कुल्लू टोपी स्लेटी रंग के ऊनी कपड़े पर रंग बिरंगी सुनहरे रंग की वी व डब्लू जैसी डिजाइन वाली ऊन की कढ़ाई वाली होती है कुल्लू
पहाड़ी टोपी की अपनी शान
हिमाचली टोपी में फोटो खिचवाते पर्यटक
टोपी व कुल्लू शाल को हिमाचल की कुल्लू घाटी से समूचे विश्व में पहुँचाने वाले भुट्टीको शाल के भीष्म पितामह सत्यप्रकाश को कहा जाता है कहते हैं संस्कृति की कोई सरहद नहीं होती। सच भी है, क्योंकि हिमाचल के किन्नौर की हरी पट्टी वाली किन्नौरी टोपी अब उत्तराखंड के लोगों के सिरों पर भी खूब सज रही है। दून में तो आपको किन्नौरी टोपी पहने बहुत से लोग दिख जाएंगे, लेकिन उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सुदूरवर्ती के हरकी दून ट्रैक के क्षेत्र में तो हर दूसरा आदमी हरे रंग की पट्टी वाली किन्नौरी टोपी पहने दिखता है। हम जिन टोपियों को आम तौर पर हिमाचली टोपियां कहते और समझते हैं, वे क्षेत्रवार तीन प्रकार की हैं- कुल्लू टोपी, बुशहरी टोपी और किन्नौरी टोपी। कुल्लू टोपी स्लेटी रंग के ऊनी कपड़े पर रंग बिरंगी सुनहरे रंग की वी व डब्लू जैसी डिजाइन वाली ऊन की कढ़ाई वाली होती है। अमूमन इसी को हिमाचली टोपी के रूप में जाना जाता है। दूसरी बुशहर टोपी में लाल या मैरून वेलवेट लगा होता है। यह सफेद वैलवेट पर हरे किनारे की पट्टी वाली टोपी भी हो सकती है। तीसरे किस्म की टोपी है-किन्नौर जिले की पहचान किन्नौरी टोपी। शेष अन्य टोपियों से महंगी होती है।
पहाड़ी टोपी खरीदते पर्यटक
इस टोपी की खासियत यह है कि इसे किन्नौर में पुरुष और महिलाएं दोनों पहनते हैं। हलके स्लेटी रंग के ऊनी कपड़े से बनी इस टोपी में हरी वैलवेट की पट्टी होती है। कहा जाता है कि हरे रंग का यह वैलवेट एक जमाने में तिब्बत से तस्करी कर लाया जाता था। इस वैलवेट की पट्टी के तीन किनारों पर नारंगी, लाल या केसरिया पट्टी होती है। ज्यादा सर्दी पड़ने पर वैलवेट की पट्टी को खोलकर कान ढंके जा सकते हैं। किन्नौर में इस टोपी को दलित नहीं पहन सकते, लेकिन उत्तराखंड में पहुंचते ही यह गलत धारणा खत्म हो जाती है। बहुपति प्रथा वाले किन्नौर क्षेत्र में एक पति अगर पत्नी के साथ हो तो वह संकेत के तौर पर दरवाजे के बाहर खूंटी में अपनी टोपी टांग देता है, ताकि उनका एकांत भंग न हो। हरकी दून का इलाका हिमाचल जिले से लगा हुआ है। यहां के लोग अक्सर किन्नौर चले जाते हैं और वहां से किन्नौरी टोपियां ले आते हैं। हरकी दून के पूरे इलाके में आपको क्या पोर्टर, क्या दुकानदार, सभी किन्नौरी टोपी में नजर आते हैं। लगता है जैसे हरी टोपियों के संसार में कदम रख दिए हों।
बुजुर्ग का सम्मान पहाड़ी टोपी
बाहरी प्रदेशों व देशों से यहां जब पर्यटक आते हैं, तो वह हिमाचल की टोपी अपने
हिमाचल में दो तरह की टोपियां मिलती है। पहली टोपी कुल्लू की टोपी और फिर किन्नौर की ।
साथ ले जाना नहीं भूलते। लेकिन वह शायद यह नहीं जानते कि यह टोपी महज हिमाचल की निशानी ही नहीं बल्कि सियासतदारों की इच्जत भी है। हिमाचल में विशेष रूप से दो तरह की टोपियां मिलती है। पहली टोपी कुल्लू की टोपी। यह टोपी एक समय में बहुत ही प्रसिद्ध हुआ करती थी। मगर इसके बाद किन्नौर की टोपी ने इसका स्थान ले लिया। हरे रंग की पट्टी के साथ निकली यह गोल टोपी बेहद आकर्षक लगती है। लेकिन टोपी की सियासी खेल में यह टोपी कांग्रेस की कब हो गई किसे पता ही नहीं चला।
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