कुछ स्थानीय शहरी निकायों के विषय में नायडू ने कहा, कि गुजरात में सूरत तथा मोर्बी में क्रमश: 6,634 तथा 3,028 व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण का अभियान का लक्ष्य पहले ही पूरा किया जा चुका है। गुजरात में अहमदाबाद तथा महिसागर भी क्रमश: 22,562 तथा 3,028 शौचालयों के निर्माण के लक्ष्य के काफ़ी नज़दीक पहुँच चुके हैं। ठोस कचरा प्रबंधन की दृष्टि से, चंडीगढ़ अच्छे प्रदर्शकों की सूची में सबसे ऊपर है, जहॉं ठोस कचरे की प्रोसैसिंग शत-प्रतिशत हो रही है। 58% के साथ मेघालय दूसरे स्थान पर है और उसके बाद दिल्ली (52%), केरल तथा मणिपुर (50%), तेलंगाना (48%), कर्नाटक (34%) तथा अंदमान एवं निकोबार (30%) हैं। गुजरात में अहमदाबाद (64 वार्ड), सूरत (38 वार्ड), महिसागर (27 वार्ड) तथा मोर्बी (14 वार्ड) और अंदमान तथा निकोबार में 30 वार्डों में ठोस कचरे का शत-प्रतिशत डोर-टु-डोर कलैक्शन दर्ज किया गया है।
शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत 66,009 करोड़ रुपये की लागत पर 1.04 करोड़ व्यक्तिगत शौचालय तथा 5.28 लाख सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालय सीटों का निर्माण और ठोस कचरे का शत-प्रतिशत डोर-टु-डोर कलैक्शन तथा इसका वैज्ञानिक तरीकों से निबटारा करने का लक्ष्य रखा गया है। शहरी विकास मंत्रालय अब तक 30 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को 1.038. 72 करोड़ रुपये जारी कर चुका है। केंद्र शासित प्रदेश – अंदमान तथा निकोबार द्वीपसमूह, चंडीगढ़, दमन तथा दिउ, दादरा तथा नगर हवेली और उत्तर-पूर्वी राज्य – मणिपुर के लिये अब तक कोई धनराशि जारी नहीं की गई है।
इन सबके बीच देश के दूरवर्ती क्षेत्रों में भी चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान सबका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। प्रधान मंत्री से लेकर राज्यों के मुख्य मंत्रियों, स्वयं सेवियों के साथ विभिन्न मंत्रियों ने सबका ध्यान आकर्षित किया, जब स्वयं झाड़ू हाथ में लेकर स्वच्छता के प्रति अपनी कटिबद्धता दिखाते हुये इन्होंने इस अभियान की शुरुआत की। इससे एक ऐसा माहौल तैयार हो गया, कि आलोचकों द्वारा इसे एक नाटक कह कर इसकी निंदा किये जाने के बावज़ूद भी बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ते गये।
केंद्रीय सरकार के कई मंत्रियों ने अपने-अपने कार्यक्रम शुरु कर दिये और इस क्षेत्र में रेल मंत्रालय द्वारा चलाया गया अभियान खासतौर से नज़र में आया – अपनी उपलब्धियों तथा चूकों, दोनों की ही वजह, क्योंकि यात्रियों की उम्मीदें इसे लेकर काफ़ी बढ़ गईं थीं। यह अभियान लगभग रोज़ ही चर्चा का केंद्र बना रहता है। विवाद उपन्न होते हैं, कि डेंगू तथा अन्य वायरल ज्वर उग्रता से हर साल नियमित रूप से हज़ारों-लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले रहे हैं। इनसे प्रभावपूर्ण ढंग से निबटने के लिये सफ़ाई तथा स्वच्छता अभियानों जैसी पहलें और जन-जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाने आवश्यक हैं। यदि स्वच्छ भारत जैसे अभियान न शुरु किये गये होते, तो मानव जीवनों पर इनके प्रभाव की मात्रा और देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर इसके बोझ की कल्पना कीजिये। इन अभियानों पर विवाद रोज़ ही हो रहे हैं, लेकिन यह भी सच है, कि इन्हें व्यवहार में भी रोज़ ही लाया जा रहा है। भारत सरकार की एक प्रमुख पहल, स्वच्छ भारत अभियान का उद्धेश्य वर्ष 2019 तक राष्ट्र को गंदगी तथा खुले में शौच करने की पद्धति से मुक्त करना है। लोगों को इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के विषय में अधिक से अधिक जागरूक करके ही इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है, कि इन रोगों का समाधान स्वच्छ वातावरण है और लोग स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता के प्रति जागरूक हो रहे हैं, इसे सराह रहे हैं। कई जगहों पर रेज़ीडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों ने स्वच्छता अभियान चलाये और स्वयं धन एकत्र करके फॉगिंग मशीनें खरीदी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत वर्ष गॉंधी जयन्ती के दिन यह कार्यक्रम लॉंच किया और 69वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर लाल कि़ले से देश को संबोधित करते हुये, इन्होंने गर्व से इस अभियान की उपलब्धियों की घोषणा की और बताया कि शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है और स्थिति का बहुत निकट से परीक्षण किया जा रहा है। मोदी ने कहा कि टीम भारत – समाज के सभी वर्गों के लोग, चाहे वे सेलेब्रिटी हों, राजदूत हों, सामाजिक कार्यकर्ता हों, शिक्षक हों या सामुदायिक नेता या आध्यात्म गुरु अथवा मीडिया – इन सभी ने आम आदमी को स्वच्छता के संबंध में प्रशिक्षित करने का प्रमुख दायित्व निभाया है, बिना उनकी निंदा किये, बिना उनकी किसी कमी पर उँगली उठाये और इस तरह सभी ने मिलकर स्वच्छ भारत अभियान को सफलता दिलाई है। इन्होंने कहा, कि इस अभियान को सबसे अधिक समर्थन 10 से 15 वर्ष के आयु वर्ग के करोड़ों बच्चों से मिला है और ये ‘’स्वच्छ भारत अभियान’’ के सबसे बड़े एम्बॅसॅडर बने। इन्होंने कहा, कि ये बच्चे अपने माता-पिता को घरों और यहॉं-वहॉं गंदगी फैलाने से रोकते हैं। यदि किसी पिता को गुटके की लत है, तो जैसे ही वह थूकने के लिये कार का शीशा नीचे उतारता है, उसके बच्चे उसे भारत को स्वच्छ रखने का वास्ता देकर थूकने से रोकते हैं। मोदी ने कहा, कि उनका मानना था, जिस देश के बच्चे इतने जागरूक होंगे, स्वच्छता के प्रति इतने अधिक वचनबद्ध होंगे, वो देश निश्चित ही एक स्वच्छ राष्ट्र बन सकेगा। कूड़े और गंदगी के प्रति घृणा निश्चित ही पैदा होगी। वर्ष 2019 में हम राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी की 150वीं जयन्ती मनायेंगे और उस अवसर पर श्रद्धांजलि के रूप में हमें एक स्वच्छ भारत उन्हें सौंपना होगा। राष्ट्रपिता को इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी।
(नीरज वाजपेयी यूएनआई के संयुक्त संपादक हैं)