कौन सुनेगा किसको सुनाएं इसलिए.....आवाज उठाएं सबको बताएं!

“आम आदमी”….!!

  • ये समस्याएं आज नहीं पनपी वर्षों पुरानी हैं….
  • अपने घरों की नींव तो मजबूत कर ली परन्तु कुछ आम आदमी के कच्चे घरों को ढहा दिया
  • …जो ईमानदार, नेक, निर्भीक, और बेदाग छवि का नेता व अधिकारी होगा वो आपकी जरुर सुनेगा
  • समस्याओं के “चक्रव्यूह” में उलझा हर आमजन
  • …लेकिन आवाज अपनी दबाना मेरी फितरत में भी नहीं !

आज सुबह गांव से “ताऊ जी” का फोन आया। वो पूरे “गांव” में सबसे बुजुर्ग हैं। गांव जाना तो बहुत कम होता है! आज यूँ उनका फोन आया तो माथा ठनका। दबी सी आवाज थी उनकी, उन्होंने 45 मिनट तक मुझसे बात की। बोले: क्या जमाना आया है सरकारी नौकरी या प्राइवेट के लिये पहले हम परहेज करते थे। खेती बाड़ी से ही साल भर में इतना कमा लेते थे कि नौकरी से 5 साल तक आप लोग उतना नहीं कमा सकते। अब नौकरी से इतना मिल जाता है कि 5 साल तक इतना खेती बाड़ी से नहीं कमा सकते, यह हालत हो गयी है अब। पर…अब नौकरी ही नहीं मिलती। सारी फसलें जानवर खा देते हैं बच्चे खेती करना नहीं चाहते। कभी बारिश तो कभी सूखे से फसलें खराब हो जाती हैं। जिसकी चलती है उसको सब मिल रहा है जिसकी नहीं चलती उसको कोई नहीं पूछता!

बच्चे बोलते हैं खेतीबाड़ी में अब कुछ नहीं है। उनको कहते हैं कि सरकार खेतीबाड़ी के लिए पैसा देती है, तो बच्चे बोलते हैं कागजी काम हैं सारे। बीमार होने पर दवाई को जाओ तो टेस्ट के लिए बोलते हैं। तुम्हारे शिमला आओ तो पूरा दिन डॉक्टर और टेस्ट वालों के पास ही घूमते रह जाते हैं। टेस्ट तब भी नहीं होता। बोलो क्या करें! इस मंहगाई में क्या रोटी खाये क्या बचाएं। महंगाई रुकने का नाम नहीं ले रही, बस का किराया इतना बढ़ा दिया तुम्हारी सरकार ने। कोई सुनने वाला नहीं। ताऊ जी बोले जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे आज वो काफी दुःखी हों, किसी बात से आहत हुए हों। ये वह आम आदमी हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन ईमानदारी और मेहनत से जीया, लेकिन किस बात से आहत हुए थे मुझे पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। मुझे उनकी बात को काटना उचित नहीं लगा। मैंने जी-जी कहकर आगे उनकी बात को सुनना जारी रखा। बोले: शहर क्या, गांव क्या, बच्चे बिगड़ रहे हैं। पता नहीं शराब, बीड़ी, सफेद पाउडर और न जाने क्या-क्या नशा खाते-पीते फिरते हैं।

हम बुड्ढे आम लोगों को पता नहीं क्या-क्या नि:शुल्क है। दवाई को जाओ तो पैसे लगते हैं, बस में जाओ तो इतना महंगा किराया लगता है। किसको क्या मुफ्त है पता नहीं! ये कुर्सी में कुछ लोग गलत बैठे हैं। सारा हिमाचल हमारा बर्बाद कर दिया है। बस का किराया महंगा और मोटर कार वालों की कतारें खड़ी हो गयी हैं सरकार किसको फायदा दे रही है पता नहीं। तुम लोग लिखो इस पर हमको कुछ नहीं मिल रहा। आज बारिश होगी, यहाँ आग लगी, इतना नेताओं ने काम किया, इस पार्टी ने इतना विकास किया, ये सब मत लिखो…. ये लिखो कि कुछ नहीं हुआ। देखना पूरा प्रदेश बोलेगा…..ये आम आदमी की आवाज है पैसों वालों को समझ नहीं आएगी। “आम आदमी” की कोई सुने तो सही…. यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया या कट गया पता नहीं, लेकिन उसके बाद उनसे बात नहीं हुई। उन्हें वापस फोन भी मैंने नहीं किया। क्योंकि जवाब नहीं था मेरे पास….अकेले मेरे आवाज उठाने से क्या होगा? लेकिन आवाज अपनी दबाना मेरी फितरत में भी नहीं।

  • वायदा तो आते-जाते सब करते गये… जीत के बाद बोले: काम करने वाले वायदे नहीं करते
  • परिवर्तन की लहर पर जनता को हर बार धोखा

