हिमाचल: किन्नौर में विवाह के रीति-रिवाज व प्रथाएं….

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में विवाह की रस्म भी विचित्र और अनोखी है। किन्नौर में विवाह को जनतुंग अथवा जनकेंगा कहा जाता है। विवाह पर शराब का सेवन आवश्यक होता है। रिश्ता लडक़े के पिता अथवा मामा द्वारा चलाया जाता है। जब लडक़ी चुन ली जाती है तो लडक़े का मामा, चाचा अथवा अन्य कोई संबंधी जिसे ममोमिग कहा जाता है, वह शराब से भरा बर्तन जिसे स्थानील बोली में सुरा या छांग कहा जाता है, लेकर लडक़ी वालों के घर जाता है और लडक़ी के माता-पिता को अपने आने का उददेश्य बताता है। लडक़ी के अभिभावक आपस में विचार-विमर्श करते हैं यदि लडक़ा उपयुक्त न लगे तो लडक़ी की मां बहाना करती है कि लडक़ी से पूछना आवश्यक है। प्रस्ताव स्वीकार न होने पर ममोजिग छांग पिलाए बिना वापिस लौट जाता है। इस प्रकार शादी का प्रस्ताव विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया जाता है।

विवाह-प्रस्ताव स्वीकार होने पर लडक़े के परिवार वालों के माथे पर लगता है मक्खन का टीका

यदि विवाह-प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो संदेशवाहक यानि ममोजिग पांच रूपए लडक़ी के पिता के सामने रख देता है। सुरा की बोतल जिसके ढक्कन पर कुछ मक्खन लगा होता है उसके सम्मुख रख देता है। तब लडक़े के परिवार वालों के माथे पर मक्खन का टीका लगता है और बोला जाता है, थाचे तमेल, जिसका अर्थ होता है भगवान आपको तथा समारोह को सफलता व समृद्धि प्रदान करे। सुरा को खुशी-खुशी पिया जाता है। यह प्रथा कौरयांग कहलाती है। विवाह की तिथि लामा द्वारा निर्धारित की जाती है। लडक़े का मामा या चाचा लडक़ी के घर दो या तीन बार छांग लेकर जाता है। अपनी अंतिम भेंट में वह लडक़ी के माता-पिता को लामा द्वारा निर्धारित विवाह की तिथि के विषय में बताता है।
इसके पश्चात लडक़ी के परिवारजन विवाह के लिए ग्राम देवता की सहमती लेते हैं। इस कार्य के लिए शराब की बोतल, मक्खन व पांच रूपए दक्षिणा रूप में देवता को भेंट करते हैं। देवता की सहमति उसके चेले के माध्यम से होती है।

बारात में दूल्हा नहीं जाता

लडक़ी के घर पहुंचने से पहले बारात को किया जाता है पवित्र

बारातियों के सिर पर जौ के आटे के गोले घुमाने के उपरान्त ही लडक़ी के घर में प्रवेश करती है बारात

