उत्तराखंड वन अधिकारियों ने लिया ब्यूंस पर प्रशिक्षण

  • शिटाके मशरूम सहित क्रिकेट बैट बनाने में आती है काम

सोलन: ब्यूंस यानी विलो (सलीक्स प्रजाति) के पेड़ के बहुआयामी उपयोगों के लिए इसकी खेती को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारियों ने डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में इसके आयात,खेती और पंजीकरण पर एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया।

विश्वविद्यालय के वृक्ष सुधार और आनुवांशिक संसाधन विभाग ने इस प्रशिक्षण को आयोजित किया जिसे वन संरक्षक,रिसर्च सर्किल हल्दवानी द्वारा प्रायोजित किया गया था। इस प्रशिक्षण में वन रेंज अधिकारी, वन दरोगा और एक सहायक वन संरक्षक सहित दस लोगों ने हिस्सा लिया।

प्रशिक्षण के समन्वयक डॉ. जयपाल शर्मा ने बताया कि किसी पेड़ प्रजाति पर आधारित यह अपनी तरह का पहला प्रशिक्षण शिविर था। ब्यूंस, घर का फर्नीचर,प्लाईबोर्ड उद्योग,बकरियों के लिए चारा और क्रिकेट बैट बनाने में इस्तेमाल किया जाता हैं। इसके अलावा, बाज़ार में अच्छी कीमत देने वाली शिटाके मशरूम को भी ब्यूंस के भूरे और पेड़ की लकड़ी के लट्रठों पर उगाया जा सकता है।

इस प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न सत्र आयोजित किए गए। डॉ. जयपाल शर्मा द्वारा ब्यूंस के महत्व और वर्तमान परिदृश्य और विविधता पंजीकरण,डॉ कुलवंत राय ने लकड़ी के गुणों और डॉ. धर्मेश गुप्ता ने शिटाके मशरूम के बारे में प्रशिक्षणार्थीयों को बताया। वृक्ष सुधार और आनुवांशिक संसाधन विभाग के प्रोफेसर और हेड डॉ. संजीव ठाकुर ने ब्यूंस की नर्सरी और प्रचार तकनीकों पर प्रदर्शन भी दिया। वन अधिकारियों ने नौणी ग्राम पंचायत का दौरा किया और वहाँ के प्रधान बलदेव ठाकुर से बातचीत की।

प्रशिक्षण के अंतिम सत्र में वानिकी महाविद्यालय के डीन डॉ. पीके महाजन ने अपने सम्बोधन में वन विभाग और और विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों के बीच एक मजबूत समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि अनुसंधान कार्यों और नई तकनीकों को उचित रूप से लागू किया जा सके। डॉ संजीव ठाकुर ने वन अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि किसानों को ब्यूंस की खेती के लाभों से अवगत करवाया जाए ताकि इसे लगाने के लिए वह प्रेरित हो सके।

विलो अपने कई उपयोगों के लिए जानी जाती है, लेकिन भारत में पाए जानी वाली स्वदेशी विलो प्रजातियों में से अधिकांश औद्योगिक उपयोगों के लिए उपयुक्त गुणवत्ता वाली लकड़ी के पात्रों में खरी नहीं उतरती। इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए,विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न देशों के कई क्लोन को अपनी नर्सरी और फील्ड स्थितियों में अध्यनन किया है। विश्वविद्यालय द्वारा चयनित क्लोन की लकड़ी के नमूने का परीक्षण विभिन्न उद्योगों द्वारा किया गया है। कई संकर भी विकसित और स्क्रीन किए गए हैं और वाणिज्यिक खेती के लिए इसके रोपण की सिफारिश भी की गई है।

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