नौणी विश्वविद्यालय में एआईसीआरपी की 29वीं वार्षिक कार्यशाला, वैज्ञानिकों ने देश में मसालों के उत्पादन पर की चर्चा

सोलन: डॉ. वाई एस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में आज शुरू हुई आईसीएआर के मसाला फसलों पर ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (एआईसीआरपी) की 29वीं वार्षिक कार्यशाला के उद्घाटन सत्र के दौरान वैज्ञानिकों ने अपने विचार रखे। मसाला फसलें भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और ये देश के किसानों की आय बढ़ाने में काफी मदद कर सकती है। इसके अलावा, जेनेटिक विविधता पर ध्यान केंद्रित करना और कच्चे माल के सप्लायर से उच्च मूल्य वाले मसालों-आधारित उत्पादों के निर्माता बनना समय की आवश्यकता है।

कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा किया जा रहा है। पिछले एक साल के दौरान किए गए शोध कार्यों की प्रगति की समीक्षा करने और मसालों पर नए कार्यक्रमों को अंतिम रूप देने के लिए देश के 23 राज्यों में स्थित 38 समन्वय केंद्रों के 110 से अधिक वैज्ञानिक कार्यशाला में हिस्सा ले रहे हैं। इस चार दिवसीय कार्यक्रम के दौरान मसालों के उत्पादन के लिए स्थान विशिष्ट किस्मों और प्रौद्योगिकियों की सिफारिश की जाएगी ताकि देश के मसाले अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें।

सब्जी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अश्विनी शर्मा ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया और विश्वविद्यालय को कार्यशाला की मेजबानी करने का मौका देने के लिए आईसीएआर का धन्यवाद किया। उद्घाटन सत्र में डॉ के.निर्मल बाबू,निदेशक,आईसीएआर-भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान,कोज़ीकोड और मसालों पर एआईसीआरपी के परियोजना समन्वयक ने पिछले एक साल के दौरान केंद्रों द्वारा की गई प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।

इस मौके पर उन्होनें बताया कि मसाले कम मात्रा वाले उच्च मूल्य उत्पाद हैं और इसकी खेती किसी भी फसल प्रणाली में की जा सकती है। भारतीय मसालों को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और विश्व का लगभग 50 प्रतिशत मसाला व्यापार भारत से होता है। भविष्य में, हम मसालों के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा बनाए रखना चाहते हैं। वर्ष 2050 तक विश्व का मसाला व्यापार 30-40 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। डॉ बाबू ने कहा कि हम उच्च मूल्य वाले फाइटोकेमिकल्स के बाजार पर कब्जा करना चाहते हैं, जिनका प्रमुख स्रोत मसाले हैं, क्योंकि भविष्य में व्यापार फार्मा-न्यूट्रास्यूटिकल कंपनियों के लिए होगा।

उन्होंने कहा कि भारत में अधिकांश मसालों में कीटनाशक से संबन्धित समस्या रहती है। इस मुद्दे को किसान, अनुसंधान संगठन और उद्योग की भागीदारी से संबोधित करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि देश दुनिया में खाद्य सुरक्षित मसालों की आपूर्ति जारी रखी जा सके।

अपने संबोधन में नौणी विवि के कुलपति डॉ एचसी शर्मा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में विभिन्न उच्च गुणवत्ता वाले मसालों की खेती की अपार संभावनाएँ हैं। उन्होंने मसालों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार के लिए एआईसीआरपी को मजबूत करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और किसानों के उत्पादन का बाजार मूल्य बढ़ाने के लिए जीआई टैग के उपयोग का सुझाव दिया। डॉ शर्मा ने वैज्ञानिकों से फसल सुधार के लिए आणविक उपकरण का उपयोग करने का भी आग्रह किया। बीज मसालों पर आईसीएआर-एनआरसी के निदेशक डॉ गोपाल लाल ने वैल्यू चेन मॉडल और एकीकृत कृषि मॉडल के विकास का सुझाव दिया।

इस अवसर पर केरल स्थित काली मिर्च रिसर्च स्टेशन को वर्ष 2017-18 के लिए सर्वश्रेष्ठ एआईसीआरपीएस केंद्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नौणी विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा तैयार ‘हिमाचल प्रदेश में स्पाइस फसलों के रोगों के निदान और प्रबंधन’ पर एक पुस्तिका सहित विभिन्न केंद्रों के तेरह प्रकाशन जारी किए गए।

मसालों पर आईसीएआर-अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना 14 मसाले फसलों जैसे काली मिर्च, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, अदरक, हल्दी, दालचीनी, जायफल, लौंग, धनिया, जीरा, सौंफ़, मेथी, अजवायन जैसी फसलों में अनुसंधान समन्वय कर रही है। वर्तमान में 23 राज्यों में एआईसीपीआरएस के 38 केंद्र हैं जो की देश के 14 प्रमुख कृषि-जलवायु क्षेत्रों में कार्य कर रहें हैं।

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