...पापा भी बनें बच्चों के दोस्त

…”पापा” भी बनें बच्चों के दोस्त

 बच्चों की परवरिश में माँ और पापा दोनों की अपनी खास जगह होती है। बदलते वक्त के साथ-साथ आज के दौर के माता-पिता के व्यवहार में काफी बदलाव आये हैं, लेकिन व्यस्तता भरे माहौल में आज हर परिवार प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजर रहा है। लेकिन मासूम बच्चों के लिए उनके माता- पिता से ज्यादा कोई महत्वपूर्ण नहीं होता। आवश्यक है कि माँ के साथ-साथ पिता भी अपने बच्चों के लिए समय जरुर दें।

एक मनोविश्लेषक का मानना है कि बच्चों के संपूर्ण विकास में मां के साथ-साथ पिता की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है यदि बच्चा बचपन से ही पिता के साथ घुलमिल कर रहने का अभ्यस्त है तो बड़ा होकर भी वह अपने पिता को पूरा प्यार, आदर व मान दे पाएगा तथा एक सच्चे मित्र की तरह अपना सुख-दुख बांट पाएगा। जब परिवार में किसी नन्हें शिशु का आगमन हो तो केवल मां ही नहीं, पिता भी अपने बच्चे का ध्यान रखे। नन्हें शिशु का नैपी बदलें, उसके कपड़े बदलें, लोरी सुनाकर थपथपाएं या छाती से लगा कर सुला दें। बोतल से दूध पिलाएं। जिस तरह बच्चा मां का स्पर्श व गंध पहचान कर आश्वस्त होता है। उसी तरह वह पिता का स्पर्श भी पहचानने लगेगा और उनकी गोद में आते ही हंसने-खिलखिलाने लगेगा। जब शिशु चलने लगे तो उसे सैर कराने ले जाएं। पार्क में घुमाएं और उसके साथ खेलें। घर का काम मिल कर करने में कोई बुराई नहीं है। अगर आपकी पत्नी रसोई में व्यस्त है तो आप बेझिझक बच्चे की निक्कर बदल सकते हैं। वह आपका भी तो बच्चा है।

“पापा” का अपने बच्चों के साथ खेलने का तरीका ही अलग होता है। वे बच्चों को मां की तुलना में थोड़ा कठोरता से हैंडल करते हैं जिससे बच्चा अपने स्वभाव में मजबूत होता जाता है। इस जमाने में दब्बू लोगों को कोई नहीं पूछता। पापा बच्चों में साहस व उग्रता जैसे गुणों का समावेश कर सकते हैं।

पापा बच्चों को अनुशासन सिखाते हैं

पापा को चाहिए कि वे बच्चों से प्यार भी जताएं

पापा बच्चों को अनुशासन सिखाते हैं

पापा बच्चों को अनुशासन सिखाते हैं

पापा बच्चों को अनुशासन सिखाते हैं। मां के लाड़-प्यार व ममता में कोमलता होती है किंतु पिता बच्चों को उनके व्यवहार की सीमाएं निर्धारित करना सिखाते हैं। यदि वे बाजार ले जाकर आईसक्रीम खिलाते हैं तो कि दूसरी आईसक्रीम खाने की जिद पूरी करने की बजाए स्पष्ट शब्दों में इंकार कर सकते हैं। वे मां की तरह बच्चे के मगरमच्छी आंसुओं से नहीं पिघलते। पापा को चाहिए कि वे बच्चों से अपने प्रेम का प्रदर्शन भी करें। अपने खाने में से हिस्सा बांटकर सिर पर हाथ फेर कर, होमवर्क पर अच्छी टिप्पणी देकर, उसे अच्छा सा चुटकुला या कहानी सुना कर या फिर कोई सरप्राइज गिफट देकर, वे अपने प्यार का इजहार कर सकते हैं।

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आपका लगाव व प्रेम किशोर पुत्र व पुत्री को घर की मर्यादाओं से बांध सकता है वे एक सच्चे दोस्त की तरह आपसे अपने अनुभव बांटेंगे और आप भी अपने अनुभव उन्हें सुना कर

बच्चों की रूचियों, भावनाओं व विचारों की कद्र करना सीखिए

बच्चों की रूचियों, भावनाओं व विचारों की कद्र करना सीखिए

बातों ही बातों में ऐसी शिक्षा दे सकते हैं जो उन्हें गलत माहौल से दूर रखेगी। बच्चे अपने पापा का जाने-अनजाने अनुकरण करते हैं अत: उनके सामने अपनी आदर्श व सकारात्मक छवि प्रस्तुत करें। घर पहुंचकर हमेशा टीवी या मोबाईल पर चिपके रहने वाले और शराब पीकर, गाली-गलौज व मारपीट करने वाले, सदा अखबार से चिपके रहने वाले, दोस्तों में मगन रहने वाले और घर में समय न देने वाले पापा, बच्चों के प्यारे पापा नहीं बन सकते।

  • बच्चों की रूचियों, भावनाओं व विचारों की कद्र करना सीखिए

बच्चों की रूचियों, भावनाओं व विचारों की कद्र करना सीखिए। अगर उनकी कोई हॉवी है तो उसे विकसित करने में मदद करें। कोई भावनात्मक उलझन है तो प्यार से सुलझाएं। छोटे बच्चों की इच्छा का मान करें और अनावश्यक कठोरता न दर्शाएं। फिर देखिए आपका बच्चों के साथ एक ऐसा स्नेह, सौहाद्र्र पूर्ण संबंध विकसित होगा जिसे बड़ी से बड़ी बाधा भी तोड़ नहीं पाएंगे।

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