नौणी विवि में 31 लोगों को मिला मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण

  • मधुमक्खी और रानी मधुमक्खी पालन को प्रदेश में बढ़ावा देने हेतु प्रशिक्षण
  • राज्य में अनुचित रानियों के कारण कम उत्पादकता और मधुमक्खियों में बीमारी की समस्या: डॉ. हरीश शर्मा
  • : यदि स्वस्थ और बेहतर प्रदर्शन करने वाली कॉलोनियों से रानियाँ बनाई जाएँ तो बीमारी की घटनाएं होंगी कम और उत्पादकता भी होगी अच्छी

नौणी : मधुमक्खी और रानी मधुमक्खी पालन को प्रदेश में बढ़ावा देने और हिमाचल में सेब जैसी अन्य बागवानी फसलों की कम उत्पादकता के मुद्दे को संबोधित करने के लिए, राज्य के 31 अनुभवी मधुमक्खी पालकों ने नौणी स्थित डॉ. वाईएस परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में तीन सप्ताह के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया।

यह प्रशिक्षण हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के तहत विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित किया गया। भाग लेने वाले सभी मधुमक्खी पालकों के पास एपिस सेरेना या एपिस मेलिफेरा मधुमक्खियाँ है। सभी प्रशिक्षणाथियों को रानी उत्पादन पर विशेष संदर्भ के साथ मधुमक्खी प्रजनन पर प्रशिक्षण दिया गया। अब यह मधुमक्खी पालक उनके पास मौजूद मधुमक्खियों की सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली कॉलोनी से मधुमक्खियों और रानी मधुमक्खी की कृत्रिम सामूहिक पालन पर काम करेगें।

मधुमक्खी और रानी मधुमक्खी पालन को प्रदेश में बढ़ावा देने हेतु प्रशिक्षण

मधुमक्खी और रानी मधुमक्खी पालन को प्रदेश में बढ़ावा देने हेतु प्रशिक्षण

प्रशिक्षण के बारे में वरिष्ठ कीट वैज्ञानिक और कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. हरीश शर्मा ने बताया कि राज्य में अनुचित रानियों के कारण कम उत्पादकता और मधुमक्खियों में बीमारी की समस्या है। उनके अनुसार अगर नई कॉलोनी को बढ़ाने के लिए यदि स्वस्थ और बेहतर प्रदर्शन करने वाली कॉलोनियों से रानियाँ बनाई जाएँ तो इनमें बीमारी की घटनाएं भी कम होंगी और उत्पादकता भी अच्छी होगी।

डॉ. शर्मा ने कहा कि जिस तरह कृषि और बागवानी में अच्छी किस्म के बीज और रोपण सामग्री से ही अच्छी फसल होती है उसी प्रकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए स्वस्थ और अच्छी रानी की आवश्यकता होती है। इन रानियों से मधुमक्खी पालक अपने लिए मधुमक्खी की नई कॉलोनी स्थापित करने या बिक्री के लिए उपयोग में ला सकते हैं। इससे अच्छी गुणवत्ता और स्वस्थ कॉलोनी को स्थापित करने के लिए कम समय लगेगा। इस तीन सप्ताह के प्रशिक्षण के बाद, अधिकांश प्रशिक्षणार्थी खुद के लिए रानी पालन करने के लिए उत्सुक हैं। वहीं कुछ तो रानी मधुमक्खी को बेचकर इसे एक व्यवसाय के रूप में शुरू करना चाहते हैं।

प्रशिक्षण के अंतिम दिन अपने संबोधन में विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. जे एन शर्मा ने परागण में मधुमक्खियों द्वारा निभाई जा रही महत्वपूर्ण भूमिका और इससे विभिन्न फसलों के उत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि के बारे में चर्चा की। उन्होंने राज्य में मधुमक्खी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मधुमक्खी पालकों से आगे आने का आग्रह किया। कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ॰ जी सी शर्मा, ने इस क्षेत्र में विभाग द्वारा निभाई गई अग्रणी भूमिका पर बात की जिसके परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय में चल रहे ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट को आईसीएआर द्वारा सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र आंका गया है। सयुंक्त निदेशक (संचार) और आईसीएआर के ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (मधुमक्खियों और पोलिनेटर) में भूतपूर्व परियोजना समन्वयक डॉ॰ राजकुमार ठाकुर ने कहा कि उच्च उत्पादकता,शांत मधुमक्खी,अंडे देने की उच्च क्षमता के साथ रोग और पतंग प्रतिरोध जैसे वांछित जीन को शामिल करके रानी उत्पादन पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश को केंद्रीकृत डेटाबेस के साथ एक ठोस प्रजनन कार्यक्रम की आवश्यकता है ताकि सभी मधुमक्खी पालक की कॉलोनी का डेटा प्रभावी प्रजनन कार्यक्रम के लिए एक विशिष्ट पोर्टल पर उपलब्ध कराया जा सके।

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