गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध का उपदेशामृत

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध एक बार अव्वाली ग्राम गए। वहां उनका उपदेश सुनने के लिए हजारों ग्रामीण उपस्थित हुए। ग्राम का एक दरिद्र किंतु कर्मठ कृषक भी उनके पास आया। उसने उन्हें प्रणाम किया। बुद्धदेव का उपदेशामृत पान करने की उसकी बड़ी इच्छा थी किंतु दुर्भाग्यवश उसका एक बैल खो गया था। वह उसी चिंता में था। वह धर्मसंकट में पड़ गया कि वह बुद्धदेव का उपदेश सुने या बैल को ढूंढ़े। अंतत: उसने सर्वप्रथम बैल ढूंढऩे का निश्चय किया और वह वहां से चला गया। संध्या समय बैल मिल जाने पर थका और भूखा-प्यास वह कृषक उसी स्थान से निकला। उसने पुन: बुद्धदेव के चरण छुए। इस बार उसने उनका उपदेश सुनने का ही निश्चय किया। बुद्धदेव ने कुछ क्षण उसके थके-मांदे चेहरे को निहारा, फिर भिक्षुओं से बोले, सर्वप्रथम इसे भोजन कराओ।

उसकी उदर-ज्वाला शांत होने पर बुद्धदेव ने उपस्थित जन-समुदाय को संबोधित किया। कृषक ने एकाग्र मन से उपदेश सुना और वह अपने घर चला गया। उसके चले जाने पर बुद्धदेव ने अपने शिष्यों में इस आशय की कानाफूसी देखी कि उस कृषक के लिए बुद्धदेव ने विलंब कराया। बुद्धदेव तब शांत स्वर में बोले, :भिक्षुक गण, उस कृषक को मेरा उपदेश सुनने की तीव्र इच्छा थी किंतु इससे उसके कार्यों में बाधा आ पड़ती, अत: वह सुबह मजबूर होकर यहां से लौट गया था। वह अपने लोक-कर्म के पालन हेतु सारे दिन भटका और क्षुधित होते हुए भी मेरा उपदेश सुनने चला आया। यदि मैं उस भूखे को उपदेश देने लगता, तो वह उसे ग्रहण न कर पाता। याद रखो, क्षुधा के समान कोई भी सांसारिक व्याधि नहीं। अन्य रोग तो एक बार चिकित्सा करने से शांत हो जाते हैं, किंतु क्षुधा-रोग तो ऐसा है कि उसकी चिकित्सा मनुष्य को प्रतिदिन करनी पड़ती है।

 जीवन में सहनशीलता को अपनाएं….

सहिष्णुता यानी सहनशीलता। सहिष्णु व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं। असहिष्णु को कोई भी पसंद नहीं करता है। सहिष्णु बनना कठिन जरूर है, पर असंभव नहीं। किसी भी प्रकार की तनातनी होने पर हमें चाहिए कि हम सहिष्णुता का परिचय दें। इससे बात नहीं बढ़ेगी तथा वातावरण सामान्य बना रहेगा।

सहिष्णुता का अनुपम उदाहरण : गांधीजी दक्षिण अफ्रीका प्रवास पर थे। एक बार वहां रेल से उतरने के बाद उन्होंने एक तांगा किया। तांगे में कुछ गोरे अंग्रेज व कुछ काले (भारतीय व अफ्रीकन नागरिक) बैठे थे। अंग्रेजों की भेदभाव-नीति यह थी कि वे अपने साथ काले लोगों का बैठना-खाना-पीना पसंद नहीं करते थे, तब भारत व अफ्रीकन देश गुलाम थे। तांगे में जगह न मिलने पर गांधीजी उसमें रखे बॉक्स (पेटी) पर बैठ गए। यह बात अंग्रेजों को नागवार गुजरी और उनमें से एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी को पीटना शुरू कर दिया। गांधीजी काफी देर तक मार खाते रहे, तब दूसरे अंग्रेजों में इंसानियत जागी और उन्होंने गांधीजी को पिटने से बचाया। उन्होंने अंग्रेजों का कोई प्रतिरोध नहीं किया व उन्हें क्षमा कर दिया था। यह गांधीजी की सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है।

चंदन की उदारता का उदाहरण : चंदन का वृक्ष अपने को कुल्हाड़ी द्वारा काटे जाने पर भी कुल्हाड़ी को सुगंधित किए बिना नहीं रहता है। यह चंदन-वृक्ष की उदारता तथा सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है।

इसी प्रकार सज्जन लोग दुष्ट :दुर्जनों द्वारा तकलीफ दिए जाने पर भी उनके प्रति अपनी सज्जनता का परित्याग नहीं करते हैं तथा उन पर अपनी सज्जनता की वर्षा कर देते हैं, क्योंकि सज्जन अपनी सज्जनता तथा दुर्जन अपनी दुर्जनता नहीं छोड़ते हैं। यह सज्जनों की सहिष्णुता ही रहती है जिसे वे सब पर न्यौछावर करते हैं।

