हादसों से लील होती जिंदगियां झकझोर तो देती हैं पर उसके बाद क्या..?

उज्ज्वल भविष्य बनाने को अपनी माँ के गले लगकर घर से स्कूल पढ़ने के लिए निकली मासूम दो बच्चियां बीते कल हमेशा-हमेशा के लिए माँ की गोद सूनी कर मौत की लंबी नींद में सो गईं । शिमला के खलीनी बस हादसे ने एक बार फिर झकझोर कर रख दिया। नूरपूर हादसे के जख्म फिर ताजा हो गए, वहीं प्रशासन की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवाल उठने भी शुरू हो गए। हादसों से लील होती जिंदगियां झकझोर तो देती हैं पर उसके बाद क्या..? कुछ दिन तक खुब शोर, जाँच, वायदे, दिलासा और सख्ती फिर….. कुछ नहीं! जिनके घर सूने हो गए, जिनके घर के मासूम चिराग बुझ गए, जिनके अपने इन हादसों के ग्रास बन गए उनके कभी न भरने वाले दिल के घाव कुछ दिनों के लिए नहीं उनके ताउम्र की वो पीड़ा है जिनका इलाज दुनिया की कोई दवा कभी नहीं कर सकती।

बच्चियां स्कूल के लिए अभी घर से बस में कुछ दूर ही निकली थी, कि अचानक स्कूल पहुंचने से पहले ही उन बच्चियों की किताबें, कापियां, लंच बॉक्स और पानी की बोतल छिटक बाहर गिर गई। दोनों मासूम बच्चियां खून से लथपथ बेहोश होकर मौत की नींद सो गईं। उसके बाद लोगों का रोष प्रशासन और सरकार पर जमकर फूटा।

लोगों का कहना था कि प्रशासन की लापरवाही सालों से आमजन पर भारी पड़ती आई है। प्रशासन और सरकार की नींद तभी टूटती है जब हादसे के शिकार मासूम लोग बनते हैं। आखिर प्रशासन और सरकार के लिए आम लोगों की जिंदगियां इतनी सस्ती क्यों समझी जाती हैं। बताया जा रहा है कि बस काफी पुरानी थी। यह खटारा हालत में थी। यही बस कई बार सड़क पर चढ़ाई के दौरान रुक जाती थी। बस में सवार लोगों को पहले नीचे उतारा जाता फिर चढ़ाई पर बस आगे बढ़ाने के बाद फिर लोगों को बस में बिठाया जाता। इस सड़क किनारे जगह-जगह गाड़ियां पार्क की होती है जिससे गाड़ियों को पास देने में भी दिक्कत होती है। वहीं स्थानीय लोगों ने कहा कि सरकार से कई बार इस बारे में गुहार भी लगाई गई लेकिन यहां पैराफिट की सुविधा होती तो आज तीन जीवन यूँ मौत के आगोश में न जाते।

लोगों का कहना है स्कूल प्रशासन दवारा बच्चों को बेहतरीन शिक्षा देने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन धरातल पर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? निजी स्कूलों के लिए बसों को एनओसी देने से पहले बच्चों की सुरक्षा हेतु बड़ी-बड़ी सुविधा की बातें होती हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के चलते हादसे रूकने का नाम नहीं लेते। प्रशासन बताए कि अभी तक कितनी निजी स्कूली बसों की चेकिंग और हादसों पर कार्यवाही की गई है। नई बसों को लेकर बड़ी-बड़ी तारिफें तो सरकार दवारा बटौरी जाती हैं लेकिन प्रदेशभर में खटारा बसें अभी तक चल रही हैं। आज हुए हादसे में स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने इस खटारा बस के लिए कई बार सरकार को अवगत कराया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। पार्किंग व्यवस्था और पैराफिट की समस्या पर समय रहते सरकार और प्रशासन ने पहले सुध ली होती, तो आज मासूम बच्चियां जीवित होतीं । आखिर कब तक प्रशासन और सरकार का ये ढुलमुल रवैया हम आमजन के जीवन से खिलवाड़ करता रहेगा।

प्रदेश के बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ तंग सड़कों के किनारे लोगों की गाड़ियां खड़ी रहती हैं, छोटी सड़कों के किनारे पैराफिट की कोई सुविधा नहीं, सड़कों की जगह-जगह खस्ता हालत है। कोई चेक रखने वाला नहीं। हर वर्ष करोड़ों रूपये सड़कों के लिए केंद्र से मिलते हैं लेकिन सड़कों की समस्या नहीं सुधरती।

