पर्वतीय क्षेत्रों में स्ट्राबैरी की रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त माह उपयुक्त

पर्वतीय क्षेत्रों में स्ट्राबैरी की रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त माह उपयुक्त

  • सेब की भांति स्ट्राबैरी के लिए शीत ऋतु में ठण्ड तथा ग्रीष्म ऋतु में थोड़ी गर्मी आवश्यक
टयोगा, टोरी, पूसा अर्ली डवार्फ, केवेलियर आदि इसकी प्रमुख किस्में

टयोगा, टोरी, पूसा अर्ली डवार्फ, केवेलियर इसकी प्रमुख किस्में

स्ट्राबैरी समशीतोष्ण खण्ड में कम ठण्डे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त फल है। इसे सेब की भांति शीत ऋतु में ठण्ड तथा ग्रीष्म ऋतु में थोड़ी गर्मी आवश्यक है। भूमि पर घास का सूखा आवरण आवश्यक है ताकि फल स्वस्थ और स्वच्छ रहे।

  • प्रकृति-पर्णपाती
  • रोपण- स्ट्राबैरी को पर्वतीय क्षेत्रों में जहां जुलाई-अगस्त माह में रोपा जाता है। वहीं घाटियों तथा मैदानों में सितम्बर-अक्तूबर माह में इसकी रोपाई की जाती है।
  • किस्में- टयोगा, टोरी, पूसा अर्ली डवार्फ, केवेलियर आदि इसकी प्रमुख किस्में हैं।
  • पहचान- इसमें फूल सफेद रंग के बसन्त ऋतु में आते हैं तथा लगातार आते रहते हैं। इसी प्रकार फल बनते रहते हैं। इसके पत्ते चौड़े, हरे तथा लम्बे डण्ठल वाले होते हैं। स्ट्राबैरी के पौधे भूमि की धरातल पर रेंगते हैं। ऊंचाई केवल 6 से 10 सेंटीमीटर होती है। तने या टहनियां पतली, जहां भी भूमि से सम्पर्क होता है वहीं पर जड़ें बनाकर नया पौधा तैयार
    भूमि पर घास का सूखा आवरण आवश्यक

    भूमि पर घास का सूखा आवरण आवश्यक

    कर सकती है।

इसके फल तिकोने, शंकु आकार के सफेद से हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। फल मीठे तथा सुगंधी वाले होते हैं। इनका माप 3 गुणा 1 सेंटीमीटर होता है। भण्डारण क्षमता कम होती है। खाने को अतिस्वादिष्ट होते हैं।

  • प्रसारण

रनर शाखा जब भूमि से छूती है तो वहां से जड़ें और अंकुर स्फुटित हो जाते हैं। ये प्राय: बसन्त ऋतु तथा वर्षा ऋतु में स्फुटित होते हैं।

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