भारत के अभिप्रेत राष्‍ट्रीय तौर पर निर्धारित योगदान संतुलित एवं व्‍यापक हैं : पर्यावरण मंत्री

  • भारत अपनी जीडीपी उत्‍सर्जनों की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्‍तरों की तुलना में वर्ष 2030 तक 33-35 प्रतिशत तक कम करेगा
  • भारत वर्ष 2030 तक अतिरिक्‍त वन और वृक्ष आवरण के माध्‍यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 के समतुल्‍य अतिरिक्‍त कार्बन ह्रास सृजित करेगा

नई दिल्ली: भारत वैश्‍वि‍क स्‍तर पर सौर गठबंधन का समर्थन करेगा सरकार ने कहा है कि भारत के अभिप्रेत राष्‍ट्रीय तौर पर निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) संतुलित एवं व्‍यापक हैं। आज यहां एक संवाददाता सम्‍मेलन को संबोधि‍त करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भारत एक निम्‍न कार्बन उत्‍सर्जन मार्ग की ओर कार्यरत होने का प्रयास करने के साथ-साथ आज हमारे देश के समक्ष खड़ी सभी विकासात्‍मक चुनौतियों का सामना करने का प्रयास करने का इच्‍छुक है। जावड़ेकर ने कहा कि आईएनडीसी में इसकी सकल घरेलू उत्‍पाद उत्‍सर्जनों की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्‍तरों की तुलना में वर्ष 2030 तक 33-35 प्रतिशत तक कम करना और वर्ष 2030 तक अतिरिक्‍त वन और वृक्ष आवरण के माध्‍यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 के समतुल्‍य अतिरिक्‍त कार्बन ह्रास सृजित करना शामिल हैं। भारत ने कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्‍थित सभी देशों का वैश्‍विक सौर गठबंधन, आईएनएसपीए (अंतर्राष्‍ट्रीय सौर नीति और अनुप्रयोग अभिकरण) का समर्थन करने का भी निर्णय लिया है।

मंत्री ने कहा, ‘सरकार के हालिया निर्णय उसकी अपेक्षाओं में कई गुना अभि‍वृद्धि के साथ-साथ उसके अद्वितीय विज़न को भी दर्शाते हैं।’ उन्‍होंने यह भी कहा कि भारत का योगदान विकास की मौजूदा स्‍थिति में उसके अधि‍कतम महत्‍वाकांक्षी कार्यकलाप को दर्शाता है।

आईएनडीसी स्‍वच्‍छ ऊर्जा, विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता में अभिवृद्धि, कम कार्बन सघनता और सुनम्‍य शहरी केंद्रों के विकास, अपशिष्‍ट से धनार्जन को बढ़ावा देने, सुरक्षित, सुव्‍यवस्‍थित और सतत पर्यावरणीय दृष्‍टि से अनुकूल परिवहन नेटवर्क, प्रदूषण उपशमन तथा वन और वृक्ष आवरण के सृजन के माध्‍यम से कार्बन सिंक में अभिवृद्धि करने में भारत के प्रयासों से संबंधित भारत की नीतियों और कार्यक्रमों पर केंद्रित हैं। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में नागरिकों और निजी क्षेत्र के योगदान को भी ग्रहण करता है। आईएनडीसी प्रस्‍ताव निम्‍नलिखित से संबंधित हैं:-

  • क. सतत जीवनशैली
  • ख. स्‍वच्‍छतर आर्थिक विकास
  • ग. सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) की उत्‍सर्जन सघनता में कमी लाना
  • घ. गैर जीवाश्‍म ईंधन पर आधारित विद्युत के भाग में वृद्धि करना
  • ङ. कार्बन सिंक (वन) में अभिवृद्धि
  • च. अंगीकरण
  • छ. वित्‍त प्रबंधन
  • ज. प्रौद्योगिकी हस्‍तांतरण और क्षमता निर्माण

