बादाम मैदानी तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। अच्छे फल मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में प्राप्त होते हैं जहां जहां शीत ऋतु में इन पेड़ों को 400 से 600 घण्टे ठण्ड प्राप्त होती है।
प्रसारण
बादाम के बीजू पौधे तैयार किये जाते हैं। पैंसिल के बराबर या एक सेंटीमीटर ब्यास का तना होने पर भूमि से 20-30 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर किसी उन्नत जाति की कलम या कली स्थापित की जाती है। यह कार्य बसन्त ऋतु या पतझड़ से पहले कर लें।
पहचान
पेड़ साधारण ऊंचाई के लगभग 6 से 8 मीटर लम्बे तथा 3 से 4 मीटर चौड़े, तने का रंग भूरा जिस पर छाल फटी-फटी सी रहती है जो उतरती रहती है। शाखाएं साधारण परन्तु पूर्णतया सुन्दर नहीं लगती तथा मुड़ी हुई होती है। पत्ते हल्के से गहरे हरे रंग के नुकीले और मजबूत डण्ठल के होते हैं।
फूल सफेद रंग के प्राय: मार्च में पत्तों के साथ ही आ जाते हैं।
इसके फल शुरू में हरे रंग के तथा पकने पर भूरे हो जाते हैं। ऊपर का खोल कठोर होता है। फल का आकार भिन्न-भिन्न होता है परन्तु एक ओर से तिकोना तथा दूसरी ओर से गोल तथा भरा हुआ।
गुठली या गिरी बादामी तथा गहरे बादामी या भूरे रंग के खोल (छिलका) के अन्दर चिपकी रहती है।
इसके फल जून से अगस्त तक मिलते हैं।
रोपण- बादाम का रोपण शीत ऋतु के आते ही शुरू हो जाता है।
किस्में- ड्रेक, आई एक्स एल, नान पेरिल, थिन शैल्ड, मरसैड, निप्लस अल्ट्रा, पीयर लैस, धेबर तथा काठा, बादाम की प्रमुख किस्में हैं।
बीज एकत्रित करना- कड़वे बादाम, आड़ू तथा खुमानी के बीज से बीजू पौधा तैयार किया जाता है। पक्के फलों को तोड़ लें तथा गिरी को लगाएं। शीत ऋतु में गुठली को ऐसे ही भूमि में 3 सेंटीमीटर गहरा लगाया जाता है। बसन्तु ऋतु में अंकुरण शुरू हो जाता है तथा 45 दिन में पूर्ण हो जाता है। इन्हें स्तरीकरण के उपरान्त लगाया जाता है।
समस्या- फलों और पेड़ों से गोंद निकलना, गिरी का कागजी या काला होना। तथा तना छिद्रक कीट आदि इसकी उत्पन्न होने वाली समस्याएं हैं।