2023 तक राज्य की नर्सरियों में 52 लाख रूट स्टॉक तैयार करने की क्षमता : बागवानी मंत्री

  • 1134 करोड़ की बागवानी परियोजना पर न्यूजीलैण्ड व नीदरलैण्ड की परामर्शी एजेन्सी के साथ बैठक
  • बागवानी मंत्री ने जताई चिंता; विदेशों से बड़े पैमाने पर रूट स्टॉक मंगवाए गए, जिनमें से करीब 50 प्रतिशत पहुंचते ही सूख गए
  • प्रदेश की नर्सरियों में यहां की जलवायु के अनुकूल रूट स्टॉक तैयार करने की बेहतर संभावना मौजूद
  • परामर्शी एजेन्सी के अधिकारी भी फील्ड में जाएं और बागवानों को आवश्यक प्रशिक्षण व परामर्श करें प्रदान
  • इस संबंध में रिपोर्ट 10 दिनों के भीतर सौंपने के निर्देश
  • यदि परामर्शी एजेन्सी अपेक्षित परिणाम लाने में असमर्थ रहती है, तो इसके अनुबंध पर पुनः होगा विचार : बागवानी मंत्री
  • परियोजना की पाई-पाई किसानों व बागवानों पर होगी खर्च, किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं की जाएगी बर्दाश्त

शिमला : हिमाचल प्रदेश की नर्सरियों में 2023 तक 52 लाख सेब के रूट स्टॉक तैयार करने की क्षमता है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। यह बात सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य और बागवानी मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने आज यहां प्रदेश के लिए 1134 करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी बागवानी परियोजना में प्रगति को लेकर न्यूजीलैण्ड व नीदरलैण्ड की परामर्शी एजेन्सी के साथ बैठक के दौरान कही।

बागवानी मंत्री ने चिंता जाहिर की कि विदेशों से बड़े पैमाने पर रूट स्टॉक मंगवाए गए, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत पहुंचते ही सूख गए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थितियां व जलवायु उन देशों से भिन्न हैं, जहां से इस प्रकार के रूट स्टॉक मंगवाए जाते रहे हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रदेश की नर्सरियों में यहां की जलवायु के अनुकूल रूट स्टॉक तैयार करने की बेहतर संभावना मौजूद है और विभागीय अधिकारियों को इसके लिए लक्ष्य निर्धारित कर आने वाले समय में शत-प्रतिशत पौध यहीं पर तैयार करने के लिए अभी से प्रयास करने होंगे। हालांकि, 2023 तक 13 लाख रूट स्टॉक मौजूदा अधोसंरचना के अनुरूप तैयार होंगे, लेकिन एक सुनियोजित ढंग से ढांचागत सुविधाओं को मजबूत कर इसे लगभग चार गुणा तक बढ़ाने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि रूट स्टॉक के आयात को धीरे-धीरे कम करके राज्य की नर्सरियों की निर्भरता को बढ़ाएंगे।

महेन्द्र सिंह ठाकुर ने कहा कि यह परियोजना मुख्य रूप से सेब, नाशपाती जैसे सम-शीतोष्ण पौधों के विस्तार व पुनरुद्धार के लिए है, इसलिए आवश्यक है कि पौधों का आयात करने से पूर्व राज्य में भौगोलिक स्थितियों, सिंचाई की सुविधा व मिट्टी की जांच जैसे पहलूओं का पूरी तरह अध्ययन किया जाना चाहिए। उन्होंने परामर्शी एजेन्सी से राज्य के 7000 से 9000 फुट अथवा इससे अधिक ऊचांई वाले क्षेत्रों में सेब की पैदावार के लिए रूट स्टॉक की किस्मों का पता लगाने के लिए कहा। उन्होंने पौधों के वितरण से पूर्व राज्य के विभिन्न भागों में क्लस्टरों का उपयुक्त चयन करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि सिंचाई की व्यवस्था मुख्य घटक है, और क्लस्टर ऐसे चुने जाएं जहां पानी उपलब्ध हों, अथवा सिंचाई की योजना निर्माणाधीन हो।

बागवानी मंत्री ने कहा कि विभाग के सभी विषय विशेषज्ञ व बागवानी विकास अधिकारी फील्ड में जाकर परियोजना को ज़मीन पर उतारने के लिए किसानों व बागवानों से सीधा संपर्क स्थापित करें, और उन्हें संबंधित क्षेत्रों में पैदा होने वाले पौधों की जानकारी व परामर्श दें। उन्होंने कहा कि परामर्शी एजेन्सी के अधिकारी भी फील्ड में जाएं और बागवानों को आवश्यक प्रशिक्षण व परामर्श प्रदान करें। उन्होंने इस संबंध में रिपोर्ट 10 दिनों के भीतर सौंपने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि परामर्शी एजेन्सी यदि अपेक्षित परिणाम लाने में असमर्थ रहती है, तो इसके अनुबंध पर पुनः विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि परिणाम ज़मीन पर दिखने चाहिए और परियोजना की पाई-पाई किसानों व बागवानों पर खर्च की जाएगी, इसमें किसी प्रकार की अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने 2018-19 के लिए इस परियोजना के तहत लगभग 150 करोड़ रुपये की वार्षिक कार्य योजना को भी स्वीकृति प्रदान की। महेन्द्र सिंह ठाकुर ने कहा कि राज्य के उपोष्णकटिबंधीय (सब-ट्रॉपिकल) क्षेत्रों के लिए 1688 करोड रुपये की बागवानी परियोजना स्वीकृत की गई है।

बैठक में अतिरिक्त मुख्य सचिव आर. डी. धीमान, परियोजना निदेशक दिनेश मल्होत्रा, बागवानी निदेशक एम.एल. धीमान, नीदरलैण्ड परामर्शी एजेन्सी के प्रमुख फ्रेंक मैस व न्यूजीलैण्ड एजेन्सी का दल तथा बागवानी विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।

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