स्वेच्छा से न बनाएं दो फफूंदनाशकों या माईट नाशकों का मिश्रण, स्वीकृत कीट-माईट-रोगनाशक तथा उर्वरकों का उचित मात्रा में करें प्रयोग : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

यह सर्वविदित है कि कृषि-बागवानी में मौसम का अत्याधिक महत्व है। मौसम की बदलती परिस्थितियों में बागवानों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है और हर वर्ष बदलते मौसम के परिदृष्य में बहुधा नवीन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में बागवानों को धैर्य रखना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा स्थिति एक नया मोड़ जो अधिकतर हानिकारक है का सामना करना पड़ता है। अब इसी वर्ष की बात करें तो अप्रैल माह में अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रत्याशित हिमपात देखने को मिला, मई में सामान्य से कम तापमान तथा ओलों व वर्षाजल की प्राप्ति हुई और अब जून के प्रथम पखवाड़े में भी वर्षा व तूफान का सामना करना पड़ रहा है।

  • लंबे समय तक वर्षाजल व तापमान में कमी पौधे व फल के विकास में अवरोधक

सामान्य स्थिति में मई में वर्षा व ओलों का प्रकोप तो देखने में मिलता है परंतु लंबे समय तक वर्षाजल व तापमान में कमी पौधे व फल के विकास में अवरोध पैदा करता है। वर्तमान परिस्थितियों के फलस्वरूप सेब बागीचों में फल का विकास सामान्य से काफी कम हुआ है और फल पकने तथा उतारने के समय में भी 7-10 दिनों की देरी होने की संभावना है।

  • वैज्ञानिक सलाह के बिना किसी भी कीटनाशक व फफूँदनाशक का न करें प्रयोग

मौसम की इन बदली परिस्थितियों में सामान्यत: बागवान धैर्य से काम नहीं लेते और बिना किसी वैज्ञानिक सलाह के अनेक कार्य जो कीटनाशक व फफूंदनाशक विक्रय केंद्रो या दुकान से या फिर स्वयं ऐसे छिडक़ाव पौधों पर करते हैं जो अनावश्यक तथा विवेकहीन होते हैं। ऐसे कार्य से अधिकतर नई समस्या पनप जाती है और अधिक हानि का सामना करते हैं। उदाहरण के लिए कई माईटीसाईड को अपनी मनमर्जी से मिलाना, फफूंदनाशकों के कई ब्रांड का मिश्रण स्वेच्छा से बनाना, पोषक तत्वों, फफूंदनाशकों व माईटी साईड का संयुक्त मिश्रण बनाकर छिडक़ना इत्यादि है। ऐसे छिडक़ाव पौधों में कई विकार पैदा करते हैं और स्वयं हानि का सामना करते हैं।

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  • पानी की मात्रा अधिक होगी तो प्रयोग किए गए पोषक तत्व, कीटनाशी या फफूंदनाशी या माईटनाशक का उचित नियंत्रण व लाभ नहीं मिलेगा

यदि इस ड्रम को पूरा पानी से भरें तो इसमें 235 लीटर पानी आता है , 200 लीटर पानी का चिन्ह लाइन मैं नीचे दर्शाया गया है ।

यदि इस ड्रम को पूरा पानी से भरें तो इसमें 235 लीटर पानी आता है , 200 लीटर पानी का चिन्ह लाइन मैं नीचे दर्शाया गया है

यह भी देखा गया है कि अधिकतर बागवानों में पानी की मात्रा को ड्रम से मापा ही नहीं है और वह इसे 200 लिटर ही मान लेते हैं जबकि वस्तुत: स्थिति बिल्कुल भिन्न है, बागवानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले ड्रम में पानी 226 लिटर से 265 लिटर तक आ जाता है वह इस बात पर निर्भर करता है कि ड्रम का आकार कितना है। किसी भी ड्रम में पूरा 200 लिटर पानी नहीं आता और अधिकतर यह बहुत मात्रा में ही होता है। यदि पानी की मात्रा अधिक होगी तो प्रयोग किए गए पोषक तत्व, कीटनाशी या फफूंदनाशी या माईटनाशक का उचित नियंत्रण व लाभ नहीं मिलेगा और वह रोग व नाशिजीव पूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं हो पाएगा और बागीचों में निरन्तर कई वर्षों तक हानि पहुंचाता रहेगा तथा नियंत्रण का खर्चा भी वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता ही जाएगा। इसलिए सबसे पहला काम बागीचों में छिडक़ाव के लिए प्रयोग में लाने वाले ड्रम को 200 लिटर पानी से भरकर माप लें तथा ड्रम की अन्दर व बाहर की ओर पक्का चिन्हित करें जिससे सभी छिडक़ाव में प्रयोग रसायन का सम्पूर्ण लाभ मिल सकें।

  • औद्यानिकी विश्वविद्यालय सोलन द्वारा प्रमाणित रसायन का ही स्वीकृत मात्रा में प्रयोग करें