सहिष्णुता यानी कमजोरी नहीं : कई लोग सहिष्णुता का अर्थ कमजोरी समझ लेते हैं। यह उनकी गलती ही कही जाएगी। कई लोग ईंट का जवाब पत्थर से देने को आतुर रहते हैं। इससे बात खत्म नहीं होती, बल्कि बढ़ती है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है। खामख्वाह तनाव उत्पन्न होता है व वातावरण में बेवजह की गर्मी व तनातनी व्याप्त हो जाती है। सहिष्णुता के जरिए ही वातावरण को तनावमुक्त कर सामान्य बनाया जा सकता है।

कम खाओ, गम खाओ, नम जाओ : पहले दो शब्दों कम खाओ का अर्थ यह है कि मानव को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु कम खाना चाहिए। कम खाने से व्यक्ति कमजोर नहीं होता है, वरन दीर्घायु को प्राप्त होता है। दूसरे दो शब्दों गम खाओ का अर्थ यह है कि जीवन में कई बार लोग जली-कटी सुना देते हैं व अपने आचरण से दूसरों को दुख देते हैं इससे मानव को दुख होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को चाहिए कि इस गम को पी जाए व भूल जाए। इससे व्यक्ति स्वयं को हल्का महसूस करेगा। तीसरे शब्द नम जाओ का अर्थ यह है कि हमें जीवन में अपने रुख में लचीलापन रखना चाहिए न कि हठीलापन। आपने देखा होगा कि जब आंधी-तूफान आता है तो देवदार के वृक्ष अकडक़र खड़े रहते हैं और उखड़ जाते हैं जबकि नाचीज-सी दिखने वाली घास आंधी-तूफान के बहने की दिशा में झुक जाती है और सही-सलामत बची रहती है। इससे अच्छा नम जाने (सहनशीलता) का उदाहरण भला क्या हो सकता है? यह हम प्रकृति से सीख सकते हैं।

प्रकृति बड़ी उदार व सहिष्णु है : हम अगर प्रकृति की ओर दृष्टिपात करें तो हमें उसकी सहिष्णुता के कई उदाहरण मिल सकते है। जब शीत ऋतु आती है तो उसका मुकाबला करने वाली खाद्य व पेय सामग्री प्रकृति हमारे लिए प्रस्तुत कर देती है, जैसे पिंड खजूर, अदरक आदि। इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु के दौरान भी हमें मौसम का मुकाबला करने वाली चीजें आम, संतरा, गन्ना व फलों का रस आदि की प्राप्ति सुलभ होती है। यह प्रकृति की उदारता व सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है। प्रकृति हमें सब कुछ देती है, पर स्वार्थी मनुष्य इसके मुकाबले में बहुत ही कम लौटाता है। यह प्रवृत्ति उचित नहीं है। हमें भी लेने के बदले में उतना ही देना भी चाहिए ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे व हमें हमारी जरूरत की चीजें मिल सकें।

महिलाओं से सीखें सहिष्णुता : संपूर्ण दुनिया की (खासतौर पर भारतीय) महिलाएं सहिष्णुता का अनुपम उदाहरण हैं। उनका त्याग, सेवा, दयाभाव व परिवार के प्रति समर्पित भाव उनकी सहिष्णुता के कारण ही संभव हो पाता है। हर मौसम को बर्दाश्त करती यह महिलाएं अपने संपूर्ण परिवार को कोई तकलीफ नहीं होने देती हैं तथा जी-जान से अपने कर्मक्षेत्र (घरेलू मोर्चे) पर जुटी रहती हैं।कई बार स्वयं आधा पेट खाकर पति, बच्चों व पूरे परिवार को भोजन कराती हैं। बीमारी, हाथ-पैर दर्द व अन्य तकलीफों के समय भी महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में जुटी रहती हैं। यह उनकी सहिष्णुता का अनुपम उदाहरण है।

बच्चों को भी दें सहिष्णुता की शिक्षा : अगर हम अपने बच्चों को चरित्रवान व सहिष्णु बनाना चाहते हैं तो उन्हें भी यह सिखाना होगा कि सहिष्णुता कमजोरी नहीं, ताकत है। इससे बच्चों के मन में बचपन से ही दया व सहिष्णुता-भाव का संचार होने लगता है। अगर सभी बच्चों को बचपन से ही श्रेष्ठ संस्कार दिए जाएं तो वे देश के श्रेष्ठ नागरिक बन सकते हैं।

कहा भी जाता है कि बच्चों की प्रथम गुरु माता होती है। मां के व्यक्तित्व का बच्चों पर सकारात्मक व नकात्मक दोनों ही प्रभाव पड़ता है। अगर माता बच्चों में सहिष्णुता-सद्चरित्र के गुण भरे तो बच्चा भी तद्नुसार ही आचरण करेगा व समाज के सामने श्रेष्ठ उदाहरण पेश करेगा। इस प्रकार हम सहिष्णु बनकर सहिष्णुता का उदाहरण पेश करें तो समाज में सर्वत्र अमन-चैन का वातावरण छा सकता है व एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सकता है। तो देरी किस बात की? कीजिए आज ही शुरुआत अपने मन व अपने घर से!

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