- आवश्यकता से अधिक उर्वरकों का प्रयोग न करें बागवान
- खाद, उर्वरकों व छिडक़ाव में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों का प्रयोग सही अवस्था व मात्रा में पौधों की आयु व अवस्था के आधार पर करें।
- बागीचों में कांट-छांट का कार्य फरवरी माह तक पूरा कर लें
- कांट-छांट के तुरन्त बाद करें वोर्डो मिक्चर का प्रयोग
- बागवानों को वैज्ञानिकों पर पूर्ण विश्वास कर नवीनतम शोध अपनाने की नितांत आवश्यकता
प्राप्त सूचनाओं के अनुसार आजकल कुछ बागवान सेब बागीचों में हार्टीकलचरल मिनरल तेल (एच.एम.ओ) या फिर ट्री स्प्रे ऑयल (टी.एसओ) का छिडक़ाव कर रहे हैं, बागवान यह समझने का प्रयत्न ही नहीं करते कि किस उद्देश्य पूर्ति के लिए इस छिडक़ाव को किया जाता है। बिना सोच विचार किए गए कार्य का कोई लाभ नहीं मिलता, अपितु सभी दृष्टिकोण से हानि ही होती है। कई दशकों के प्रयत्न के फलस्वरूप अब बागवान मार्च के महीने में छिडक़ाव करने लगे हैं, पहले तो नवम्बर-दिसम्बर में ही इस कार्य को किया जाता रहा है। कुछ प्रगतिशील बागवान वैज्ञानिक परीक्षण द्वारा किए गए शोध कार्य को अपनाते भी हैं परन्तु इनकी संख्या अभी भी बहुत सीमित है। बागवानों को वैज्ञानिकों पर पूर्र्ण विश्वास कर नवीनतम शोध के परिणाम व सिफारिशों के आधार पर अपनाने की नितांत आवश्यकता है।
- बागवान केवल प्रमाणित व स्वीकृत एचएमओ का ही प्रयोग करें
एच.एमओ व टीएसओ में एचएमओ के प्रयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि एचएमओ शुद्ध तेल है और इसके छिडक़ाव से पौधों के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नहीं होता अपितु यह पूर्ण रूप से लाभदायक सिद्ध होता है। यह भी जानना आवश्यक है कि केवल औद्यानिकी विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाणित व स्वीकृत एचएमओ का प्रयोग करें। बाजार में अनेक प्रकार के एचएमओ उपलब्ध हैं जो प्रमाणित व स्वीकृत नहीं है, उनको प्रयोग न करें, उनसे पौधों को हानि होने की अपार संभावनाएं रहती हैं।
- सही अवस्था पर छिडक़ाव से पौधों में उत्पन्न होने वाली समस्या रहेंगी नियंत्रण में
एचएमओ का छिडक़ाव सैजोस स्केल, यूरोपियन रैड माईट, व्हाईट स्केल की जीवसंख्या को नियंत्रण करने के लिए किया जाता है। यह कीट व माईट उस समय सुषुप्तावस्था में पौधों के खुरदरे, कटे-फटे व बीमों के समीप रहते हैं, अधिक जीवसंख्या होने पर यह पौधों के अन्य भागों जो छाल पर ही होते हैं, चले जाते हैं। जब तक सामान्य तापमान में निरन्तर वृद्धि न हो तब तक यह उसी अवस्था में रहते हैं, जो आजकल है। निरन्तर तापमान में वृद्धि पौधों को जाग्रित कर सक्रिय करती है, पौधों में पौध रस का संचार बढ़ जाता है, इसके उपरान्त यह कीट-माईट सक्रिय होते हैं और यह तभी संभव हो पाता है जब सेब के पौधों में लगभग आधा र्इंच पत्ती निकलती है। केवल इस अवस्था में किए गए एचएमओ के छिडक़ाव से जहां इसका सम्पर्क पौधों की छाल से होने पर ही इन कीट-माईट का सफल नियंत्रण हो पाता है। इस अवस्था से पूर्व किए गए छिडक़ाव का बहुत कम असर इनके नियंत्रण में होता है, यह छिडक़ाव निरर्थक व उद्देश्यहीन ही होते हैं, अत: इसे समझने का प्रयत्न करें और सही अवस्था पर ही छिडक़ाव न केवल समस्याओं से छुटकारा दिलाता है अपितु खर्चे में भी कमी होती है और भविष्य में भी समस्या नियंत्रण में रहती है।
- सबसे पहले बैरल या ड्रम जिसमें पानी का घोल बनना है दोनों ओर लगाएं निशान