  • किसी भी अस्वीकृत रसायन या कीटनाशी व फफूंदनाशी का प्रयोग न करें

औद्यानिकी विश्वविद्यालय सोलन द्वारा प्रमाणित व सिफारिश किए गए उर्वरक, पोषक तत्व, कीट-माईटनाशक, फफूंदनाशक या अन्य रसायन का ही स्वीकृत मात्रा में प्रयोग करें। किसी अन्य एजेंसी या व्यक्ति द्वारा दी गई सिफारिशों की अनदेखी करें। किसी भी अस्वीकृत रसायन या कीटनाशी व फफूंदनाशी का प्रयोग न करें, इनके प्रयोग से समस्या का समाधान नहीं हो पाता अपितु समस्या बढ़ती है और निरन्तर रसायनों का प्रयोग करना पड़ता है जिसके कारण न केवल व्यय अधिक होता है, पौधों की आयु स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है और पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। अत: इस विधि को सर्वप्रथम अपनाएं, इससे बागीचों की समस्या में कमी आएगी।

  • फलों की पर्याप्त वृद्धि व पौधों के सतत विकास के लिए तौलिए को साफ रखें

  • पौधों में समर प्रूनिंग निरन्तर करते रहें

फलों की पर्याप्त वृद्धि व पौधों के सतत विकास के लिए तौलिए को घास-फूस निकाल कर साफ रखें। इस समय सेब बागीचों में स्कैब, पूर्वपत्ती झडऩ रोग, रैड माईट, अल्टरनेरिया ब्लाच, सैजोस स्केल तथा वूली एफिड के प्रकोप का खतरा रहता है।
इन समस्याओं के समाधान हेतु पौधों में समर प्रूनिंग निरन्तर करते रहें। समर प्रूनिंग से यह अभिप्राय है कि इसी वर्ष में पैदा हुई कोमल टहनियां या नया विकास जो सही दिशा में नहीं जा रहा है या सीधा आकाश की ओर जा रहा है उसे तुरन्त हटा दें। इस घाव में किसी पेस्ट या उपचार की आवश्यक्ता नहीं है। यह कार्य तने के आसपास व मुख्य शाखाओं में करना आवश्यक है। इससे पौधे के भीतरी भाग में न केवल प्रकाश का संचार होगा अपितु हवा का भी आदान-प्रदान संभव हो पाएगा। जिसके कारण स्कैब, पूर्ववती झडऩ रोग, रैड माईट के प्रकोप में अभूतपूर्व कमी होगी। फलों में विकास व समय आने पर प्राकृतिक रंग तथा गुणवत्ता बढ़ेगी। अवांछित विकास को फल उत्पादन व गुणवत्ता में प्रयोग किया जा सकेगा। जहां भी पौधों में अधिक विकास दिखाई दे उसे कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है और सर्दियों में की जाने वाली कांट-छांट में भी 40-50 प्रतिशत कमी की जा सकती है। जब भी बागवान सेब बागीचे में जाए तो यह सुनिश्चित कर ले कि उसके हाथ में स्केचर अवश्य हो।

  • दो फफूंदनाशकों या माईट नाशकों का मिश्रण स्वेच्छा से न बनाएं

  • स्वीकृत कीट-माईट-रोगनाशक तथा उर्वरकों का उचित मात्रा में प्रयोग करें

स्कैब व पूर्व पत्ती झडऩ रोग का प्रकोप सेब बागीचों में न हो इसके लिए परमार विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत छिडक़ाव सारिणी का ही प्रयोग करें। बागवान अपनी ओर से किसी अस्वीकृत फफूंदनाशकों का प्रयोग किसी भी सूरत में न करें और न ही किन्ही दो फफूंदनाशकों या माईट नाशकों का मिश्रण स्वेच्छा से न बनाएं। ऐसे मिश्रण न केवल नई समस्या विशेषकर रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम करती है अपितु इन रसायनों के असर को भी कम कर देती है इसके साथ-साथ रसटिंग व पत्तियां जलने की समस्या को भी बढ़ा देती है। पत्तियां व फल झडऩे की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। अत: केवल बागवानी विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित व स्वीकृत कीट-माईट-रोगनाशक तथा उर्वरकों का उचित मात्रा में प्रयोग करें।

स्कैब रोग के लक्षण

स्कैब रोग के लक्षण

  • आवश्यकता से अधिक फफूंदनाशक या कीटनाशक की मात्रा का प्रयोग समस्या बढ़ाता है

  • रसायनों का सीमित मात्रा में प्रयोग कीट-माईट रोग को नियंत्रण रखने में सहायक

यदि वर्षा का क्रम निरन्तर जारी रहे तो फफूंदनाशकों को 15-18 दिनों के अन्तराल पर प्रयोग करें और यदि मौसम साफ रहे तो इन्हें 21-25 दिनों के अन्तराल पर प्रयोग किया जा सकता है। आवश्यकता से अधिक फफूंदनाशक या कीटनाशक की मात्रा का प्रयोग भी रोग, कीट, माईट की समस्या को बढ़ाने में सहायक है, अत: इस प्रकार के प्रयोग न करें।
समस्या पर आधारित रसायनों का सीमित मात्रा में प्रयोग कीट-माईट रोग को नियंत्रण रखने में सहायता करता है। समस्या आने पर केवल वैज्ञानिक सलाह लेकर ही रसायनों का प्रयोग करें।

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