आईएनडीसी में वर्ष 2020 के पश्‍चात की जलवायु संबंधी कार्रवाईयों की रूपरेखा दी जाएगी जिन्‍हें वे एक नए अंतर्राष्‍ट्रीय करार के अंतर्गत अपनाना चाहते हैं। आईएनडीसी दस्‍तावेज को जलवायु परिवर्तन के दुष्‍प्रभावों से निर्धन और संवेदनशील लोगों की सुरक्षा करने के लिए सतत जीवनशैली तथा जलवायु संबंधी न्‍याय के प्रधानमंत्री के दृष्‍टिकोण को बढ़ाने के उद्देश्‍य से तैयार किया गया है। पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत के आईएनडीसी की तैयारी के लिए एक बहुत ही समावेशी दृष्‍टिकोण अपनाया। इसने प्रमुख मंत्रालयों तथा राज्‍य सरकारों की विशिष्‍ट भागीदारी से अनेक हितधारकों से परामर्श किए। सिविल सोसायटी के संगठनों, विचारकों और विख्‍यात तकनीकी एवं शैक्षिक संस्‍थाओं से भी विचार-विमर्श किए। मंत्रालय ने एक दशकीय अंतराल के साथ वर्ष 2050 तक ग्रीन हाउस गैस उर्त्‍सजनों के अनुमानों के लिए ग्रीन हाउस गैस मॉडलिंग अध्‍ययन प्रारंभ किए थे। इन सभी परामर्शों एवं अध्‍ययनों के सार को भारत के आईएनडीसी को प्रस्‍तुत करने से पूर्व ध्‍यान में रखा गया था। भारत के आईएनडीसी के लिए सरकार ने योगदानों के एक सेट का लक्ष्‍य रखा जो व्‍यापक, संतुलित, समान और व्‍यावहारिक हैं तथा अंगीकरण, उपशमन, वित्‍त, प्रौद्योगिकी हस्‍तांतरण, क्षमता निर्माण और कार्रवाई एवं समर्थन में पारदर्शिता सहित सभी तत्‍वों का समाधान करते हैं।

भारत ने उद्योगों के विभि‍न्‍न क्षेत्रों में स्‍वच्‍छ और नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, ऑटोमोबाइल और परिवहन क्षेत्र में उत्‍सर्जन तीव्रता में कमी लाने, गैर-जीवाश्‍म आधारित विद्युत उत्‍पादन तथा ऊर्जा संरक्षण पर आधारित भवन क्षेत्र हेतु अनेक महत्‍वाकांक्षी उपाय अपनाए हैं। नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर देना, स्‍वच्‍छ ऊर्जा को बढ़ावा देना, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करना, जलवायु अनुकूल शहरी केंद्रों और सतत हरित परिवहन तंत्र का विकास करना, इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के कुछ उपाय हैं।

शहरी परिवहन नीति में व्‍यापक त्‍वरित पारगमन प्रणालियों पर प्रमुख बल देते हुए वाहनों की बजाय लोगों को चलने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाएगा। मौजूदा 236 किमी मेट्रो रेल के अलावा पुणे, अहमदाबाद और लखनऊ सहित नगरों के लिए लगभग 1150 किमी लंबी मेट्रो परियोजनाएं नियोजित की जा रही हैं। कार्बन क्रेडिट अर्जित करने के लिए भारत की प्रथम एमआरटीएस परियोजना बनने वाली दिल्‍ली मेट्रो में वार्षि‍क रूप से लगभग 5.7 लाख टन CO2 को कम करने की संभाव्‍यता है।

निकट भविष्‍य में देश भर में ईंधन मानकों में सुधार लाने के लिए भारत चरण 4 (बीएस4) से भारत चरण 5 (बीएस5) और भारत चरण 6 (बीएस6) में परिवर्तन किए जाने की भी योजना है।

कुल व्‍यवस्‍थि‍त क्षमता में भारत के गैर जीवाश्‍म ईंधन का हिस्‍सा वर्ष 2015 के 30 प्रतिशत से बदलकर वर्ष 2030 तक लगभग 40 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। भारत विश्‍व का सबसे बड़ा नवीकरणीय क्षमता विस्‍तार कार्यक्रम चला रहा है। वर्ष 2002 और 2015 के बीच पवन विद्युत, लघु जल विद्युत, बायोमास विद्युत/सह उत्‍पादन, अपशि‍ष्‍ट से विद्युत और सौर विद्युत सहित स्रोतों के संयोजन से नवीकरणीय ग्रि‍ड क्षमता में 2 प्रतिशत (3.9 जीडब्‍ल्‍यू) से लगभग 13 प्रतिशत (36 जीडब्‍ल्‍यू) अर्थात 6 गुना से भी अधि‍क बढ़ गई है। नियामक शर्तों पर नवीकरणीय ऊर्जा अवस्‍थापित क्षमता से प्राप्‍त CO2 उत्‍सर्जन उपशमन दिनांक 30 जून, 2015 तक प्रति वर्ष 84.92 मिलियन टन CO2 के बराबर था।

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