स्कूलों व कॉलेजों में वित्तीय साक्षरता देना समय की माँग : अनुराग

शिमला : केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट अफ़ेयर्स राज्यमंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने वित्तीय साक्षरता विषय पर डीएवी कॉलेज मैनेजिंग कमेटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्कूलों और कॉलेजों में वित्तीय साक्षरता को बदलते समय की माँग बताया है।

अनुराग ठाकुर ने कहा कि आज 21वीं सदी में जब दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन चुकी है और विकास की इस दौड़ में दुनिया का हर देश आर्थिक मोर्चे पर अपनी उपस्थिति सुदृढ़  करने में जी जान से जुटा हुआ है। हम भी पीछे नहीं हैं और भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हाल ही में पेश हुए आम बजट में मोदी सरकार ने साल 2024-25 तक भारत की इकानमी 2.7 ट्रिलियन डालर से बढाकर 5 ट्रिलियन तक करने का लक्ष्य रखा है, पर यह लक्ष्य सिर्फ सरकार का नहीं बल्कि सभी भारतीयों का है। आज जब 21वीं सदी में हम युवा देश हैं तो यह लक्ष्य मुश्किल नहीं है। जब देश की अर्थव्यवस्था का आकर बढ़ता है तो प्रति व्यक्ति आय भी बढती है, खरीद क्षमता बढ़ती है, फिर डिमांड बढती है, डिमांड पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ता है, तो उससे रोजगार पैदा होता है, इससे अतिरिक्त आमदनी बढ़ती है तो प्रति व्यक्ति बचत भी बढती है। ऐसे में इन तरीकों के सही तरीके से क्रियान्वयन करने के लिए और इस प्रक्रिया में सहयोग देने के लिए स्कूलों और कालेजों में वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है।

अनुराग ठाकुर ने कहा कि वित्त-बाजारों की बढ़ती हुई जटिलताओं तथा बाजारों और आम लोगों के बीच सूचनाओं की विषमताओं के कारण आम लोगों के लिए अच्छी तरह समझ-बूझकर विकल्प का चयन करना लगातार मुश्किल होते जाने की वजह से हाल के वर्षों में वित्तीय साक्षरता को बहुत महत्व दिया जा रहा है और स्कूल कालेजों को वित्तीय साक्षरता की दिशा में काम करने की बहुत आवश्यकता है.वित्तीय साक्षरता को वित्तीय समावेशन तथा अंतत: वित्तीय स्थायित्व को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए विकसित एवं विकासशील देश वित्तीय साक्षरता/शिक्षा वाले कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। भारत में, वित्तीय साक्षरता की आवश्यकता बहुत अधिक है क्योंकि यहां सामान्य साक्षरता का स्तर निम्न है और जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी औपचारिक वित्तीय ढांचे से बाहर है। भारत जैसे विभिन्नतायुक्त सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य वाले देश में वित्तीय साक्षरता उन लोगों के लिए खासतौर से मायने रखती है जो संसाधनों की दृष्टि से निर्धन हैं एवं जो हाशिए पर रहकर लगातार पड़ने वाले वित्तीय दबाव का शिकार होते हैं। बैंकों से बिना जुड़े बैंकिंग सेवा से वंचित गरीब महंगे विकल्पों की ओर रुख करने को बाध्य कर दिए जाते हैं। अत्यंत सीमित संसाधनों के साथ, कठिन परिस्थितियों में घर में वित्तीय प्रबन्धन की चुनौती तब और भी मुश्किल हो जाती है जब दक्षता और ज्ञान की कमी के कारण अच्छी तरह समझ-बूझकर आर्थिक फैसले करना कठिन हो।

 

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *