- “किसान व बागवान हमारे हिमाचल का मान, फसलों से लहराते खेत, बागों में उगते सेब हम सबकी है शान ’’
- अधिकतर किसानों की फसल का नफा-नुकसान मौसम पर निर्भर….
- प्रदेश सरकार किसानों व बागवानों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सुदृढ़ करने के लिए निरंतर प्रयासरत
“किसान व बागवान हमारे हिमाचल का मान, फसलों से लहराते खेत, बागों में उगते सेब हम सबकी है शान ’’ जी हाँ। हमारे किसानों-बागवानों की मेहनत से हमारे हिमाचल की शान चौगुनी हो जाती है। आवश्यक है कि हम और हमारी प्रदेश सरकार किसान-बागवानों को हर संभव सहयोग और प्रोत्साहित कर प्रदेश की कृषि और बागवानी को ज्यादा से ज्यादा विकसित कर उनकी आर्थिकी को मजबूती प्रदान करे।
सुबह की पहली किरण से शाम के आखरी पहर तक हर किसान-बागवान अपने खेतों और बगीचों में अपनी फसलों की देखरेख करते दिखाई देते हैं। छोटे से लेकर बड़े होने तक जैसे माता-पिता अपने बच्चों को पालते हैं ठीक वैसे ही किसान-बागवान भी अपनी फसलों को हर धूप-छांव से बचाते हैं। पानी-खाद, स्प्रे, खरपतवार, कटाई-छंटाई, सूखे और भारी बारिश से फसलों को बचाना और फिर मंडियों तक पहुंचाना सब आसान नहीं।
किसान-बागवान अपनी दिन-रात की मेहनत से अपने खेतों और बागीचों को सींचते हैं अन्न और फल की पैदावार करके हम तक पहुंचाते हैं। ये वो लोग हैं जो हमारे देश की रीढ़ हैं। कभी सूखे की मार, तो कभी बारिश और ओलों से तबाह होती फसलों का खौफ उन्हें हर वक्त सताता है। रही सही कमी फसलों की होने वाली आमदनी से पहले फसलों के लिए महंगी खाद, स्प्रे अथवा कीटनाशक दवाईयां, सिंचाई के लिए पानी, तदोपरान्त फिर मंडियों तक पहुँचाने के लिए कई तरह की दिक्कतें जो उन्हें झेलनी पड़ती हैं वो अलग। हालांकि केन्द्र से लेकर प्रदेश सरकार तक द्वारा हमारे किसानों और बागवान भाईयों को कई प्रकार की योजनाओं के माध्यम से सुदृढ़ करने के प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन बावजूद इसके फिर भी कुछ समस्याएं विकट हैं।
- पिछले दो सालों से खाते में नहीं आई फूलों की सब्सिडी
बिलासपुर के मुकेश कुमार का कहना है कि सरकार सब्सिडी देने की बात तो करती है लेकिन अभी पिछले दो सालों से उनके खाते में सब्सिडी नहीं आई है। उन्होंने पॉलीहाउस लगाया है जिसमें फूलों की सब्सिडी के लिये जो पैसे मिलने थे उनके गांव के कई लोगों को अभी तक नहीं मिले हैं। उनका कहना है कि यहां तक वे फूलों को सरकारी बसों में बॉक्स के हिसाब से किराया देते हैं। लेकिन परिचालक दवारा साफ तौर पर यह नहीं बताया जाता कि प्रति बॉक्स फूलों का कितना किराया वसूल रहे हैं। इस बारे में वे कई बार परिचालक से बात भी कर चुके हैं।
- प्रदेश में फूलों का बाजार विकसित नहीं हुआ
वहीं प्रदेश सरकार द्वारा पु’ष्प क्रांति के तहत सभी जिलों को करोड़ रूपये आवंटित कर दिए हैं। लेकिन बावजूद इसके प्रदेश में सरकार की इंटीग्रेटिंग मिड योजना के तहत करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी प्रदेश में फूलों का बाजार विकसित नहीं हुआ है।
सालों से फूलों की खेती कर किसान नम्होल के राजपाल ठाकुर का कहना है कि वे काफी सालों से फूलों की खेती कर रहे हैं। उन्होंने 1500 वर्ग मीटर पॉलीहाऊस में फूलों की खेती विकसित की है लेकिन प्रदेश में बाजार की व्यवस्था न हो पाने की बजह से फूलों की खेती आधे से कम हो गई है। दिल्ली और चंडीगढ़ फूल बेचने पर आढ़ती कम दाम देते हैं।
