बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अभिभावकों व शिक्षक वर्ग की भूमिका “अहम”, लेकिन…!

 बच्चे तो मिट्टी के घड़े समान होते हैं जैसे आप ढालोगे वैसे ढल जाएंगे

बच्चे तो मिट्टी के घड़े समान होते हैं जैसे आप ढालोगे वैसे ढल जाएंगे

एक वक्त था जब गुरु शिष्य का रिश्ता बहुत गहरा हुआ करता था। अध्यापक बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ उन्हें उचित संस्कार भी देते थे। शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए उन्हें विकसित किया जाता था। उस वक्त बच्चे अपने अध्यापकों को पूरा सम्मान इज्जत देते थे। तो वहीं बच्चों को समान रूप से शिक्षा दी जाती थी। अभिभावकों दवारा भी अध्यापकों का सम्मान किया जाता था। अध्यापक भी सभी बच्चों को अपने बच्चों के समान शिक्षित करते थे। लेकिन आज शिक्षा का स्तर इतना बदल गया है कि न बच्चों की शिक्षा समझ आती है, न अध्यापकों की बच्चों को शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना दिखाई देती है, न माता-पिता का बच्चों के साथ तालमेल। कुल मिलाकर बात यह है कि हर तरफ तालमेल की कमी झलकती है।

क्या निजी स्कूल, क्या सरकारी स्कूल, अपने बच्चों को सभी अभिभावक बेहतरीन शिक्षा देना चाहते हैं। इसमें अभिभावकों से लेकर अध्यापक तक सभी की अहम भूमिका होती है। लेकिन टीचर्स अभिभावकों को कोसते हैं तो अभिभावक टीचर्स को। क्यों अध्यापक भूल जाते हैं बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार घर से ही नहीं बल्कि स्कूल से भी मिलते हैं। माता-पिता के लिए उनका बच्चा पूरी दुनिया है। तो वहीं अभिभावकों को भी समझना चाहिए कि हर टीचर अपने स्टूडेंट्स की बेहतरी ही चाहते हैं और उनके लिए बेहतर शिक्षा के साथ-साथ अच्छे इंसान बनाने की कोशिश और जिम्मेदारी रहती है, जिसे टीचर्स बखूबी निभाना चाहते हैं। लेकिन सभी अभिभावक और सभी टीचर्स एक समान नहीं होते यह भी एक सच्चाई है। आए दिन होती घटनाएं और सामने आ रही खबरें दिल को दहला देती हैं।

बच्चे तो मिट्टी के घड़े समान होते हैं जैसे आप ढालोगे वैसे ढल जाएंगे

एक बच्चा जब घर से अपने पापा-मम्मी और परिवार के अन्य लोगों के सरंक्षण से बाहर निकलता है तो उसे सब अलग-अलग सा लगता है। जहां उसे अपने जैसे बहुत से बच्चे मिलते हैं और पहली बार टीचर मिलते हैं। जो उन बच्चों को पहली बार माता-पिता के बाद प्यार, शिक्षा और अनुशासन के नियमों में चलना सिखाते हैं। स्कूल चाहे निजी हों या सरकारी। नर्सरी से लेकर स्कूल की 12वीं कक्षा तक बच्चे घर से ज्यादा स्कूल में सीखते हैं शिक्षा, संस्कार और  अनुशासन। जीवन में आगे बढ़ते हुए सभी का सम्मान करते हुए एक बेहतर इंसान बनने का हुनर। लेकिन इस बीच परिवार का अहम रोल भी बना रहता है। टीचर्स के दिए संस्कारों का, शिक्षा का, बच्चों से घर पर भी अनुसरण कराया जाए। बच्चे तो मिट्टी के घड़े समान होते हैं जैसे आप ढालोगे वैसे ढल जाएंगे।

 हर माता-पिता और टीचर्स का उद्देश्य जब हर बच्चे व स्टूडेंट्स को बेहतर कल के लिए देश की नींव मजबूत बनाना है तो आखिर बच्चे भटक कर गलत राहों में कैसे पहुंच जाते हैं? यह सोचने वाला पहलू है।

कमी कहाँ रह जाती है? खामियां किसकी हैं? क्या बच्चों की, अभिभावकों की या फिर शिक्षकों की?

कमी कहाँ रह जाती है? खामियां किसकी हैं? क्या बच्चों की…. जो घर से सीधे स्कूल पहुंचते हैं और धीरे-धीरे स्कूल और परिवार के नियमों में चलते हुए पढ़ाई, खेलकूद और आप लोगों से मिल रहे संस्कारों को ग्रहण करने लगते हैं। बच्चे स्कूल पहुंचते हैं टीचर्स उन्हें अनुशासन, शिक्षा और खाना कैसे खाया जाता हैं, उन्हें सिखाते हैं। जिसे बच्चे भी धीरे-धीरे सीखते है। बच्चे अपने आस-पास दूसरे बच्चों से भी कई बातें सीखते हैं। उसे कोई चालाकी नहीं आती, उसे कोई झूठ बोलना नहीं आता क्योंकि वो सिर्फ सीख रहा होता है। सुबह से दोपहर तक स्कूल में बच्चे टीचर्स से और दोपहर से अगली सुबह स्कूल जाने तक अपने अभिभावकों से सीखते ही तो हैं।

चलिए पहले निजी स्कूल की बात करते हैं स्कूल में सभी टीचर्स एक जैसे नहीं होते जाहिर सी बात है। निजी स्कूल में हर टीचर्स पर बेहतर काम का दबाव होता है क्योंकि प्रतिस्पर्धा का दौर है। निजी स्कूल भी अब बहुत हो गए हैं और हर निजी स्कूल खुद को बेहतर साबित करने की होड़ में है।