छिडक़ाव में प्रयोग किए जाने वाले बैरल (ड्रम) अनेक प्रकार के हैं और इसमें पानी भी अलग-अलग मात्रा में होता है। बागीचों में किए गए लेखक द्वारा सर्वे में पाया गया कि यह ड्रम 226 से 265 लीटर तक पानी का भण्डारण होता है। यह भी पाया गया है कि उन बैरल या ड्रम पर 200 लीटर पानी के माप का चिन्ह या निशान बागवानों द्वारा नहीं लगाया जाता है और बहुधा अधिक पानी का ही प्रयोग कर इनमें कीटनाशक या एचएमओ या फफंूदनाशक घोल कर छिडक़ा जाता है जिससे पौधों पर सही मात्रा का प्रयोग नहीं हो पाता और कीट-माईट व रोग का आंशिक नियंत्रण होता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी हो जाती है। अत: सबसे पहले बैरल या ड्रम जिसमें पानी का घोल बनना है, 200 लिटर तक पानी डालकर बैरल के अन्दर व बाहर दोनों ओर निशान लगाएं तभी छिडक़ाव में प्रयोग किए जाने वाले एचएमओ, कीटनाशक, फफूंद नाशक व पोषक तत्वों का पूरा लाभ मिल सकेगा और खर्चे में भी कमी आएगी।
- स्वीकृत मात्रा से अधिक एचएमओ का प्रयोग अनुचित
यह भी देखा गया है कि बागवान स्वीकृत मात्रा से अधिक एचएमओ तथा अन्य रसायनों का प्रयोग करते हैं। एचएमओ को स्वीकृत मात्रा 4 लिटर प्रति 196 लिटर पानी में घोलकर, प्रयोग करने की है। अधिकतर बागवान 5 से 8 लिटर तक एचएमओ का प्रयोग करते हैं जो अनुचित है। बागवानों से अनुरोध है कि स्वीकृत मात्रा का ही प्रयोग करें। पानी की बैरल (ड्रम) 200 लिटर में से 4 लिटर निकाल दें तथा 4 लिटर एचएमओ इसमें घोल कर डाल दें यह स्वत: 200 लिटर का घोल बन जाएगा। आवश्यक्ता से अधिक या कम स्वीकृत मात्रा के प्रयोग करने पर कीट-माईट-फफूंद का सफल नियंत्रण नहीं हो पाता है। इसके विपरीत इन जीवों में विष को सहने की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है और अधिक विषैल पदार्थों के प्रयोग को बढ़ावा मिलता है। बागीचे के रख-रखाव के खर्चे में भी वृद्धि होती है और पर्यावरण दूषित होता है। परमापी कीटों की जीवसंख्या जो हानि पहुंचाने वाले कीड़े व माईट को खाती है। नष्ट हो जाती है।
- कांट-छांट के तुरन्त बाद करें वोर्डो मिक्चर का प्रयोग
यह समझना आवश्यक है कि छिडक़ाव के पूर्ण लाभ प्राप्ति हेतु पदार्थों की सही मात्रा, पानी की सही मात्रा तथा समय व पौध विकास अवस्था पर ही ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। बागीचों में कांट-छांट का कार्य इस माह तक पूरा कर लें। कांट-छांट के तुरन्त बाद वोर्डो मिक्चर (1600 ग्राम नीला थोथा + 1600 ग्राम साधारण चूना) निचले व मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए तथा 2 किलो नीला थोथा + 2 किलो साधारण चूना ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 2०० लिटर पानी में घोल कर प्रयोग करें।
- किसी असमंजस की स्थिति में वैज्ञानिक सलाह जरूर लें
म्यूरेट आफ पोटाश (1.5 किलो) प्रति पौधा तने से 1 मीटर दूरी पर तौलिए में मिलाएं तथा इसे मिट्टी से ढक दें। तहां मिक्चर उर्वरकों का प्रयोग करना है तो 15;15;15 को भी 3-4 किलो प्रति पौधे के हिसाब से मिला लें इसमें म्यूरेट आफ पोटाश खाद की मात्रा 800-900 ग्राम मिलाएं। जिन बागीचों में फासफोरस उर्वरक का प्रयोग पहले नहीं किया गया है, वहां 1.5-2 किलो प्रति पौधे की दर से प्रयोग किया जा सकता है। आवश्यक्ता से अधिक उर्वरकों का प्रयोग न करें। किसी असमंजस की स्थिति में वैज्ञानिक सलाह लेना न भूलें। खाद, उर्वरकों व छिडक़ाव में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों का प्रयोग सही अवस्था व मात्रा में पौधों की आयु व अवस्था के आधार पर करें।