विवाह के दिन लडक़े के सारे संबंधी उसके घर पर एकत्रित होते हैं। दुल्हे का पिता लगभग पन्द्रह लोगों को बारात में लेकर लडक़ी के घर चल पड़ता है। सभी अपनी श्रेष्ठ पोशाकों में होते हैं। टोपियों में फूल टांकते हैं। साधारणतया बारात में दूल्हा नहीं जाता परन्तु कहीं-कहीं दूल्हा भी बारात के साथ जाता है। बारात के आगे-आगे गांव का बाजा पार्टी चलती है जिन्हें बजन्तरी कहा जाता है। लडक़ी के घर पहुंचने से पहले बारात को पवित्र किया जाता है ताकि यदि कोई बुरी आत्मा यात्रा अथवा भूत-प्रति उनके साथ न आया हो। एक लामा थाली में तेल से भरे तीन दीए और जौ के आटे के तीन गोले रखकर सभी बारातियों के सिर पर बारी-बारी से घुमाता है और मंत्र भी पढ़ता जाता है। इसके बाद जौ के आटे के गोले दूर फेंक दिए जाते हैं। ढोल बजाए जाते हैं और लामा चिल्लाता जाता है, सर्वभूतप्रेता गच्छ, इसका अर्थ है सभी बुरी आत्माओं दूर चले जाओ। तब बारात लडक़ी के घर में प्रवेश करती है। दुल्हन को पीने को दी जाती है छांग
प्रत्येक बाराती को गेंदे के फूल दिए जाते हैं जिन्हें वह अपनी टोपी में लगा लेते हैं। लडक़ी के संबंधी दूल्हे के सम्बन्धियों के सामने बैठते हैं। सभी को शराब परोसी जाती है। सवाल जवाब के रूप में गाने गाए जाते हैं। नाच चलता है। इसके उपरान्त बारात के दो या तीन लोग दुल्हन के कमरे में जाते हैं। दरवाजे पर वे एक और गीत गाते हैं और उन्हें पीने को छांग दी जाती है। दुल्हन को भी पीने को छांग दी जाती है और दुल्हन के माथे पर मक्खन का टीका लगाते हैं।
अगले दिन बारात बापिस आती है। वापसी में बारात इस प्रकार चलती है। गांव के बजन्तरी सबसे आगे होते हैं और उसके बाद दुल्हे की ओर से आए सारे बाराती होते हैं, उनके पीछे लामा रहता है, फिर दुल्हन उसका पिता और संबंधी होते हैं और सबसे पीछे स्वयं दूल्हा और उसके मित्र होते हैं। किन्नौर के कुछ जगहों पर बारात में दूल्हा नहीं जाता है। बारात अपनी वापिसी यात्रा में यदि किसी नाले को पार करती है तो हर नाले पर एक बकरी को बलि किया जाता है। हालांकि हिमाचल में जहाँ बलि पर प्रतिबन्ध है तो ऐसे में बकरी की बलि नहीं दी जाती।

दुल्हे के गांव पहुंचकर बाराती पहले मंदिर के निकट विश्राम करते हैं। बाद में दुल्हन अपनी सास के पास जाती है और माथा टेकती है और एक रूपए का सिक्का देती है। इस अवसर पर ग्राम देवता की पूजा की जाती है। पहले पूजा के बाद एक बकरे की भी बलि दी जाती थी। देवता को शराब भेंट की जाती है तथा सभी उपस्थित लोगों को शराब बांटी जाती है। नाच गाना और खान-पान होता है।

दुल्हन सभी बारातियों के गलों में डालती है सूखी खुमानी और न्यौजों से बना हार

सामूहिक भोजन के पश्चात दुल्हन सूखी खुमानी और न्यौजों से बना हार सभी बारातियों के गलों में डालती है। विवाह के पश्चात नवबधु जब पहली बार अपने माता-पिता के यहां जाती है तो इसे मैतनगास्मा कहते हैं। दूल्हा-दुल्हन शादी के दस या पन्द्रह दिन के पश्चात दुल्हन के मां-बाप के घर जाते हैं और अपने साथ 10-20 किलो धान अथवा गेहूं का आटा ले जाते हैं जिसे दुल्हन के पिता के संबंधियों में बांटा जाता है। वे वहां लगभग एक सप्ताह तक रहते हैं और कुछ आटा, तेल और मक्खन लेकर वापिस आ जाते हैं।
किन्नौर में जबरन विवाह भी होते हैं। इस प्रथा को हार कहते हैं। लडक़ा-लडक़ी के अभिभावकों की सहमति से या फिर जबरन उठाकर ले जाता है। किन्नौर में हार की प्रथा को डुबडुब या खुची अथवा खुरा किमा कहा जाता है। लडक़ा, लडक़ी की सहमति से या उसके माता-पिता की सहमति से लडक़ी को अगवा कर अपने घर ले जाता है। लडक़े का पिता मध्यस्थ द्वारा लडक़ी वालों से क्षमा याचना करता है, कुछ राशि भेंट करता है और उपहार भेंट के बाद लडक़ी का भाई या पिता लडक़ी को ससुराल छोड़ आते हैं।

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