कुबेर ने रावण को दी थी सोने की लंका....

कुबेर ने रावण को दी थी सोने की लंका….

रावण कुबेर का सौतेला भाई हुए

रावण कुबेर का सौतेला भाई हुए

धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण के दो सगे भाई कुंभकर्ण और विभीषण के अलावा उनके एक सौतेले भाई भी थे जो की कुबेर थे। रामायण के अनुसार महर्षि पुलस्त्य ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनका विवाह राजा तृणबिंदु की पुत्री से हुआ था। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र का नाम विश्रवा था। वह भी अपने पिता के समान सत्यवादी व जितेंद्रीय था। विश्रवा के इन गुणों को देखते हुए महामुनि भरद्वाज ने अपनी कन्या इड़विड़ा का विवाह उनके साथ कर दिया।

महर्षि विश्रवा के पुत्र का नाम वैश्रवण रखा गया। वैश्रवण का ही एक नाम कुबेर है। महर्षि विश्रवा की एक अन्य पत्नी का नाम कैकसी था। वह राक्षसकुल की थी। कैकसी के गर्भ से ही रावण, कुंभकर्ण व विभीषण का जन्म हुआ था। इस प्रकार रावण कुबेर का सौतेला भाई हुआ।

कुबेर की थी सोने की लंका

रामायण के अनुसार कुबेर को उनके पिता मुनि विश्रवा ने रहने के लिए लंका प्रदान की। ब्रह्माजी कुबेरदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें उत्तर दिशा का स्वामी व धनाध्यक्ष बनाया था। साथ ही मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान भी दिया था। अपने पिता के कहने पर कुबेरदेव ने सोने की लंका अपने भाई रावण को दे दी और कैलाश पर्वत पर अलकापुरी बसाई।

रावण जब विश्व विजय पर निकला तो उसने अलकापुरी पर भी आक्रमण किया। रावण और कुबेरदेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन ब्रह्माजी के वरदान के कारण कुबेरदेव रावण से पराजित हो गए। रावण ने बलपूर्वक कुबेर से ब्रह्माजी द्वारा दिया हुआ पुष्पक विमान भी छिन लिया।
ऐसे मिली रावण को सोने की लंका

एक दिन कुबेर महान समृद्धि से युक्त हो पिता के साथ बैठे थे। रावण आदि ने जब उनका वह वैभव देखा तो रावण के मन में भी कुबेर की तरह समृद्ध बनने की चाह पैदा हुई। तब रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा ये दोनों तपस्या में लगे हुए अपने भाइयों की प्रसन्न चित्त से सेवा करते थे। एक हजार वर्ष पूर्व होने पर रावण ने अपने मस्तक काट-काटकर अग्रि में आहूति दे दी। उसके इस अद्भुत कर्म से ब्रह्मजी बहुत संतुष्ट हुए उन्होंने स्वयं जाकर उन सबको तपस्या करने से रोका। सबको पृथक-पृथक वरदान का लोभ दिखाते हुए कहा पुत्रों मैं तुम सब प्रसन्न हूं। वर मांगों और तप से निवृत हो जाओ। एक अमरत्व छोड़कर जो जिसकी इच्छा हो मांग लो। तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी। तुमने महत्वपूर्ण पद प्राप्त करने की इ’छा से जिन सिरों की आहूति दी है वे सब तुम्हारे शरीर में जुड़ जाएंगे। तुम इ’छानुसार रूप धारण कर सकोगे। रावण ने कहा हम युद्ध में शत्रुओं पर विजयी होंगे-इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। गंधर्व, देवता, असुर, यक्ष, राक्षस, सर्प, किन्नर और भूतों से मेरी कभी पराजय न हो। तुमने जिन लोगों का नाम लिया। इनमें से किसी से भी तुम्हे भय नहीं होगा।केवल मनुष्य से हो सकता है।

