- लाहौल-स्पीति के लोगों की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए “ढींगरी मशरूम” नगदी उत्पाद के तौर पर उभर कर आया सामने
- ढींगरी मशरूम से सुदृढ़ होगी स्पीति के जनजातीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था
- लाहौल-स्पीति क्षेत्र ओएस्टर (मशरूम) के उत्पादन और निर्यात में अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार
शिमला : नगदी उत्पाद के तौर पर अपनी जगह बना रहे “ढींगरी मशरूम” से स्पीति घाटी में नए अध्याय का सूत्रपात हुआ है। लाहौल-स्पीति के लोगों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने में “ढींगरी मशरूम” नए नगदी उत्पाद के तौर पर उभर कर सामने आया है। वानस्पतिक नाम ‘प्लुरोटस ओस्ट्रीटस’ के नाम से भी पहचाने जाने वाले इस ढींगरी मशरूम ने स्पीति घाटी के लोगों के लिए आय के नए द्वार भी खोले हैं।
लामाओं, पौराणिक बौद्ध मठों की धरती और बर्फ से आछांदित पहाड़ों की चोटियां स्पीति क्षेत्र को दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है। अब यह क्षेत्र ओएस्टर (मशरूम) के उत्पादन और निर्यात में अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार है।
- मटर की खेती के अलावा अब स्पीति के किसानों ने अपनाया ढींगरी मशरूम उत्पादन
स्पीति के चिचिम गांव के कलजग लादे ने कहा कि मटर की खेती के अलावा अब स्पीति के किसानों ने अपनी आर्थिकी को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए ढींगरी मशरूम उत्पादन को अपनाया है। उन्होंने कहा कि वे 2015 से स्पैटुला के आकार की यह मशरूम प्रजाति उगा रहे हैं एवं अब बागवानी विभाग के अतिरिक्त प्रयासों से विभाग के विषय बाद विशेषज्ञ लोगों को ढींगरी मशरूम उगाने की तकनीक सिखा रहे हैं। लादे प्रतिदिन 150 किलोग्राम ‘ढींगरी मशरूम’ का उत्पादन कर रहे हैं और काजा के स्थानीय होटलियर्स व होम स्टे में लगभग 250 रुपये से लेकर 300 रुपये की दर से प्रति किलो तक बेच रहे है तथा महमानों को उनके पसंदीदा लज़ीज व्यंजन परोस रहे हैं।
ढींगरी मशरूम उगाने के लिए अब तक क्षेत्र के 50 किसानों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है और उन्हें कमरे के तापमान के अनुसार ढींगरी मशरूम उगाने के लिए पाॅली बैग भी वितरित किए गए हैं।
मशरूम का उत्पादन अधिक होने पर जहां इसका उपयोग अचार, मशरूम पाउडर, दवाइयां इत्यादी बनाने में किया जा सकेगा वहीं इससे महिलाओं को उनके घर द्वार पर रोजगार के अवसर भी प्रदान होंगे।
ढींगरी मशरूम को गीले भूसे में उगाया जाता है। इसका बीज तीस दिन से पुराना नहीं होना चाहिएं बीज की मात्रा 250 से 300 ग्राम प्रति 10 से 12 किलोग्राम गीले भूसे की दर से होनी चाहिए। गीला भूसा और बीज को एक प्लास्टिक के टब में अच्छी तरह से मिलकर पॉलीथीन बैग में 4 से 6 किलोग्राम गीला भूसा भर दिया जाता है। इसे उगाने में खाद का प्रयोग नहीं किया जाता। यह मशरूम औषधीय गुणों से भरपूर है और प्रोटीन युक्त भोजन बनाने के लिए सबसे उपयुक्त है।
ढींगरी मशरूम में उचित मात्रा में विटामिन सी और बी कॉम्प्लेक्स पाई जाती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 1.6 से लेकर 2.5 प्रतिशत तक है। इसमें मानव शरीर के लिए जरूरी खनिज लवण जैसे पोटेशियम, सोडियम, फास्फोरस, लोहा और कैल्शियम भी पाए जाते है। एंटीबायोटिक के गुण होने के साथ यह मशरूम कोलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित करता है और शुगर के मरीजों के लिए भी उपयुक्त है।
ओएस्टर मशरूम मशरूम सबट्रापिकल पर्वतीय क्षेत्रों में 10 से 24 डिग्री सेंटीग्रेड और 55-75 प्रतिशत के बीच वाले तापमान में एक वर्ष में 6 से 8 माह की अवधि के लिए उगाया जाता है। साफ सूखे धान के पुआल को 18 घंटे पानी में भिगोया जाता है और मास्टर स्पान की एक बोतल कुलथ पाउडर के साथ मिलाया जाता है। फिर इस मिश्रण को पाॅलीथीन बैग में भर कर कमरे के तापमान पर रख दिया जाता है। पॉलीथीन बैग में भरे इस मिश्रण को नियमित रूप से तब तक पानी दिया जाता है, जब तक कि मशरूम उगना शुरू नहीं हो जाते।
औषधीय गुणों से भूरपूर यह ढींगरी मशरूम स्पीति घाटी से बाहर भी सम्मानीय वातावरण क्षेत्रों में भी उगाया जा सकेगा, जिससे प्रदेश की कृषक आर्थिकी को और अधिक संबल मिलेगा।