
जनजातीय क्षेत्र किन्नौर में पारम्परिक परिधानो व आभूषनों सहित नृत्य करते कलाकार
दूसरी प्रकार का नृत्य बाक्यांग कहलाता है। जिसमें नर्तकों की दो या तीन पंक्तियों रहती है। एक पंक्ति के नर्तक तालयुक्त गति से आगे बढ़ते हैं और दूसरी पंक्ति के नर्तक पीछे हटते हैं इसके पश्चात इन अंग-परिचालनों को विपरीत दिशा में दोहराया जाता है। यह नृत्य प्राय: स्त्रियां ही करती हैं।
किन्नौर का तीसरी तरह का नृत्य बोन्यागॉंयू कहलाता है। यह एक प्रकार का मुक्त नाच होता है जिसमें पुरुष बजन्तरियों की लय पर अथवा किसी चुने हुए वाद्य-यंत्र की लय पर नाचते हैं। यह मूलत: पुरुषों का नाच है जिसमें स्त्रियां कभी-कभी बाहर रहकर गा कर सहयोग देती हैं।
खुले मैदान में किए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण नृत्य हैं घुगती और बीसु। बीसु नृत्य सिरमौर और शिमला की ऊपरी पहाडिय़ों में प्रचलित है। यह आमतौर पर मेलों में आयोजित किया जाता है जहां इसमें एक साथ सैंकड़ों लोग भाग लेते हैं। यह नृत्य प्राय: खुण्ड लोग आयोजित करते हैं। खुण्ड एक विशेष गांव के युद्धप्रिय लोग हैं। ये अपनी बहादुरी के कारनामों के लिए प्रसिद्ध हैं। जब ये लोग मेले में जाते हैं तो पूरा का पूरा गांव जाता है। मेले को जाते समय ये ढोलक की थाप, नगाड़े तथा तुरही की आवाज के साथ मेले में जाते हुए नाचते हैं और आगे बढ़ते हैं। प्रत्येक नर्तक के हाथ में तलवार, डांगरा, लाठी, रूमाल या खुखरी रहती है। जागरा त्यौहार के अवसर पर रात्रि को नाचते हुए ये हाथों में जलती मशालें लेकर नाचते हैं। नाच के पूरे जोश के दौरान एक नर्तक जोर-जोर से चिल्लाता है बलि जाओ एस बिरसू की ताई अर्थात कितना सुन्दर एवं आकर्षक नृत्य है और ऐसा कहकर और भी जोश से नाचता है। अन्य नर्तक ऊंची आवाज में टो कहकर उसका उत्तर देते हैं। कभी-कभी बिरसु गीत भी गाया जाता है। जब नर्तक मेले के स्थल पर पहुंचते हैं तो कुछ दूर तक नाचते हैं और फिर बिखर जाते हैं। प्राय: सायंकाल वापसी के समय कुछ समय के लिए वे फिर यही नृत्य करते हैं।
Pages: 1 2 3 4 5 6
Jun 16, 2016 - 04:04 PM
sir/madam aapke dwara di hui ye bistrirt jankari upyogi hia lekin kripya is priksha ki drishti se likhe ..,jaise ki himachal ke alag alag jilon ke nritya .,bhashayen,boliyan, aadi
Jun 16, 2016 - 06:10 PM
देवराज जी…हम कोशिश करेंगे कि आपके दिए सुझाव पर शीघ्र अम्ल करने की। धन्यवाद।