खैर….प्रदेश की समस्याओं पर तभी क्यों आवाज उठती है जब उस समस्या पर कोई घटना घटित होती है। सड़कों की खस्ता हालत, बेरोजगारों की लंबी तादाद, किसानों का खेती-बाड़ी से विमुख होता मोह, सरकारी स्कूलों में कहीं अध्यापकों की कमी तो कहीं बच्चों की कमी, बुजुर्गों की पेंशन, अस्पतालों की खराब हालत, आसमान छूती महंगाई, चरमराती कानून व्यवस्था, नशे की गिरफ्त में जकड़ता जा रहा युवा। ये सब समस्याएं आज तो नहीं पनपी, एक साल या 8-10 सालों की भी नहीं ये वर्षों पुरानी हैं। आज इन उजागार होती कुरीतियों और समस्याओं ने अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर ली हैं कि आज इन सबसे हर आम आदमी आहत है। ये उन भ्रष्टाचार नेता और उन अधिकारियों की ही देन है जिन्होंने अपने घरों की नींव तो मजबूत कर ली लेकिन आम आदमी के कच्चे घरों को ढहा कर रख दिया है। चुनावी दौरों में वायदे बड़े-बड़े लेकिन काम के नाम पर हर बार कुछ भी नहीं। परिवर्तन की लहर की उम्मीद पर जनता को हर बार धोखा ही मिलता है।

  • महिलाओं के सशक्तिकरण की बातें तो बड़ी-बड़ी लेकिन वास्तविकता क्या?
  • योजनाएं गरीब जनता के लिए, फायदे उठाता है कोई ओर
अपने घरों की नींव तो मजबूत कर ली परन्तु आम आदमी के कच्चे घरों को ढहा दिया

अपने घरों की नींव तो मजबूत कर ली परन्तु आम आदमी के कच्चे घरों को ढहा दिया

महिलाओं के सशक्तिकरण की बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी की जाती हैं लेकिन वास्तविकता क्या है इस पर गौर करने की जरूरत है! यह मेरा दुःखड़ा नहीं। ये आम जनता का दर्द है। भले ही आज मोबाइल फोन, इंटरनेट सुविधाओं ने तहलका मचा दिया हो। पल-पल की खबर आपको एक ही पल में मिल जाती हो, लेकिन ये खबर नहीं लोगों के रोज की वो पीड़ा है जिससे वो रोजाना गुजरते हैं, जो तब दिखाई और छापी जाती है जब इन तकलीफों के लोग शिकार हो जाते हैं। योजनाएं किनके लिए होती हैं फायदे किन्हें पहुंचते हैं। यह वास्तविकता जानने के लिए कागजी नहीं जमीनी स्तर पर डोह लेने की आवश्यकता है। पैसा कहाँ जाता है? सोचने का विषय है जबकि घोषणाएं व उद्घाटन करोड़ों के हो जाते हैं। लेकिन कागजों पर सड़क, हॉस्पिटल, स्कूल और विकास के नाम पर करोड़ों खर्च हो जाते हैं लेकिन समस्याओं का अंत तो क्या होना उनमें कमी भी होती नजर नहीं आती, समस्याओं के भरमार लग जाती है। महिला सशक्तिकरण और स्वरोजगार जैसी योजनाओं की बातें तो खूब होती हैं लेकिन जब अपने हक के लिए लोग मांग करते हैं तो उसे लालच का नाम देकर कुछ अधिकारी उनके सपनों को रौंद देते हैं।

  • प्रदेश की नींव को जो मजबूती मिली वो सिर्फ उनसे जिन्होंने अपनी ईमानदारी से कभी कोई समझौता नहीं किया
  • ईमानदार नेता और ईमानदार अधिकारियों की बदौलत ही आज इतने भ्रष्टाचार के बीच भी सब अच्छा होने की आस आम आदमी की टूटी उम्मीदों को फिर जोड़ देती है

प्रदेश हो या देश की बात, हालात में परिवर्तन आम लोगों की समस्याओं परेशानियों में कम लेकिन कुछ बड़े नेताओं और कुछ अधिकारियों को ज्यादा पहुँचता है। ये एक ऐसी बीमारी है जो न कभी खत्म, न ही कभी कम हो सकती है। चाहे कितने ही ईमानदार नेता और बड़े अधिकारी कुर्सी में आ जाएं। लेकिन बावजूद इसके भ्रष्टाचार नेता और अधिकारी फिर भी उनके बीच में आपको मिलेंगे ही मिलेंगे। तभी तो आम लोगों के भले के लिए कभी कोई काम पूरा हो ही नहीं पाता। आज विकास और बेहतर दिशा में देश और प्रदेश की नींव को जो मजबूती मिल रही है वो सिर्फ चंद ऐसे नेताओं और अधिकारियों की बदौलत है जिन्होंने अपनी ईमानदारी से कभी कोई समझौता नहीं किया। जो अपने कार्य को बखूबी ईमानदारी से निभा रहे हैं। इन्हीं ईमानदार नेता और ईमानदार अधिकारियों की बदौलत ही आज इतने भ्रष्टाचार के बीच भी सब अच्छा होने की आस आम आदमी की टूटी उम्मीदों को फिर जोड़ देती है।

