मैं जिदंगी का साथ निभाता चला गया".......

“मैं जिदंगी का साथ निभाता चला गया”…….

 यादें (दिवंगत अभिनेता देव आनंद​)

“आना जाना हमेशा अपने हाथ में थोड़े ही रहता है दोस्त। इंसान सोचता है मैं उधर चलूं, किस्मत कान पकड़कर उधर ले जाती है। सोचता है इधर चलूं, नाक पकड़कर उधर खींच ले जाती है।”

सिर हिलाना, एक तरफ झुककर डांस करना, गले में स्कार्फ औऱ सिर पर टोपी, ये सारे अंदाज किसी फिल्म के स्क्रिप्ट की मांग नहीं थे, बल्कि ये बॉलीवुड के एवरग्रीन रोमांटिक सुपरस्टार देव आनंद का खुद का स्टाइल था। जिसे देखकर हर कोई देव आनंद

देव आनंद

देव आनंद

का  फैन हो गया। जिसका नाम आते ही ज़हन में ज़िन्दादिली, रोमांस, स्टाइल और जोश से भरे एक शख्स की तस्वीर उभर जाती है। जो अपने बेहतरीन अंदाज और खूबसूरती की वजह से दुनियाभर में अपने लाखों फैंस के दिल पर आज भी राज करता है, उसी का नाम देव आनंद है। अपनी किस्मत का सिक्का आजमाने सीधे मायानगरी के लिए निकल पड़ता है। ट्रेन की रफ्तार बढ़ती जाती है, पर उस गोरे-पतले छरहरे बदन वाले शख्स का सबकुछ पीछे छूटता जाता है

“आना जाना हमेशा अपने हाथ में थोड़े ही रहता है दोस्त। इंसान सोचता है मैं उधर चलूं, किस्मत कान पकड़कर उधर ले जाती है। सोचता है इधर चलूं, नाक पकड़कर उधर खींच ले जाती है।”

ये सिर्फ एक कलाकार के डॉयलॉग नहीं है, उनकी सच्चाई है, उनकी जिंदगी है, उनकी रूमानियत है। जी हां, लाहौर से ट्रेन पकड़कर एक शख्स मुंबई आता है। अपना सब कुछ दांव पर लगाता है. मां-बाप, भाई-बहन और यहां तक कि अपनी पहली मोहब्बत भी। जेब में तीस रूपए लेकर फ्रंटियर मेल में सवार बीस साल का नौजवान छोरा अपनी किस्मत का सिक्का आजमाने सीधे मायानगरी के लिए निकल पड़ता है। ट्रेन की रफ्तार बढ़ती जाती है, पर उस गोरे-पतले छरहरे बदन वाले शख्स का सबकुछ पीछे छूटता जाता है। उसे खुद भी नहीं पता था कि जिसे वो पीछे छोड़ रहा है, वो तो कुछ नहीं, बल्कि आने वाले दिन में उसकी किस्मत पूरे संसार को उसका दीवाना बना देगी।

  • देव आनंद, जिसकी जिंदगी पल-पल बहती एक कलकल नदी के समान थी

अपने करियर में 110 से भी ज्यादा फिल्में करने वाले देव साहब ने कामयाबी की ऐसी ऊंचाइयों को छुआ कि, वो शब्द जिसे स्टारडम कहते हैं, उसके भी मायने बदल गए। देव आनंद, जिसकी जिंदगी पल-पल बहती एक कलकल नदी के समान थी, उसमें मोड़ तो खूब आए, लेकिन कभी विराम नहीं आया। छह दशकों में न जाने कितनी पीढ़ियां, विचार और नायक बदल गए, मगर कुछ नहीं बदला तो वो था देव साहब का अंदाज़, इसीलिए उन्हें सदाबहार अभिनेता का खिताब मिला।

  • देव आनंद काफी अध्ययनशील थे और कई भाषाएँ जानते थे

बॉलीवुड में लगभग छह दशक से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले देव आनंद को अदाकार बनने के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। उनका जन्म 26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता पिशोरीमल नामी वकील होने के साथ कांग्रेस कार्यकर्ता थे और स्वतंत्रता आंदोलन में जेल भी गए थे। वे काफी अध्ययनशील थे और कई भाषाएँ जानते थे। उन्हें हिन्दी/अँग्रेजी/संस्कृत/उर्दू/पंजाबी/ /अरबी/जर्मन/हिब्रू जैसी भाषाएँ आती थीं। किताबें पढ़-पढ़ कर उन्होंने इन भाषाओं को सीखा था। गीता और कुरान पर उनका अच्छा अधिकार था और बाइबिल के बारे में तो वे सदा कहा करते थे कि अगर अँगरेजी भाषा सीखनी हो, तो बाइबिल पढ़ो। देव आनंद अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान थे। वे कुल नौ भाई-बहन थे। चार भाई और पाँच बहनें। देव तीसरे पुत्र थे। दो बड़े भाई थे, मनमोहन और चेतन आनंद और छोटा भाई विजय आनंद। देव आनंद को जानने वाले चेतन और विजय आनंद को जानते हैं, जिन्होंने देव आनंद की फिल्म निर्माण संस्था नवकेतन के माध्यम से फिल्मी दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाया। मनमोहन और चेतन आनंद का निधन हो चुका है। 1940 में देव आनंद की माता का निधन हो गया था, इसलिए इन भाई-बहनों को आपस में एक-दूसरे की देखभाल की जवाबदारी पूरी करनी पड़ी। देव आनंद ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर सरकारी कॉलेज में पूरी की। वह इसके आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं और अगर वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर लें।

