शोघी के समीप तारा देवी मन्दिर
शिमला के निकट बना ऐतिहासिक तारादेवी मन्दिर देश के ऐसे स्थलों में शामिल है जिसे भारत के देवी स्थानों में अत्यन्त महत्व प्राप्त है। तारा देवी मंदिर शोघी और शिमला के बीच तारा देवी पर्वत पर स्थित है। तारा देवी मन्दिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 कि.मी. की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत या पहाड़ पर बना हुआ है। तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी तारा का काफी महत्व है, जिन्हें देवी दुर्गा की नौ बहनों में से नौवीं कहा गया है। जिन्हे देवी दुर्गा की नौ बहनों में से एक बहन माना जाता है। यह मंदिर लगभग 25० साल पुराना है जिसकी स्थापना पश्चिम बंगाल के राजा सेन वंश ने करवाई
थी। मंदिर में देवी की प्रतिमा लकड़ी की बनी हुई है। शरद नवरात्रि को यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। ढाई सौ वर्ष पुराने इस मंदिर में तारा देवी की लकड़ी से बनी प्रतिमा बहुत सुन्दर और आकर्षित करने वाली है। यहाँ हर साल शारदीय नवरात्र पर अष्टमी
के दिन मां तारा की पूजा की जाती है। साथ ही मेले का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें कुश्ती अहम हिस्सा है। मन्दिर से शोघी का ख़ूबसूरत नजारा देखने लायक होता है। प्रत्येक वर्ष भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। तारा देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है एवं हिमाचल प्रदेश सहित देश के श्रद्धालु एवं पर्यटक नवरात्रों में विशेष तौर पर दर्शनों के लिए मां के दरबार में पहुँचते हैं। नवरात्रों के मौके पर मां भगवती का पाठ एवं भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। शिमला की जनता का मां तारा देवी पर गहरा विश्वास है। नवरात्रों में काफ़ी संख्या में भक्तजन मां के दर्शन कर मां का आशीर्वाद पाते हैं।
प्राचीन कथा कुछ यूँ भी है….
ऐसा माना जाता है कि तारा देवी मां क्योंथल रियासत के राजपरिवार की कुलदेवी थीं। क्योंथल रियासत का राजपरिवार सेन वंश का है।
एक कथा के अनुसार- राजा भूपेंद्र सेन जुनबा से गाँव जुग्गर शिलगाँव के जंगल में आखेट करने निकले, जहाँ पर मां भगवती तारा के सिंह की गर्जना झाडिय़ों से राजा को सुनाई दी। फिर थोड़ी देर के बाद एक स्त्री की आवाज गूंजी- राजन! मैं तुम्हारी कुलदेवी हूँ, जिसे तुम्हारे पूर्वज बंगाल में ही भूल से छोडक़र आए थे। राजन! तुम यहीं मेरा मंदिर बनवाकर मेरी तारा मूर्ति स्थापित करो। मैं तुम्हारे कुल एवं पूजा की रक्षा करूंगी। राजा ने तत्काल ही गाँव जुग्गर में दृष्टांत वाली जगह पर मंदिर बनवाकर एवं चतुर्भुजा तारा मूर्ति बनवाकर विधिवत प्रतिष्ठा करवा दी, जिससे यह तारा देवी का उत्तर भारत का मूल स्थान बन गया। तारा भगवती के विपुल एवं रोमांचक तेज के आगे असावधानी होने से भी देवी कुपित हो जाती हैं। तारा देवी का मन्दिर मूल स्थान जुग्गर में काफी पहले खण्डहर बन चुका था, जिसके पत्थर अवशेष मात्र ही शेष थे। नव मंदिर का निर्माण कार्य जयशिव सिंह चंदेल सहित अन्य श्रद्धालुओं ने तैयार करवाया।
तारा देवी माँ