मुख्य सचिव ने दिए सूखे जैसी स्थिति से निपटने को कृषि व बागवानी विभागों को कार्य योजना तैयार करने के निर्देश

फलों व फसलों को उगाने से लेकर मंडियों तक पहुंचाना नहीं आसान, फिर दाम उचित न मिलने की वेदना से आहत होता बागवान व किसान

  • किसानों के बच्चे शहरों में दिहाड़ी करना समझते बेहतर, क्योंकि अधिकतर फसलें जंगली जानवर कर रहे बर्बाद

    कई क्षेत्रों में अधिकतर किसानों की फसल का नफा-नुकसान मौसम पर निर्धारित

    कई क्षेत्रों में अधिकतर किसानों की फसल का नफा-नुकसान मौसम पर निर्धारित

  • कई क्षेत्रों में अधिकतर किसानों की फसल का नफा-नुकसान मौसम पर निर्धारित

प्रदेश में लगभग 80 प्रतिशत लोग खेती और बागवानी करते हैं। कई बार किसान की फसलें जंगली जानवरों द्वारा भी तहस-नहस कर दी जाती हैं। मण्डी के राजेश ठाकुर का कहना है कि अब ज्यादातर किसान शहरों की तरफ पलायन करने लगे हैं क्योंकि एक तो फसलों को जानवर बर्बाद कर देते हैं तो दूसरे खेती बाड़ी में ज्यादा मुनाफा न होने के चलते किसानों के बच्चे शहरों में दिहाड़ी करना बेहतर समझते हैं। कोई शहर आकर रेहड़ी फड़ी लगाकर कमा रहा है तो कोई दिहाड़ी पर काम कर रहा है, जोकि चिंता का विषय है। प्रदेश के ज्यादातर किसान ऐसे हैं जो मौसम के भरोसे बिजाई करते हैं क्योंकि अभी भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है। हालांकि प्रदेश सरकार इस ओर लगातार प्रयासरत है। परन्तु किसानों को फसल की बिजाई से लेकर उत्पादन के भंडारण व विपणन की चिंता बनी रहती है।

सोलन जिला के अर्की के मेहन्द्र सिंह ठाकुर का कहना है कि कुछ किसान-बागवान ऐसे हैं जिनके पास खेती-बागवानी के लिए काफी ज्यादा भूमि है। जो अपनी फसलों को बेहतरीन ढंग से खाद, स्प्रे अथवा कीटनाशक दवाइयां, सिंचाई के लिए पानी, फिर मंडियों तक पहुँचाने के लिए समय अनुसार उचित प्रबंध कर लेते हैं। सरकारी योजनाओं की जो वाकायदा पूरी जानकारी भी रखते हैं और उनका फायदा भी लेते हैं। जिसका उन्हें लाभ भी मिलता है। लेकिन वहीं कुछ किसान-बागवान ऐसे हैं जिनके पास खेती-बागवानी के लिए भूमि तो है लेकिन मौसम की मार, मंडियों में ठीक दाम न मिलने और आवारा पशुओं से फसलों के नुकसान और सरकारी योजनाओं की आधी अधूरी जानकारी के चलते कृषि की ओर रुझान नहीं ले रहे हैं। वे या तो खेतों को बंजर रखते हैं या फिर योजनाओं से फायदा समय पर न मिलने के चलते सरकार को कोसते हैं।  कुछ किसान-बागवान तो ऐसे हैं जो सरकारी योजनाओं का लाभ तो लेना चाहते हैं लेकिन वे योजनाओं के दायरे में ही नहीं आ पाते या फिर योजनाओं के लाभ से ज्यादा उन्हें कागज़ी कार्रवाई की चिंता रहती है जो देनी होती है लेकिन वे उससे पूरी करने से कतराते हैं।

  • योजनाओं का लाभ तभी मिल सकता है अगर किसान-बागवान अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों 

किसानों-बागवानों को केंद्र और प्रदेश की योजनाओं का लाभ तभी मिल सकता है अगर वो जागरूक किसान की भूमिका निभाएँ। योजनाओं का लाभ लें, मन में जो शंका है उसके बारे में अपने आसपास के किसान-बागवानों से बात करें व सरकारी जानकारी केन्द्रों से हासिल करें। सरकार द्वारा लगाए जाने वाली कार्यशालाओं व जागरूक शिविरों में भाग लें।

कृषि व बागवानी अधिकारियों से निवेदन है कि वे किसानों-बागवानों को सही और विन्रमता पूर्वक योजनाओं से अवगत कराएं और उनकी समस्याओं के समाधान में यथासंभव सहयोग करें। क्योंकि किसानों-बागवानों का सीधे संपर्क संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों से रहता है। वे उनकी दुविधा दूर करने की अहम कड़ी हैं। योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुंचे और हमारी प्रदेश की कृषि और बागवानी और सुदृढ़ हो, इसके लिए हम सबको प्रयास करने होंगे। ताकि बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मिल सके ताकि शहर की तरफ पलायन करने के बजाए वह अपनी कृषि और बागवानी को विकसित कर गाँव में ही खुशहाल जीवन व्यतीत कर सके।

  • परियोजना के अंतर्गत बागवानों को बीज से बाजार तक की सुविधा करवाई जाएगी उपलब्ध : बागवानी मंत्री

हाल ही में सिंचाई, जनस्वास्थ्य एवं बागवानी मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने परियोजनाओं की व्यवहार्यता की जानकारी के संबंध में हिमाचल दौरे पर आई एशियन विकास बैंक की टीम तथा बागवानी विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदेश के लिए बाह्य वित्तपोषित 1688 करोड़ रुपये की उपोष्ण कटिबंधीय बागवानी एवं 423 करोड़ रुपये की खुम्ब विकास परियोजनाएं ‘बीज से बाजार तक’ की संकल्पना पर आधारित हैं। परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य किसानों की आय को दो गुणा करने के लिए जहां अधिक से अधिक किसानों को बागवानी गतिविधियों से जोड़ना है, वहीं पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवाओं को नकदी बागवानी से जोड़कर उन्हें अपरोक्ष रोजगार प्रदान करना भी है।

 योजनाओं का लाभ तभी मिल सकता है अगर किसान-बागवान जागरूक हों अपने अधिकारों के प्रति

योजनाओं का लाभ तभी मिल सकता है अगर किसान-बागवान जागरूक हों अपने अधिकारों के प्रति

उन्होंने एशियन विकास बैंक के दल को आश्वासन दिलाया कि परियोजना की डीपीआर उनके दिशा-निर्देशानुरूप तैयार की जाएगी। हम बागवानी को राज्य के सभी क्षेत्रों में लाना चाहते हैं और इसके लिए कलस्टरों को चिन्हित करने का कार्य किया जा रहा है। कलस्टर वही गांव अथवा क्षेत्र चयनित किए जा रहे हैं जहां सिंचाई की सुविधा पहले से ही उपलब्ध है अथवा सिंचाई योजना निर्माणाधीन है।

उन्होंने कहा कि हालांकि राज्य में बेसहारा पशुओं, बंदरों व जंगली जानवरों से फसलों को नुकसान का हमेशा खतरा बना रहता है। इस पहलू को परियोजनाओं में विशेष रूप से ध्यान में रखा गया है। इसके लिए बागीचों की उपयुक्त फेंसिंग की जाएगी। ज़मीन पर कांटेदार बाड़ जबकि ऊपर से सौर फेंन्सिग करने का प्रावधान किया गया है।

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