- कार्यक्रम में राज्य के 11 जिलों के 30 मधुमक्खी प्रजनकों व प्रगतिशील मधुमक्खी पालकों ने लिया हिस्सा
अंबिका/सोलन: वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन विभिन्न फसलों के उत्पादन और गुणवत्ता में काफी वृद्धि ला सकता है और साथ- साथ किसानों की आय को भी बढ़ा सकता है। डॉ वाईएस परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय,नौणी के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने विश्वविद्यालय में मधुमक्खी प्रजनन (बी ब्रीडिंग) पर 21-दिवसीय प्रशिक्षण के समापन कार्यक्रम के दौरान ये विचार व्यक्त किए। प्रशिक्षण का आयोजन विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के प्रबंधित परागण घटक के तहत किया गया था।
इस कार्यक्रम में राज्य के 11 जिलों के 30 मधुमक्खी प्रजनकों और प्रगतिशील मधुमक्खी पालकों ने भाग लिया। प्रशिक्षण के समन्वयक डॉ हरीश कुमार शर्मा ने बताया कि इन प्रशिक्षुओं को मधुमक्खी प्रजनकों के रूप में पंजीकृत किया जाएगा और वे अपने उपयोग के साथ-साथ राज्य और क्षेत्र में बिक्री के लिए चयनित कालोनियों से गुणवत्ता वाले रानी मधुमक्खी उपलब्ध करवाएगें। इस तरह की रानियों के उपयोग से उच्च शहद उत्पादन और बेहतर परागण सेवाओं के लिए स्वस्थ और मजबूत कॉलोनियों स्थापित की जा सकेगी। उन्होंने परागण समझौते, जहां मधुमक्खी पालकों और किसानों की जिम्मेदारी तय की जाती है, का उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया। कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ दिवेन्द्र गुप्ता ने वैज्ञानिक मधुमक्खी प्रजनन और मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में विभाग के एपिकल्चर अनुभाग के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने बताया कि आईसीएआर द्वारा केंद्र को मधुमक्खी पालन में देश में सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान केंद्र चुना गया है।
अनुसंधान निदेशक और विश्वविद्यालय में एचपी-एचडीपी के नोडल अधिकारी डॉ जेएन शर्मा ने किसानों और युवाओं से मधुमक्खी पालन में उद्यमी बनने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पोलीनेटर अनुपात और परागणकर्ताओं की कमी राज्य में कम सेब उत्पादकता के एक कारणों में से एक है। उन्होंने इस परियोजना के तहत परागण सेवाओं में सुधार की उम्मीद जताई। कुलपति ने सभा को संबोधित करते हुए प्रतिभागियों को बधाई दी और उम्मीद जताई कि वह गुणवत्ता वाले रानी मधुमक्खी की आपूर्ति सुनिश्चित करेगें। उन्होंने राज्य में वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन और परागण सेवाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए मधुमक्खी पालकों को उद्यमी और मास्टर ट्रेनर बनने का आह्वान किया। डॉ कौशल ने कहा कि मधुमक्खी पालन में प्रशिक्षित मानव संसाधन प्रत्येक गाँव में उपलब्ध होना चाहिए। डॉ कौशल ने कहा कि चूंकि राज्य की अर्थव्यवस्था में बागवानी का बड़ा योगदान है, इसलिए यह उचित है कि परागण सेवाओं से उत्पादन और उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होगा। मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने से खाद्य स्थिरता और रोजगार सृजन सुनिश्चित होगा। राज्य में मधुमक्खी के लिए वनस्पतियों, शहद उत्पादन को बढ़ाने और मोनोफ्लोरल शहद के लिए एक अंतरराष्ट्रीय बाजार विकसित करने की आवश्यकता पर भी उन्होनें जोर दिया। उन्होंने वैज्ञानिकों को बागवानी के अन्य संबंधित क्षेत्रों जैसे ग्राफ्टिंग और प्रूनिंग में कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने का आह्वान किया।
प्रशिक्षण के दौरान, प्रतिभागियों के लिए मधुमक्खी पालन के विभिन्न पहलुओं पर 42 व्याख्यान आयोजित किए गए। 15-इन-हाउस विशेषज्ञों के अलावा, विभिन्न संस्थानों के नौ विशेषज्ञों ने भी प्रशिक्षुओं को संबोधित किया। निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ राकेश गुप्ता, डीन वानिकी महाविद्यालय डॉ पीके महाजन, सभी विभागों के प्रमुख और एंटोमोलॉजी विभाग के वैज्ञानिकों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।