"गणेशोत्सव"......गणेश जी को संकट हरता क्यूँ कहा गया ?

गणेश चतुर्थी पर गजकेसरी और वैघृति योग: किन राशियों की चमकेगी किस्मत जानें.. : आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

इतिहास

पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।

गजानन, गणपति, लंबोदर ये सभी नाम गणेश जी के सर्वोत्तम है। गणेश जी के ये सारे नाम विघ्न को हरने वाले है। धर्म से संबंधित

शास्त्रों में गणेश चतुर्थी का बहुत महत्व है

शास्त्रों में गणेश चतुर्थी का बहुत महत्व है

कुछ त्योहार हर महीने आते हैं, शिवरात्रि, प्रदोष और गणेश चतुर्थी मुख्य हैं। हर महीने पड़ने वाले त्योहारों मे गणेश चतुर्थी का व्रत मुख्य है। गणेश चतुर्थी पर इस तिथि में खास नक्षत्र में व्रत करने पर सभी मनोकामना पूरी होती है। भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था, इस तिथि को ही गणेश चतुर्थी के रूप मे मनाया जाता है। यह त्योहार भारत में मुख्यतः महाराष्ट्र में मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस तिथि में व्रत करने पर जीवन के सारे विघ्न दूर हो जाते है। यह त्योहार विशाखा नक्षत्र में आने पर इसका महत्व बहुत बढ़ जाता है। इस दिन भगवान गणेश को दुर्वा (घास) और मोदक (लड्डू) का भोग लगाना चाहिए। किसी भी नये काम के शुभारंभ से पहले सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नम: लिखा जाता है। कोई भी पत्र लिखते समय ऊँ या श्रीगणेश का नाम पहले लिखा जाता है। गणेश के नाम स्मरण मात्र से ही सारे काम पूर्ण हो जाते है। इसलिए विनायक के पूजन में विनायको विघ्नराजा-द्वैमातुर गणाधिप स्त्रोत पाठ पढ़ा जाता है।

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