 लोगों का यह भी कहना है कि हादसे होते हैं, प्रशासन और नेता लोग कार्यवाही का वायदा और दुख प्रकट करके चले जाते हैं। लेकिन न कार्यवाई होती है न हादसे रूकते हैं। सब फिजूल के दिखावे और वायदे होते हैं। सख्ती से नियमों का पालन हो व नियमों की अनदेखी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाई हो और लोगों की शिकायतों पर अम्ल किया जाए तो हादसे बहुत कम हो सकते हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन की बातें दिखावे भर है धरातल पर कुछ नहीं। आए दिन हो रहे ये हादसे सरकार और प्रशासन की अनदेखी की वजह से है। जिनके शिकार हम लोग हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सोमवार को आईजीएमसी में झंझीड़ी स्कूल बस हादसे में घायल बच्चों का हालचाल जानने पहुंचे। उन्होंने कहा कि हादसे के कारणों की मैजिस्ट्रेट जांच होगी। दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होगी। इससे पहले भी कुल्लू के बंजार में हुए निजी बस हादसे को लेकर सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे लेकिन जांच पूरी होने के बाद भी रिपोर्ट का खुलासा परिवहन विभाग द्वारा अभी तक नहीं किया गया है।

हादसों को जुबानी कार्यवाही से तो नहीं “रोका” जा सकता ! ......

हादसों को जुबानी कार्यवाही से तो नहीं “रोका” जा सकता ! ……

प्रदेशभर में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ हादसों को न्यौता दिया जा रहा है इसके लिए समय रहते जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि हादसों को काफी हद तक कम किया जा सके। आवश्यकता है प्रदेश में सबसे पहले सड़कों के किनारे पैराफिट लगाएं जाएँ, प्रदेश की हर छोटी बड़ी सड़कों के किनारे पैराफिट होना सुरक्षा की दृष्टि से सबसे अहम और पहली जरूरत है। जहाँ जगह हो वहां सरकार द्वारा उचित दरों पर पर्किंग की व्यस्व्था की जाए। पार्किंग को लेकर जहाँ तक संभव हो सड़कों को चौड़ा किया जाए। वहीं सरकार ने गाँव-गाँव सड़कें तो पहुंचा दी हैं लेकिन सड़कें संकीर्ण होने की वजह से छोटी गाड़ियाँ ही गुजर पाती हैं वहीं गाड़ियों को पास देने के लिए कई मील आगे-पीछे जाना पड़ता है जबकि बड़ी बसों के लिए ऐसी संकीर्ण सड़कों से गुजरना मतलब हादसों को न्यौता देना है। अगर कहीं इस तरह की सड़कों में लोगों द्वारा अपनी मर्जी से हर कहीं गाड़ियाँ खड़ी कर दी जाएँ तो मुसीबत का सबब फिर।

बहुत जरूरी है कि ऐसे में पार्किंग के लिए स्थान चिन्हित किये जाएँ। जिससे आम लोग खुद गाड़ियों को सड़क के किनारे नहीं अपितु नियमों का पालन करते हुए पार्किंग में लगाए। समय-समय पर प्रशासन और सरकार द्वारा चेक रखा जाए कि नियमों का पालन हो रहा है या नहीं। जितना सरकार और प्रशासन की आमजन को सुरक्षा व सुविधा मुहैया कराना जिम्मेदारी है उतना ही आम लोगों का भी फर्ज है कि नियमों का पालन खुद भी करें, कहीं भी जगह देखी नहीं, कि गाड़ी पार्क कर दी। दूसरों को आपकी वजह से असुविधा न हो इस बात का हमेशा ख्याल रखें। पहाड़ी इलाकों में असावधानी ज्यादा जानलेवा साबित हो सकती है। हादसों के वक्त ही क्यों सरकार और प्रशासन को कार्रवाई की याद आती है इस पर हमेशा जरूरी है  सतर्कता,सावधानी और सख्ती से नियमों की अनुपालना पर कड़ी नजर रखी जाए। लोग भी सहयोग करें जागरूक रहें।

सरकार और प्रशासन हादसे होने पर ही नहीं जागे अपितु हादसों पर अंकुश लगाने के लिए हमेशा अलर्ट रहे। जनता द्वारा सड़कों की समस्याओं से अवगत कराए जाने पर तुरंत एक्शन ले। लोगों के बार-बार शिकायतों को सुनकर अनसुना करने और लापरवाही करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही न होने से ऐसे गंभीर मामलों की अनदेखी के चलते आए दिन हो रहे दर्दनाक हादसों पर जुबानी कार्यवाही से तो लगाम नहीं लगाई जा सकती !

 

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