  • सड़कों पर करोड़ों रुपये खर्च, बावजूद प्रदेश की सड़कें फिर भी खस्ता हालत में

किसानों-बागवानों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं। करोड़ों रूपये केंद्र से प्रदेश सरकार को मिलते हैं लेकिन धरातल पर योजनाएं फेल होती हैं। सरकार कोई भी हो लेकिन सालों साल समस्याएं ज्यूँ की त्युं बनी रहती है। योजनाएं इतनी बनी इस कंपनी को इतने टेंडर दिये, सेब के पौधे इटली से मंगवाए गए कागजों पर सबका हिसाब मिल जायेगा… लेकिन किसानों-बागवानों को कितना क्या मिला, उसका कुछ पता नहीं! सड़कों पर भी करोड़ों रुपये व्यय होते हैं लेकिन प्रदेश की सड़कें फिर भी खस्ता हालत में हैं। शिमला के पुराने बस अड्डे की हालत सालों से नहीं सुधरी। बाकि दुर्गम इलाकों की बात तो क्या होगी?

  • महंगाई में राहत तो क्या?
  • देवतुल्य भूमि में आपराधिक घटनाओं ने बसाया डेरा

बेरोजगार युवाओं की तादाद बढ़ रही है। 5 से 10 पदों के लिए लाखों बच्चे आवेदन कर रहे हैं। अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव, कभी कोई मशीन खराब, कभी बिस्तरों का अभाव, तो कभी चरमराई सफाई व्यवस्था, तो कहीं डॉक्टरों की कमी। महंगाई में राहत तो क्या मिलेगी लेकिन सरकार मंहगाई को कम नहीं कर सकती। लगातार महंगाई बढ़ रही है। रसोई से लेकर बच्चों की पढ़ाई, बिजली-पानी,  बस का किराया, सब खर्चा ही खर्चा लेकिन कमाई का साधन क्या!

  • दूसरों का हक छीनकर चापलूसी से अपनी भर रहे हैं तिजोरियां

आए दिन प्रदेश में आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। जहाँ हिमाचल को देवतुल्य भूमि समझा जाता है वहां आपराधिक घटनाओं ने डेरा बसा लिया है। सरकार ने बुजुर्गों के लिए पेंशन योजना तो शुरू की है लेकिन इतनी महंगाई में 1300 या 1500 कहां तक जायज है। कहीं तो घर पर बुजुर्ग की देख-रेख के लिए कोई भी नहीं, ऐसे में बीमारी, घर का खर्च, बिजली-पानी इन सबके लिए बुजुर्गों के लिए कितना जायज है सोचने का विषय है! मंत्री, विधायक और सांसद को अच्छी पेंशन, लेकिन आम आदमी को 1300, 1500 भी बढ़ाकर सरकार को लगता है बहुत बड़ी डिग्री हासिल कर ली हो।

  • नशे की गिरफ्त में जकड़ता जा रहा प्रदेश का युवा
  • जो ईमानदार व नेक नेता और अधिकारी होगा वो आपकी जरुर सुनेगा…

वहीं आज हमारा हिमाचल का युवा पूरी तरह नशे की गिरफ्त में जकड़ता जा रहा है। इतना सब एकदम से तो नहीं हुआ ये सब किसकी देन है, चिंता का विषय है। कहीं न कहीं तो ऐसा ही है कि कोई जिसकी पहुंच बड़ी है लेकिन सही कामों के लिए नहीं सिर्फ अपने फायदे के लिए। ऐसे लोग अपने फायदे के लिए लोगों की ईमानदारी, आम जनता के हक से लूट-खसूट करने में लगे हैं। ऐसे लोगों को बेनकाब करना होगा। यह वक्त की बहुत बड़ी जरूरत है। ऐसे अधिकारी जो मेहनत और ईमानदारी से काम करने वालों का खुद हक खा रहे हैं और अगर वो अपने हक मांगे तो “लालच” का नाम दे रहे हैं और खुद दूसरों का हक छीनकर चापलूसी से अपनी तिजोरियों को भर रहे हैं। ऐसे देशद्रोही अधिकारी और नेताओं को भगवान जब सजा देगा तब देगा, लेकिन ऐसे अन्याय के खिलाफ आम आदमी को आवाज़ उठाकर खुद अपनी लड़ाई लड़नी होगी। क्योंकि जो ईमानदार और नेक अधिकारी और नेता होगा वो आपकी सुनेगा और आपके सहयोग के लिए खड़ा होगा। बस उसी तक आवाज़ पहुंचाओ बाकि आम जनता से बड़ा कोई नहीं। न कोई “नेता” न कोई “अधिकारी”।

 जय हिंद, जय भारत

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