कुछ अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों की गलतियां टीचर्स की बात सुनने के बजाए अपने ओहदे और पैसों की धमकी देकर अनदेखा करने की कोशिश की जाती है। तो कुछ अभिभावक अपने समय की कमी के अभाव के चलते बच्चों की गलतियों को अनदेखा करते हैं..और टीचर्स से अपने बच्चों के लिए उलझ जाते हैं। जिससे बच्चों को गलत करने की शय मिलती है। अभिभावकों दवारा बच्चों की गलतियों को अनदेखा करने पर इनमें कहीं न कहीं बच्चा ही पिसता है। टीचर्स अभिभावकों और अभिभावक टीचर्स की खामियां निकालते हैं, कमी आपसी तालमेल की है जो हर टीचर्स और अभिभावकों के बीच होना जरूरी है। जिन टीचर्स-अभिभावकों का तालमेल बेहतर है वहां बच्चे भी बेहतर हैं और अच्छा प्रदर्शन कर भी रहे हैं।

तालमेल की जहां कमी हैं वहां सवाल ही सवाल हैं…जैसे कुछ अभिभावकों का कहना है कि हम निजी स्कूलों को मुँह माँगी फीस दे रहे हैं तो हमारा बच्चा क्यों पीछे है? लेकिन वहीं टीचर्स कहते हैं हम बच्चों को पढ़ाते हैं लेकिन कुछ बच्चे बहुत अच्छा करते हैं तो कुछ कर नहीं पाते। उन्हें प्रेक्टिस की जरूरत होती है घर वाले ध्यान नहीं देते। सभी बच्चे तो एक समान नहीं होते, कुछ जल्दी सीख लेते हैं तो कुछ देरी से। कुछ टीचर्स का कहना होता है हम बच्चों को डांट तक नहीं सकते अगर वो बार-बार प्यार से समझाने पर भी न समझे तो हम क्या करें। हमें अपनी क्लास का सिलेबस पूरा कराना है हम कराएंगे। जो बच्चा करेगा या कर सकता है उसे कराते हैं अभिभावकों से मीटिंग में भी बार-बार कहते हैं हमें सहयोग करें, लेकिन बावजूद उसके भी कोई न सुने तो क्या किया जा सकता है।

सरकारी स्कूलों के टीचर्स को गंभीर होकर काम करने की आवश्यकता

टीचर्स और प्रशासन के ढुलमुल रवैये के चलते मासूम बच्चों का भविष्य दांव पर

टीचर्स और प्रशासन के ढुलमुल रवैये के चलते मासूम बच्चों का भविष्य दांव पर

चलिए अब बात करते हैं सरकारी स्कूलों की। क्या गांव, क्या शहर, सरकारी स्कूलों में अब शिक्षा स्तर उठने के बजाए गिरता जा रहा है। हमारी टीम ने इसके बारे में गाँव के सरकारी स्कूल टीचर्स और अभिभावकों से भी बात की। टीचर्स का कहना था कि हम तो बच्चों को पूरे ध्यान से पढ़ाते हैं लेकिन आजकल निजी स्कूलों की तरफ लोग ज्यादा जाना चाहते हैं। अपने घर से दूर गांव के दूर-दराज जगहों पर डयूटी दे रहे हैं और क्या कर सकते हैं।

तो वहीं कुछ टीचर्स का कहना है कि हम गांव-गांव जाकर अभिभावकों से मिलकर उन्हें सरकारी स्कूलों में मिल रही सुविधाओं और अच्छी पढ़ाई के बारे में अवगत करा रहे हैं। लेकिन सभी सरकारी स्कूलों के टीचर्स को गंभीर होकर काम करने की आवश्यकता है।

वहीं कुछ टीचर्स ने बताया कि अभिभावकों का कहना है कि 5वीं या 8वीं तक बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना बेहतर है उसके बाद सरकारी स्कूल में भेज सकते हैं क्योंकि बच्चा समझदार भी हो जाता है और तब तक बच्चा पढ़ाई की बारीकियां बेहतर ढंग से निजी स्कूल से सीख लेता है।

वहीं अभिभावकों से जब हमारी बात हुई तो अधिकतर लोगों का यही कहना था कि सरकारी स्कूलों के टीचर्स हजारों में वेतन ले रहे हैं तथा पढ़ाई के नाम पर कुछ नहीं कराते। कुछ टीचर्स काम के प्रति ईमानदार हैं तो कुछ स्कूल में टाइम पास करते हैं। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों का स्तर आय दिन नीचे गिरता जा रहा है। कुछ एक सरकारी स्कूल हैं जो बहुत बेहतर काम कर रहे हैं लेकिन सभी स्कूल अच्छे ही हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है। गांव में भी सरकारी स्कूलों में माता-पिता अपने बच्चों को भेजने से गुरेज करते हैं। देश के कई गांव ऐसे हैं जहां लोग बहुत गरीब हैं जो सरकारी स्कूलों में बच्चों को भेजते हैं वो भी सरकारी सुविधाओं के लाभ के चलते। उन्हें बच्चों की पढ़ाई से कोई सरोकार नहीं।

धरातल पर जाकर मुझे ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिला। जिसमें गरीब लोगों का कहना था कि बच्चों को पढ़ाने से हम गरीब को क्या मिलेगा। अमीर तो पढ़ाएंगे आगे, हम अपने बच्चों पर 10वीं करने के बाद पढ़ाई और नौकरी के लिए पैसा कहां से खर्च करेंगे। सरकार 10वीं तक मुफ्त पढ़ा देगी उसके बाद क्या? हम आगे क्या करेंगे?

काम के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों में वेतन बहुत कम

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