कोविड-19 महामारी के समय हम किसी को भी पीछे न छोड़ें यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है: डॉ. गुलेरिया
कोविड-19 महामारी के समय हम किसी को भी पीछे न छोड़ें यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है: डॉ. गुलेरिया
बी एस जी वेबिनार ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला
नई दिल्ली : भारत सोका गाक्काई द्वारा बुधवार को आयोजित एक शांति संगोष्ठी में भाग लेते हुए वक्ताओं ने कहा कि एक लम्बे समय तक विश्व को अपनी चपेट में लेने वाली कोविड-19 की छाया दर्शाती है कि वैश्विक सहयोग और एकजुटता अब चयन की नहीं, बल्कि अस्तित्व की बात है। इस वेबिनर से बीएसजी की नई संगोष्ठी श्रृंखला “क्रियाशील संवाद से मानवता का सशक्तिकरण” का शुभारम्भ होता है। “संकट के समय में मूल्य निर्माण” शीर्षक से सोका गाक्काई इंटरनेशनल के अध्यक्ष दाईसाकु इकेदा के 39 वें शांति प्रस्ताव पर आधारित इस संगोष्ठी में बोलते हुए वक्ताओं ने प्रत्येक व्यक्ति एवं वातावरण को सम्मान देने वाले दर्शन की नितांत आवश्यकता पर प्रकाश डाला। वेबिनर में पैनलिस्टों ने सहमति व्यक्त की कि मौजूदा संकट को सहयोग के एक नए युग द्वारा ही हल किया जा सकता है।
इस महामारी के समय में हम किसी को भी पीछे न छोड़ें यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है: डॉ. गुलेरिया
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के निदेशक, पद्मश्री डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि इस महामारी के समय में ‘किसी को भी पीछे न छोड़ें’ की अवधारणा सबसे अधिक प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण है। हमें उन सामाजिक असमानताओं को दूर करने की जरूरत है, जो महामारी के समय और उभर कर सामने आयी हैं । स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा के क्षेत्र की असमानता, जहां कई लोग पीछे रह गए। प्रवासियों की समस्याऐं। महत्वपूर्ण संदेश इस बात पर जोर देना है कि प्रत्येक जीवन मायने रखता है। “हमें वास्तव में सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य में निवेश करने की आवश्यकता है। लोग सिर्फ अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए गरीबी रेखा से नीचे चले गये हैं। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि 1983 से प्रत्येक वर्ष, सोका गाक्काई इंटरनेशनल के अध्यक्ष दाईसाकु इकेदा एक शांति प्रस्ताव लिखते आये हैं, जिसमें वे वैश्विक मुद्दों के संभावित समाधान प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने इसे संयुक्त राष्ट्र के आदर्शों और क्षमता के एक दृढ़ समर्थक के रूप में किया है। बी एस जी, इकेदा के इन विचारों को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष इस तरह की विचार गोष्ठी का आयोजन करती है । इकेदा ने अपने 2029 के प्रस्ताव में कहा,”महामारी से निपटने के हमारे साझा प्रयास इस संकट को पूरी तरह बदलने में मानव एकजुटता की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं। इस बारे में वैश्विक जागरूकता पैदा करने के लिए यह एक आधार के रूप में काम कर सकते हैं। मूल्य निर्माण में शिक्षा की भूमिका की पुनः पुष्टि करते हुए टीच फॉर इंडिया की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुश्री शाहीन मिस्त्री ने कहा, इतिहास में ऐसा समय कभी नहीं रहा जब हमें आज की तरह प्यार से काम करने की जरूरत पड़ी हो। मेरा विश्वास है कि हमारे स्कूल न केवल दयामय शिक्षार्थियों बल्कि एक मानवीय समाज के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।” शांति प्रस्ताव से प्रेरणा लेते हुए इंपल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक और अध्यक्षा सुश्री हसीना खरभिह ने कहा हमें उस बदलाव के प्रति निडर और निष्ठावान होना चाहिए जिसे हम देखना चाहते हैं , विषेशतः संकट के समय” आई क्योर टेकफास्ट के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुजय सांत्रा ने कहा कि महामारी के समय यह स्पष्ट हो गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को और अधिक मजबूत बनाया जाना चाहिए। उन्होंने एक साझा बुनियादी ढांचा बनाने के महत्व पर बल दिया। एक ऐसा ढांचा जहाँ लोग आशा और नई संभावनाओं के साथ स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त कर सकें। बी एस जी अध्यक्ष विशेष गुप्ता ने कहा कि जब हम करुणा की भावना से प्रेरित होकर प्रत्येक जीवन को बहुमूल्य समझेंगे तथा उन लोगों के साथ खड़े होंगे जो असहाय और उपेक्षित हैं और जिन्हें समर्थन एवं सहायता की अत्याधिक आवश्यकता है , मेरा विश्वास है, तब आशा से भरे एक नए युग के द्वार स्वतः ही खुल जायेंगे। बी एस जी निदेशक और बाहरी संबंध प्रमुख सुश्री राशी आहूजा ने वेबिनार में भाग लेने के लिए सभी दर्शकों का आभार व्यक्त किया और जीवन की गरिमा के लिए सम्मान के सिद्धांत पर आधारित समाज की रचना करने की प्रतिबद्धता का आहवान किया । दाईसाकु इकेदा, अध्यक्ष सोका गाक्काई इंटरनेशनल (SGI), एक शांति निर्माता ,दार्शनिक और सफल लेखक हैं। उन्हें दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से लगभग 400 मानद डॉक्टरेट की उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों से अभी तक उन्हें 18 शैक्षणिक सम्मान (जिसमें मानद डॉक्टरेट / प्रोफेसरशिप भी शामिल है), प्राप्त हो चुके हैं। उन्हें सम्मानित करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों में दिल्ली विश्वविद्यालय, रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, विश्व भारती विश्वविद्यालय (शांति निकेतन), हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ,और भारतीदासन विश्वविद्यालय एवं मानव रचना विश्वविद्यालय प्रमुख हैं। शांति के लिए उनके योगदान को स्वीकार करते हुए , उन्हें 800 से अधिक मानद नागरिकता से सम्मानित किया गया है। अनेक उपाधियों एवं प्रशस्तियों के अतिरिक्त उन्हें 1983 में सयुंक्त राष्ट्र शांति पुरस्कार से भी सम्मनित किया गया है।