वहीं कुछ किसान तो ऐसे भी हैं जो पॉलीहाऊस में फूलों के बजाय अदरक व अन्य सब्जियां लगा रहे हैं। वहीं सकरेड के हरिराम का कहना है कि अपने गाँव से फूलों को दिल्ली और चंडीगढ़ में पहुंचाना आसान नहीं। उस पर वहां आढ़ती अपनी मर्जी से फूलों के दाम तय करते हैं। प्रदेश सरकार को किसानों के लिए प्रदेश में ही फूलों को बेचने की बाजार की व्यवस्था की जानी चाहिए
हिमाचल बागवानी निदेशक एमएल धीमान का कहना है कि फूलों की खेती के लिए सभी जिलों को 10 करोड़ आवंटित किये गये हैं। सोलन में फूलों का बाजार विकसित करने की कोशिश की गई थी लेकिन योजना सफल नहीं हो पाई। फूलों की बिक्री के लिए सोसाइटी का सोलन और कांगड़ा में गठन किया जा रहा है। फ़िलहाल अभी इनका पंजीकरण होना है।
- यदि योजनाएं हैं तो उनका लाभ भी बखूबी मिलना चाहिए
- योजनाएं तो बहुत है परन्तु वास्तविक लाभ मिलने में लग जाते हैं सालों
किसानों के लिए यदि योजनाएं हैं तो उन्हें उनका लाभ भी बखूबी मिलना चाहिए और जो उनके लिए मुशिकलें आ रही हैं उनका समाधान भी होना चाहिए। मुकेश के साथ अन्य किसानों का भी यही कहना है कि योजनाएं तो बहुत हैं परन्तु वास्तविक लाभ मिलते-मिलते महीनों तो कभी सालों लग जाते हैं। वहीं बागवान भी दिन-रात अपने बगीचों में डटे रहते हैं। लेकिन बारिश, ओलों, तो कभी सूखे की वजह से फलों व अन्य फसलों के खराब होने का खतरा हमेशा बना रहता है।
- कई क्षेत्रों पर किसान-बागवान का जीवन सिर्फ कृषि व बागवानी पर ही निर्भर
- बगीचे से सेब को मंडियों तक पहुंचाने के लिये कड़ी मशक्कत
जुब्बल के बागवान राजेश चौहान कहना है कि कई बार ओलावृष्टि की वजह से सेब वक्त से पहले ही पेड़ों से गिर जाते हैं तो कई बार भारी बारिश के चलते सेब को मंडियों तक पहुंचाना ही मुश्किल हो जाता है। रास्ते खराब होने के चलते कई दिनों सेब सड़ने की कगार पर पहुंच जाते हैं। क्योंकि सड़कों की बदहाली और मंडियों में फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाते हैं। वहीं कई बार आढ़तियों दवारा समय पर पेमेंट भी नहीं दी जाती।
यह बात सही है कि प्रदेश की कई सड़कों की हालत बहुत खराब है। बरसात के मौसम में कच्ची पहाड़ी सड़कें दलदल और तालाबों में तब्दील हो जाती हैं जिससे सड़क दुर्घटनाओं का खतरा भी बराबर बना रहता है। उसके बावजूद भी मंडियों तक बागवान जैसे-तैसे अपनी फसल पहुंचाता है लेकिन कुछ आढ़तियों दवारा समय पर पेमेंट नहीं दी जाती। यहां भी कभी-कभी बागवानों को महीनों व सालों अपने पैसों के इन्तजार में रुकना पड़ता है। जबकि कुछेक किसान और बागवान का जनजीवन सिर्फ पूरी तरह कृषि व बागवानी पर ही निर्भर रहता है।
जुब्बल के किशोरी लाल का कहना है कि आजकल सेबों की स्प्रे, दवाइयां और खाद ही बहुत महंगी है। भले ही सरकारी सब्सिडी पर भी लोग लेते हैं लेकिन इसके उपरांत भी हर किसान-बागवान अच्छे किस्म के रासायनिक उत्पादों का प्रयोग करना चाहता है, क्योंकि यह पूरे साल भर की मेहनत की कमाई होती है। फसलों को कोई नुकसान न हो इसके लिए सरकारी के साथ-साथ बागवान खुद से भी अच्छी कंपनी की दवाई और स्प्रे जैसी चीजें खरीदकर ही लेते हैं। वहीं खुद के साथ-साथ काम पर मजदूरों को भी रखना पड़ता है क्योंकि बागवान अकेले सब नहीं कर सकता। सेब बगीचे से लेकर मंडियों तक पहुंचाने के लिये कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। मानसिक भी और शारीरिक भी।