यह मेरा देवता, वह तेरा देवता
परिवार के देवते को कुलजा अथवा कुलज्ञ कहते हैं
गांव के एक छोर पर ग्राम देवता का बना होता है स्थान या मंदिर
हिमाचल के कुल्लू जनपद की बात करें तो यहां पर हर घर का अपना देवता, फिर गांव का अलग देवता, फिर फाटी का देवता, फाटी के बाद जनपद का अपना देवता। यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि किसी परिवार का कुल देवता, किसी अन्य ग्राम का देवता भी हो सकता है। इस रोचक जानकारी को कुछ यूं भी समझा जा सकता है। परिवार के देवते को कुलजा अथवा कुलज्ञ कहते हैं। गांव के एक छोर पर ग्राम देवता का स्थान या मंदिर बना होता है, जिसे पूरा गांव, गांव का हर परिवार भी मानता है अपनी कुलज के अलावा। चार-पांच-छह-सात गांवों को मिलाकर एक फाटी बनती है। जिसका अपना देवता है। इसके बाद है कोठी जिसमें कुछ फाटियां जोड़ी गई होती हैं। कोठी का अपना देवता होता है। इन सबके बाद जनपद का भी एक देवता होता है। जो इन सब परिवारों, गांवों, फाटियों तथा कोठियों के लिए पूजनीय होता है। यहां पहुंचकर यह मेरा देवता, वह तेरा देवता वाली बात खत्म हो जाती है। जनपद का हर व्यक्ति इस जनपद में पूजे जाने वाले देवता को सर्वोपरि तो मानता है किंतु प्रत्येक छोटे से बड़े क्रम में देव भी अवश्य पूजे जाते हैं।
आपको और भी स्पष्ट हो जाएगा जब आप जानेंगे कि कुल्लू के एक गांव कन्याल के एक परिवार की अवस्था। इस परिवार की कुलजा है बीर। कहीं-कहीं बीर को नारसिंह भी कहते हैं। किन्तु गांव कन्याल का देवता कहलाता है कार्तिकेये। जिस फाटी में यह गांव आता है उसका देवता या देवी है हिडिम्बा। जिस जनपद में यह फाटी है, उसके पूजनीय देवता का नाम है रघुनाथ। रघुनाथ ही भगवान राम हैं कुल्लू जनपद के। कुल्लू में इनका बड़ा मंदिर है जिसे रघुनाथ मंदिर कहते हैं, जहां कुल्लू राजा नियमित पहुंचते हैं।
सारे देवताओं के अतिरिक्त हर गांव में जोगणियों का भी बना होता है एक मंदिर जरूर
इन इतने सारे देवताओं के अतिरिक्त हर गांव में जोगणियों का भी एक मंदिर जरूर बना होता है। जोगणी का मतलब पवित्र देव कन्या। इन जोगणियों को पूजने, मानने के लिए भी खास तरीके, खास विधियां तथा विधान गांव वालों को अपनाने होते हैं। ग्रामवासी चाहे रोटी-रोज़ी के लिए कितना व्यस्त हों, इन परम्पराओं को जरूर मानता है। इसलिए देवी-देवताओं को पूजने, मनाने के खास विधि व विधान को पूरा करना आवश्यक माना जाता है।
- साभार: देवभूमि हिमाचल
- सुदर्शन भाटिया