हिमाचल की उत्कृष्ट कलाएं एवं वास्तुकला विश्वभर में विख्यात

हिमाचल की उत्कृष्ट कलाएं एवं वास्तुकला विश्वभर में विख्यात

हिमाचल में बौद्ध-वास्तुकला के मुख्य गोम्पा (मंदिर) अपनी विशिष्ट शैली में बने हैं

हिमाचल में बौद्ध-वास्तुकला के मुख्य गोम्पा (मंदिर) अपनी विशिष्ट शैली में बने हैं

  • विशिष्ट शैली में बने हैं बौद्ध-वास्तुकला के मुख्य गोम्पा

हिमाचल में बौद्ध-वास्तुकला के मुख्य गोम्पा (मंदिर) अपनी विशिष्ट शैली में बने हैं। इनमें प्रमुख गोम्पा की-कीह स्पीति (982-1084 ई.), ढंक्खर गोम्पा, स्पीति (958-1055 ई.), बौद्ध गोम्पा, रिब्बा (958-1055 ई.), बौद्धमठ, नामगया, किन्नौर, पूह गोम्पा, किन्नौर तथा शाहसुर गोम्पा, लाहौल जैसे अनेक गोम्पा बौद्ध वास्तुशैली में बने हैं। मुगल मिश्रित वास्तुशैली के मुख्य मंदिरों में ज्वालामुखी मंदिर (कांगड़ा), ब्रजेश्वरी मंदिर (कांगड़ा), श्यामाकाली मंंदिर (मण्डी), भुवनेश्वरी मंदिर (मण्डी), बाला सुन्दरी मंदिर, त्रिलोकपुर (सिरमौर) तथा शिव मंदिर (रानीताल, सिरमौर)।

  • काष्ठ कला

मध्ययुग में काष्ठ-कला अपनी चरमसीमा पर पहुंची जबकि अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया। इन मंदिरों में धार्मिक क्रिया-कलापों को करते हुए पहने जाने वाले लकड़ी के मुखौटों पर नक्काशी की जाती थी। इन मंदिरों की खिड़कियों और दरवाजों पर भी पशु-पक्षियों के चित्र अंकित हैं। काष्ठ-कला के सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदाहरण हैं-चम्बा के लक्षणा देवी और शक्ति देवी के मंदिर, लाहौल में मृकुल देवी का मंदिर, निरमंड कुल्लू में दखणी देवी का मंदिर, मण्डी में मगरू महादेव तथा शिमला के पहाड़ों में मणाण देवी का मंदिर। दीवारों, छतों और दरवाजों की चौखटों पर की गई नक्काशी में रामायण, महाभारत और पुराणों से दृश्य अंकित किए गए हैं। लकड़ी की कलात्मक मूर्तियां बहुत कम हैं परन्तु इसके कुछ उदाहरण जुब्बल और कुल्लू घाटी में पाए जाते हैं।

  • नागर शैली

पूरे हिमालय क्षेत्र में नागर शैली के प्राचीनत उदाहरण कांगड़ा में मसरुर में एक ही चट्टान को काटकर बने मंदिरों में देखा जा सकता है। ये मंदिर एक ही चटटान को काटकर बनाए गए हैं और प्राचीनतम नागर शैली के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ये आठवीं शताब्दी के हैं। मसरुर के चट्टानों से बने मंदिर, चट्टानों को काटकर बनाए मंदिरों के लिए अद्वितीय हैं क्योंकि इस प्रकार के मंदिर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में तो बहुत मिलते हैं परंतु हिमालय क्षेत्र में नहीं मिलते। भरमौर का मणिमहेश मंदिर 700 ई., चंबा में स्थित तीन विष्णु और तीन शिव-मंदिर 10 वीं शताब्दी, लाहौल का त्रिलोकीनाथ मंदिर, बजौरा का विश्वेश्वर महादेव मंदिर, कुल्लू के नगर और दशाल में स्थित गौरीशंकर का मंदिर, रामपुर बुशैहर के निकट नीरथ में स्थित सूर्य मंदिर और जुब्बल की पुरानी राजधानी हाटकोटी के अनेक मंदिर इसी प्रकार के हैं। मंडप शैली के मंदिरों में कांगड़ा के बैजनाथ का वैद्यनाथ मंदिर व मंडी शहर में बने त्रिलोकीनाथ, पंचावतार और अद्र्ध-नारीश्वर के मंदिर आते हैं।

पाश्चात्य विद्वान हर्मन गोटज ने अपनी पुस्तक चंबा के आरंभिक मंदिर 1995 में इस प्रदेश के मंदिरों में उपलब्ध काष्ठ-कला को, अद्वितीय कलाकृतियां कहा है। जिला शिमला में नीरथ में बने सूर्य-मंदिर के प्रवेश-द्वार पर खुदे नंदी बैल की सवारी करते शिव की गोदी में पार्वती तथा शिवजी की जटाओं में बहती गंगा का चित्र मोहक है। चौपाल में बीजट देवता के मंदिर के विशाल प्रवेश-द्वार पर बंदूक चलाते सिपाही, कुश्ती लड़ते पहलवान, खड्ग-नृत्य आदि के दृश्य बड़े सजीव तथा विचित्र लगते हैं।

  • लोक काष्ठकला

काष्ठकला के नमूने हिमाचल के घरों में भी मिल जाते हैं

काष्ठकला के नमूने हिमाचल के घरों में भी मिल जाते हैं

काष्ठकला के नमूने हिमाचल के घरों में भी मिल जाते हैं। घरों के मुख्य द्वारों, स्तंभ या शहतीरों पर, छतों, बरामदों के अगले भागों में काष्ठ की कलाकृतियों के नमूने देखे जा सकते हैं। कांगड़ा, गरली-परागपुर, कुल्लू, शिमला, चंबा, भरमौर में रईसों के मकानों में भी ऐसे कार्य दिखाई देते हैं। प्राय: प्रत्येक घर में प्रवेश द्वारा पर गणेश की मूर्ति उत्कीर्ण रहती है। दाएं-बांए तोता, मोर आदि पक्षियों के चित्र रहते हैं। स्तंभों पर फुलहारी अंकर के साथ-साथ अभियान पर जाते राजा, कुश्तियां लड़ते पहलवान, नाग देवता अथवा कुल देवता आदि के चित्र अंकित हुए हैं।

काष्ठकला के अन्य नमूनों में छडियां, फूलदान, फोटो-फ्रेम, अलमारियां, खेल-खिलौने, हार-श्रृंगार, संबंधी सामग्री तथा आभूषण रखने के लिए बनी डिबियां तथा रामायण-महाभारत जैसे बड़े ग्रंथ रखने के लिए लकड़ी के तखते से बने दरगैले रैक्स लोक-काष्ठकला के अच्छे नमूने हैं।

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