उनके ऐसा कहने पर रावण बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा-मनुष्य मेरा क्या कर लेंगे, मैं तो उनका भक्षण करने वाला हूं। इसके बाद ब्रह्मजी ने कुंभकर्ण से वरदान मांगने को कहा। उसकी बुद्धि मोह से ग्रस्त थी। इसलिए उसने अधिक कालतक नींद लेने का वरदान मांगा। विभीषण ने बोला मेरे मन में कोई पाप विचार न उठे तथा बिना सीखे ही मेरे हृदय में ब्रम्हास्त्र के प्रयोग विधि स्फुरित हो जाए। राक्षस योनि में जन्म लेकर भी तुम्हारा मन अधर्म में नहीं लग रहा है। इसलिए तुम्हें अमर होने का भी वर दे रहा हूं। इस तरह वरदान प्राप्त कर लेने पर रावण ने सबसे पहले लंका पर ही चढ़ाई की और कुबेर से युद्ध जीतकर लंका को कुबेर से बाहर दिया।

पिछले जन्म में थे चोर

कुबेर के संबंध में एक जनश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में कुबेर चोर थे- चोर भी ऐसे कि देव मंदिरों में भी चोरी करने से बाज नहीं आते थे। एक बार चोरी करने के लिए वे एक शिव मंदिर में गये। तब मंदिरों में बहुत माल-खजाना रहता था। उसे ढूंढने के लिए कुबेर ने दीपक जलाया, लेकिन हवा के झोंके से दीपक बुझ गया। कुबेर ने फिर दीपक जलाया, फिर बुझ गया। जब यह क्रम कई बार चला तो भोले-भाले और औढर दानी शंकर ने इसे अपनी दीप आराधना समझ लिया और प्रसन्न होकर अगले जन्म में कुबेर को धनपति होने का आशीष दिया।

कुबेरदेव है धन के स्वामी :

कुबेरदेव है धन के स्वामी

कुबेरदेव है धन के स्वामी

कुबेर राजाओं के अधिपति तथा धन के स्वामी हैं। वे देवताओं के धनाध्यक्ष के रूप मे जाने जाते हैं। इसीलिए इन्हें राजाधिराज भी कहा जाता है। गंधमादन पर्वत पर स्थित संपत्ति का चौथा भाग इनके नियंत्रण में है। उसमें से सोलहवां भाग ही मानवों को दिया गया है। कुबेर नौ-निधियों के अधिपति जो हैं। ये निधियां हैं- पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, और वर्चस। ऐसा कहते हैं कि इनमें से एक निधि भी अनंत वैभव देने वाली है। कुबेर देवाधिदेव शिव के मित्र हैं। इसलिए जो इनकी उपासना करता है, उसकी आपत्तियों के समय रक्षा भी होती है। प्राय: सभी यज्ञ-यागादि, पूजा-उत्सवों तथा दस दिक्पालों के रूप में भी कुबेर की पूजा होती है। ये उत्तराधिपति हैं यानी उत्तर दिशा के अधिपति हैं।

ऐसा है कुबेरदेव का स्वरूप :

ग्रंथों के अनुसार कुबेरदेव का उदर यानी पेट बड़ा है। इनके शरीर का रंग पीला है। ये किरीट, मुकुट आदि आभूषण धारण करते हैं। एक हाथ में गदा तो दूसरा हाथ धन देने वाली मुद्रा में रहता है। इनका वाहन पुष्पक विमान है। इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर विराजित दिखाया जाता है।

कुबेर के है कई अन्य नाम :

कुबेरदेव को वैसे तो वैश्रवण के नाम से जाना जाता है। इन्हें एड़विड़ और एकाक्षपिंगल भी कहा जाता है। माता का नाम इड़विड़ा होने के कारण इनका एड़विड़ नाम पड़ा। कहते हैं माता पार्वती की ओर देखने के कारण कुबेर की दाहिनी आंख पीली पड़ गई इसीलिए इनका एक नाम एकाक्षपिंगाल भी पड़ा।

मायावी सभा :

