हिमाचल के गुज्जर चरवाहे......

हिमाचल के गुज्जर चरवाहा……

…राजा की बेटी ने दुल्हन ने जिद्द की थी कि वह सिरमौर तभी जाएगी यदि उसके साथ गुज्जर भी जाएंगे

गुज्जरों का पशुधन भैंसे

गुज्जरों का पशुधन भैंसे होती हैं ठीक वैसे ही जैसे गद्दियों की भेड़ें होती हैं। पहाड़ी ढलानों पर पशु चराते हैं और उनका

गुज्जरों का पशुधन भैंसे

गुज्जरों का पशुधन भैंसे

दूध-घी बेचकर गुजारा करते हैं। गर्मियों में गुज्जर ऊंचे पहाड़ों पर चले जाते हैं जहां उनके पशु बर्फ के नीचे से निकली हरी घास का आनन्द लेते हैं और मैदानों के मक्खी-मच्छरों से बचते हैं। यहां का समशीतोष्ण जलवायु उनके लिए स्वास्थ्यवर्धक रहता है।

सर्दियों में ठण्ड से छुटकारा पाने चले आते है मैदानी क्षेत्रों में

गुज्जर पौरूषवान् श्रेष्ठ जाति है। इनके नैन-नक्श सुन्दर एवं श्रेष्ठ होते हैं। इनकी स्त्रियां लम्बी और सुन्दर होती हैं। हिन्दू गुज्जर अधिकतर जिला मण्डी, बिलासपुर, सिरमौर और कांगड़ा जिला में रहते हैं। ये हिन्दू रीति-रिवाजों को मानते हैं और प्राय: खेती करते हैं।

गुज्जर हिमाचल के पशुपालकों की एक जनजाति है। गुज्जरों का जीवन दो वातावरणों में बीतता है। गर्मियों में मैदानी इलाकों की गर्मी से दूर के पहाड़ों पर चले जाते हैं एवं सर्दियों में ठण्ड से छुटकारा पाने मैदानी क्षेत्रों में चले आते हैं। इसीलिए गुज्जर सुन्दर और स्वस्थ होते हैं।

सर्दियों में ठण्ड से छुटकारा पाने चले आते है मैदानी क्षेत्रों में

सर्दियों में ठण्ड से छुटकारा पाने चले आते है मैदानी क्षेत्रों में

दुल्हन ने जिद्द की थी कि वह सिरमौर तभी जाएगी यदि उसके साथ गुज्जर भी जाएंगे

गुज्जरों की उत्पत्ति- गुज्जर नाम संस्कृत के शब्द गुज्जारा वर्तमान राज्य गुजरात का पुराना नाम से निकला है। अन्य धारणा के अनुसार गुज्जर वास्तव में गाय पालक थे जिससे उनका नाम गोचर्स पड़ा। यह नाम गुजरात और काठियाबाड़ में प्रचलित है। यह शब्द कालान्तर में बिगडक़र गुज्जर बना। गुज्जरों ने धीरे-धीरे गाय पालना छोडक़र भैंस पालना शुरू कर दिया। गुज्जर स्वयं को कृष्ण के सौतेले पिता नन्द मिहिर के वंशज मानते हैं। हिमाचल के गुज्जरों की धारणा है कि वे पैगम्बर इशाक के वंशज हैं। हिमाचल प्रदेश में अधिकांश गुज्जर जम्मू क्षेत्र से आए हैं। कहा जाता है कि लगभग 300 वर्ष पूर्व सिरमौर के राजा का विवाह जम्मू के राजा की बेटी से हुआ था। दुल्हन ने जिद्द की कि वह सिरमौर तभी जाएगी यदि उसके साथ गुज्जर भी जाएंगे। सिरमौर के राजा को इस पर राजी होना पड़ा। इस प्रकार गुज्जरों ने हिमाचल में पर्दापण किया।

हिमाचल प्रदेश में पहले से रह रहे गुज्जरों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। जबकि राज्य पुनर्गठन के बाद नए इलाकों के वासी गुज्जरों को अन्य पिछड़ी जाति का दर्जा है। हिमाचल प्रदेश में गुज्जर आमतौर पर चम्बा, मण्डी, बिलासपुर, सिरमौर और शिमला जिलों में रहते हैं।

हिमाचल के गुज्जर चरवाहे हैं और पूरी तरह घुमक्कड़ जीवन जीते हैं। प्राय: यह माना जाता है कि छठी शताब्दी में इनके पूर्वज हिन्दकुश पर्वत की ओर से आने वाले हूण आक्रान्ताओं के साथ आए। हूणों के आने से पूर्व गुज्जरों का ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता। उत्तरी भारत की जातीय संरचना को प्रभावित करने में हूणों और गुज्जरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सत्ता खो देने के पश्चात इनमें से अधिकांश पहाड़ों में शरण लेने और बसने के लिए विवश हो गए। घुमक्कड़ गुज्जरों ने हिन्दू स्त्रियों से शादियां की और हिन्दू समाज का अंग बन गए। कुछ गुज्जर अभी भी मुसलमान हैं।

यह निश्चित करना बहुत कठिन है कि गुज्जर हिमाचल की निचली पहाडिय़ों में कब आकर बसे

उपयुक्त शोध के अभाव में यह निश्चित करना बहुत कठिन है कि गुज्जर हिमाचल की निचली पहाडिय़ों में कब आकर बसे। माना जाता है कि उन्होंने औरंगजेब के काल में इस्लाम स्वीकार किया इसलिए निश्चय ही वे इससे बहुत पहले से यहां रह रहे थे। इस प्रकार गुज्जर हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी। मुस्लिम गुज्जर पूरी तरह घुमक्कड़ हैं और हिमाचल में कहीं भी उनका स्थायी निवास नहीं है। हिमाचल सरकार ने इन्हें स्थायी रूप से बसाने के प्रयास भी किए हैं। हिन्दू गुज्जर प्राय: घुमक्कड़ी का जीवन छोडक़र स्थायी रूप से घर बनाकर रहने लगे हैं। चम्बा और कांगड़ा में इनकी आबादी अधिक है।

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