कामगारों को राशन आपूर्ति की उचित व्यवस्था हो सुनिश्चित : उपायुक्त डीसी राणा

सलूणी उपमंडल के कुछ क्षेत्रों में पैदा होने वाली मक्की को मिलेगा भौगोलिक सूचक यानी (जीआई टैग) : उपायुक्त डीसी राणा

  • पंजीकरण के लिए मामला रजिस्ट्रार भौगोलिक सूचक चेन्नई को प्रेषित: उपायुक्त

  • भांदल पंचायत को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से मिल चुका है पादप जीनोम संरक्षक सामुदायिक पुरस्कार

  • स्वाद और गुणवत्ता के लिहाज से लाजवाब है मक्की की पारंपरिक किस्में

  • हच्छी कुकड़ी, रत्ती और चिटकु मक्की की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है चम्बा जिला का ये इलाका

चम्बा: भौगोलिक संपदा और नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर स्यूल नदी के दोनों किनारों पर फैली सलूणी घाटी को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल्द एक नई पहचान मिलने वाली है। मक्की की पारंपरिक किस्मों की खेती के जरिए आज के इस दौर में भी उनका संरक्षण करने वाले किसानों के संघ ‘सलूणी सफेद मक्का संगठन’ की सोच और प्रयासों के साथ जिला प्रशासन के सहयोग से अब स्वाद और गुणवत्ता से भरपूर मक्की की पारंपरिक किस्मों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग यानी भौगोलिक सूचक पंजीकरण मिलने की उम्मीद पूरी होने वाली है।163047372_1135290973608648_5678787240639511311_n

जिला के उपायुक्त डीसी राणा बताते हैं, “सलूणी सफेद मक्का संगठन से मक्की की इन पारंपरिक किस्मों की ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्ताव मिला था। प्रस्ताव को सभी अध्ययनों और तथ्यों के साथ हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के पेटेंट इनफॉरमेशन सेंटर को प्रेषित किया था। खुशी का विषय है कि इस मामले को अब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पंजीकरण के लिए चेन्नई स्थित रजिस्ट्रार के कार्यालय को भेज दिया गया है। पूरी उम्मीद है कि आने वाले कुछ ही समय में सलूणी घाटी में किसानों द्वारा पीढ़ियों से उगाई जा रही मक्की की पारंपरिक किस्मों को जीआई टैग मिलेगा। इनमें हच्छी कुकड़ी(सफेद मक्की), रत्ती और चिटकु मक्की शामिल है। जमाने से ये किसान फसल दर फसल बीजों को सहेज कर अगली बुवाई के लिए संरक्षित रखते आ रहे हैं। भौगोलिक सूचक पंजीकरण प्राप्त होने से मक्की की इन किस्मों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष पहचान मिलने वाली है।”

गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के कुछ उत्पादों को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है जिनमें चंबा रुमाल भी शामिल है। कुल्लू शॉल, कांगड़ा चाय, किन्नौरी शॉल, कांगड़ा पेंटिंग, चूली तेल और काला जीरा भी भौगोलिक सूचक पंजीकरण प्राप्त उत्पाद हैं।

सलूणी क्षेत्र की जिन पंचायतों में मक्की की इन पारंपरिक किस्मों को उगाया जा रहा है उनमें भांदल, सनूंह, किहार, डांड, पिछला डियूर, कंधवारा, भड़ेला, खड़जौता, हिमगिरी, पंजेई, किलोड़ और सूरी पंचायतें शामिल हैं। चम्बा जिला की सीमांत भांदल पंचायत भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण द्वारा 10 लाख की राशि का पादप जीनोम संरक्षक सामुदायिक पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। इससे पूर्व भारत सरकार द्वारा पौधा किस्म रजिस्ट्री के तहत इन्हें रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र दिया गया था।

मक्की की इन किस्मों को 12 पंचायतों के 158 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोया जाता है। विशेष तौर से सफेद मक्की प्रोटीन से भरपूर मानी जाती है। इस किस्म में क्रूड फाइबर नामक तत्व भी पाया जाता है जो पाचन तंत्र के लिए तो मुफीद है ही इसके अलावा डायबिटीज को भी नियंत्रित करने में सहायक है। अध्ययन के मुताबिक मक्की हृदय स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर रहती है। इसमें विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा होती है। नेत्र स्वास्थ्य में भी इसका लाभ रहता है। सफेद मक्की का आटा ग्लूटन फ्री होता है। अपने शरीर के प्रति सजग रहने वाले जागरुक और सेलेब्रिटी भी अक्सर ग्लूटन फ्री अनाज को तरजीह देते हैं।

कृषि विभाग के अधिकारी राजेंद्र ठाकुर बताते हैं कि भांदल पंचायत के प्रयुंगल गांव को सरकार की बीज संरक्षण योजना के तहत भी लाया जाएगा ताकि किसान इन पारंपरिक बीजों का वैज्ञानिक तरीके से रखरखाव और उत्पादन सुनिश्चित कर सकें।

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