कुबेर की सभा भी बड़ी मायावी है। महाभारत सभापर्व के दसवें अध्याय के अनुसार सभा का विस्तार सौ योजन लंबा और 70 योजन चौड़ा है। इसमें अनेक स्वर्ण के कक्ष बने हुए हैं। उसमें ऐसे स्तम्भ भी हैं जो मणियों से जड़े हुए तथा स्वर्ण के बने हैं। इस सभा के बीच में बहुत सुंदर सिंहासन पर वे ऋद्धि तथा अन्य सौ स्त्रियों के साथ विराजमान होते हैं। इस सभा में स्वयं महालक्ष्मी तथा अनेक ब्रह्मïर्षि, देवर्षि, राजर्षि भी उपस्थित रहते हैं।

कुबेर की पूजा से होती है धन प्राप्ति :

कुबेर की उपासना से माया यानी धन की प्राप्ति होती है। धनत्रयोदशी तथा दीपावली के दिन इनका खासतौर से पूजन किया जाता है।

कुबेर की पूजा से होती है धन प्राप्ति :

कुबेर की पूजा से होती है धन प्राप्ति के लिए

इसके अलावा फाल्गुन त्रयोदशी से साल भर हर माह शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर व्रत करने का विधान है।

अकस्मात धन लाभ दे‍ता है कुबेर मंत्र :

  • धन के अधिपति होने के कारण इन्हैं मंत्र साधना द्वारा प्रसन्न करने का विधान बताया गया है।

  • कुबेर मंत्र को दक्षिण की और मुख करके ही सिद्ध किया जाता है।

  • कुबेर मंत्र इस प्रकार है- मंत्र- ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।

 कुबेर तीर्थ :

कुबेर ने जिन स्थानों पर तपस्या की थी, वे स्थान कुबेर तीर्थ के नाम से जाने जाते हैं। नर्मदा और कावेरी नदी के तट पर कुबेर ने तप किया था। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित भद्रकाली मंदिर के निकट सरस्वती नदी के तट पर कुबेर तीर्थ हैं। कहते हैं यहां कुबेर ने यज्ञ किए थे।

वनवास के दौरान पांडव भी रुके थे कुबेरदेव के महल में :

कुबेर के है कई अन्य नाम

कुबेर के है कई अन्य नाम

महाभारत के अनुसार जिस समय पांडव वनवास के दौरान बदरिकाश्रम में रह रहे थे। तब एक दिन जब भीमसेन एकांत में बैठे थे, तब द्रौपदी ने उनसे कहा कि इस पर्वत पर अनेक राक्षस निवास करते हैं, यदि वे सब यह पर्वत छोड़कर भाग जाएं तो कैसा रहे। भीमसेन, द्रौपदी की बात समझ गए और अपने शस्त्र उठाकर गंधमादन पर्वत पर बेखटक आगे बढऩे लगे। पर्वत की चोटी पर जाकर वे कुबेर के महल को देखने लगे। तभी भीमसेन ने अपने शंख से भयानक ध्वनि की। शंख की ध्वनि सुन यक्ष और राक्षसों ने भीमसेन पर हमला कर दिया। भीमसेन ने भी अकेले ही उन सभी को पराजित कर दिया।

वहीं कुबेर का मित्र मणिमान नाम का राक्षस रहता था। उसके और भीम के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। भीमसेन ने उसका भी वध कर दिया। युद्ध की आवाजें सुनकर युधिष्ठिर, नकुल व सहदेव भी भीमसेन के पास पहुंच गए। जब कुबेरजी को पता चला कि भीम ने उनके क्षेत्र में आकर उनके सेवकों को मारा है तो बहुत क्रोधित हो गए और अपने रथ पर सवार होकर उस ओर चल दिए। वहां पहुंचकर जब कुबेरजी ने युधिष्ठिर को देखा तो उनका क्रोध शांत हो गया और उन्होंने कहा कि यह राक्षस तो अपने काल से ही मरे हैं, भीमसेन तो सिर्फ निमित्त मात्र हैं। पांडवों ने वह रात कुबेरजी के महल में ही बिताई।

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