  • फिल्मों की सफलता के बाद देव साहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

नौकरी के साथ ही देव साहब अपने बढ़े भाई चेतन आनंद के साथ इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन से जुड़ गए, जिसके तुरंत बाद देव साहब को ‘हम एक हैं’ फिल्म का ऑफर मिल गया और इसी के साथ 1946 में देव साहब ने बॉलीवुड में अपना पहला कदम रखा। फिल्म ‘हम एक हैं’ में देव साहब के साथ मुख्य भूमिका में थीं सुरैया जो उस समय की नंबर वन हीरोइन और गायिका थीं, और जब तक 1947 में देव साहब की दूसरी फिल्म ‘ज़िद्दी’ रिलीज़ हुई वो एक सुपर स्टार बन चुके थे

इन फिल्मों की सफलता के बाद देव साहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिल्म ‘जिद्दी’ देव आनंद के फिल्मी कैरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। 

  • सफलता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे देव साहब ने 1949 में निर्माता बनने का निर्णय लिया

सफलता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे देव साहब ने 1949 में निर्माता बनने का निर्णय लिया और इसी के साथ बैनर ‘नवकेतन’ की शुरूआत हुई। 2011 तक ‘नवकेतन’ के तले करीब 35 फिल्में बन चुकी हैं।

1951 में ‘नवकेतन’ बैनर के तले आई फिल्म ‘बाज़ी’ का निर्देशन किया देव आनंद के दोस्त गुरूदत्त ने। इस फिल्म में देव साहब के साथ नज़र आईं कल्पना कार्तिक, जिनकी ये पहली फिल्म थी। फिल्म ‘बाज़ी’ की अपार सफलता के बाद देव साहब और कल्पना को एक साथ कई और फिल्मों का ऑफर मिलने लगा और सुपर हिट ऑन स्क्रीन जोड़ी को आखिरकार हक़ीकत में फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ की शुटिंग के दौरान प्यार हो गया। और 1954 में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।

1950 और 1960 का दशक देव साहब के लिए सिर्फ और सिर्फ कामयाबी लेकर आया

1950 और 1960 का दशक देव साहब के लिए सिर्फ और सिर्फ आया कामयाबी लेकर

1950 और 1960 का दशक देव साहब के लिए सिर्फ और सिर्फ कामयाबी लेकर आया। इस दौर में आईं उनकी सभी फिल्में सफल रही और अपनी अलग पहचान के चलते हर किसी के लिए स्टाइल आइकन बन गए। खासकर फिल्म हीरा पन्नाऔर हरे राम हरे कृष्णमें देव साहब ने अपने लुक्स के साथ जितने भी प्रयोग किए वो काफी हद तक सफल रहे और इसी के साथ स्कार्फ का फैशन आया। देव साहब के स्कार्फ पहने के तरीके ने तो उस दौर में तहलका मचा दिया था। अगर आप शाहरुख की फिल्म मोहब्बतेऔर देव साहब की फिल्म हीरा पन्नादेखें तो आपको पता चलेगा कि कंधे पर स्वेटर डालने का ट्रेंड शाहरुख ने नहीं बल्कि करीब 40 साल पहले देव साहब ने ही शुरू किया था। ये सारे ट्रेंड शुरू करने वाले देव साहब ने इन सभी को सिर्फ रील ही नहीं बल्कि अपनी रियल लाइफ में भी अपनाया था।

यही वो दौर थी जब देव साहब की एक के बाद एक कई सफल फिल्में आईं। ‘बाज़ी’ (1951), ‘हमसफर’ (1953), ‘टैक्सी ड्राइवर’ (1954), ‘मुनीमजी’ (1955), ‘सीआईडी’ (1956), ‘पेयिंग गेस्ट’ (1956), ‘नौ दे ग्यारह’ (1957), ‘काला पानी’ (1958), ‘काला बाज़ार’ (1960), ‘जाली नौट’ (1960), ‘बम्बई का बाबू'(1960), हम दोनों (1961), गाइड (1965), ज्वेल थीफ़ (1967), जैसी कई और फिल्मों को दर्शकों ने खूब सराहा।

  • देव साहब के लुक्स, स्टाइल और ऑन स्क्रीन रोमांटिक छवी के कारण पर लड़कियां फिदा थीं

इतना ही नहीं उनके लुक्स, स्टाइल और ऑन स्क्रीन रोमांटिक छवी के कारण देव साहब पर लड़कियां फिदा थीं। ‘अभी न जाओ छोड़कर..’, ‘खोया खोया चांद..’, ‘आंखों ही आंखों में इशारा हो गया..’, ‘है अपना दिल तो आवारा..’, ‘दिल पुकारे आरे-आरे-आरे..’ और न जाने ऐसे ही कितने गाने जिन्हें देख कर देव साहब पर लड़कियां दीवानी हो गई थीं, वो भी पागलपन की हद तक। खासकर जब लड़कियों ने देव साहब को काले सूट में देखा तो अपने प्यार का इज़हार करने के लिए खून से ही खत लिखने शुरू कर दिए, जिसके बाद किसी भी पब्लिक फंक्शन में देव साहब के काले रंग का सूट पहनने पर ही बैन लगा दिया गया।

Pages: 1 2 3

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *