हिमाचल: “पांगी” में शादी की खास चार रस्में….

हिमाचल प्रदेश की विश्वभर में अपनी एक खास और अहम पहचान है। यहाँ की देवभूमि किसी स्वर्ग से कम नहीं यहाँ के रीति-रिवाज, संस्कृति-परम्परा और प्रकृति की खूबसूरती हर किसी को अपनी और आकर्षित करती है। हम अपने कॉलम धर्म-संस्कृति में आपको हिमाचल प्रदेश की संस्कृति-परम्परा से अवगत कराते हैं  इस बार हम आपको हिमाचल के पांगी में निभाई जाने वाली विवाह की कुछ रस्मों से अवगत कराने जा रहे हैं। इस बार हम आपको हिमाचल के पांगी में निभाई जाने वाली विवाह की कुछ रस्मों से अवगत कराने जा रहे हैं। 

पांगी नवम्बर से अप्रैल तक छह महीने बर्फ से ढका रहता है। जिस कारण यह प्रदेश से कटा रहता है। प्राय: बर्फ के दिनों में एक गांव से दूसरे गांव के रास्ते भी बंद होते हैं और छह माह तक केवल इंसान ही नहीं बल्कि उनके पशु भी घरों में बंदी बन जाते हैं। घर ऐसे बने हुए हैं कि गाय, बैल, बकरी, भेड़ और मनुष्य साथ-साथ छह महीने तक अंदर रह जाते हैं। यहाँ के लोग अपने लिए खाने का सामान तथा तथा पशुओं के लिए घास जमा करके पहले ही रख लेते हैं।

maxresdefaultपांगी में विवाह की रस्म चार रस्में होती हैं। इनके नाम हैं पिलम, फक्की, छक्की और शादी। यहां शादी के लिए लडक़े वाले ही लडक़ी वाले के यहां जाते हैं और प्रार्थना करते हैं। सबसे पहले लडक़े का पिता अपने किसी खास आदमी को लडक़ी वाले के घर बात के लिए भेजता है। इस दिन खास आदमी एक दो बोतल शराब पिलाता है। क्योंकि शराब के बिना बात भी नहीं होती। इस रस्म को पिलम कहते हैं। इसके बाद लडक़ी वाले यदि स्वीकृति देते हैं तो किसी अच्छे दिन को तय करते हैं उस दिन लडक़े वाले 25 बोतल शराब, लगभग 20 सेर अनाज, घी अथवा तेले में पकी पूड़ी तथा हैसियत के अनुसार एक दो आभूषण लेकर लडक़ी वाले के घर जाते हैं। पूड़ी घर के सब रिश्तेदार मिलजुल कर खा लेते हैं और शराब पीते हैं। केवल आभूषण लडक़ी को पहना देते हैं। इस प्रक्रिया का नाम फक्की है। फक्की की उक्त रस्त के करीब एक साल बाद फिर लडक़े वाले लडक़ी के यहां जाते हैं। इस बार 35 बोतल के करीब घड़ों अथवा कनस्तरों में शराब ले जाते हैं। 30 सेर (लगभग 12 किलो) के करीब तेल में तली पूड़ी तथा कुछ आभूषण ले जाते हैं। दो तीन दिन लडक़ी वाले के घर ठहरते हैं। खूब खाते-पीते हैं। इस प्रथा अथवा प्रक्रिया को छक्की कहा जाता है।

  • विवाह में कहीं भी बाजा नहीं बजाया जाता

इसके बाद लामा जी अथवा देवता आदि से मुहुर्त का दिन तय करके लडक़े के साथ दो तीन आदमी लडक़ी वाले के घर आ जाते हैं और दूसरे दिन लडक़ी को साथ लेकर अपने घर वापिस आते हैं। इस बार भी शराब आदि ले जाते हैं और पिलाते हैं। जब लडक़ी विवाह के बाद ससुराल जाती है तब लडक़ी के घर से सात लोग जाते हैं। यह सातों व्यक्ति लडक़ी को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार बकरी, गाय, बर्तन आदि भी देते हैं। इन सात आदमियों की लडक़े वाले के यहां बड़ी सेवा की जाती है। वास्तव में यही बाराती होते हैं। दो दिनों तक लडक़े वाले के यहां रौनक रहती है। शराब और बकरों का दौर चलता है। विवाह में कहीं भी बाजा नहीं बजाया जाता। तीसरे दिन लडक़ी वाले अपने घर चले जाते हैं। जाते हुए प्रत्येक को लडक़े वाला परिवार सत्तू, पूड़ी आदि भरकर देता है तथा पूरी तरह से खुश करके भेजते हैं।

छूट अथवा तलाक इसका यहां आम रिवाज है। इसको यहां बुरा नहीं माना जाता। छूट के बाद औरत से जब दोबारा कोई शादी करता है तो उसे रीत के तौर पर कुछ धन देना होता है जो आम तौर पर अधिक से अधिक पहले दो सौ रूपए तक होता था।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पुरूष आपस में मिलकर औरतों का परस्पर तबादला कर लेते हैं। बहुधा छूट के बाद भी औरत माता-पिता के घर बिना शादी किए कुछ समय तक रहती है। छूट के बाद जो बच्चा पैदा होता है उसके पिता का पता नहीं लगता और यहां की रीत के अनुसार ऐसे लडक़े अपने पिता का नाम नहीं लिखवाते। उसके स्थान पर अपनी मां का नाम लिखवाते हैं। ऐसे बच्चों को समाज में किसी प्रकार से हीन नहीं माना जाता।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *