प्रदेश की आर्थिकी में पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका

विशिष्ट वेशभूषा का अलग अस्तित्व “गद्दी” जनजाति

‘झांझराडा’ ‘झांझराडा’ पद्धति को गुदानी या चोली डोरी भी कहते हैं। पति की मृत्यु के बाद विधवा अपने पति के भाई से विवाह करती थी। किन्हीं स्थानों में विधवा किसी भी पुरुष से विवाह कर सकती है। विधवा स्त्री तथा पुरुष को कुम्भ तथा दीपक से पास बिठा दिया जाता है। स्त्री के बाल बनाई जाते हैं। पुरुष की ओर से स्त्री को नथ पहनने के लिये दी जाती है। विवाह के बाद भोज दिया जाता है। ऐसे विवाह में पुरोहित का होना आवश्यक नहीं है। कोई भी पुरुष किसी विधवा स्त्री से झांझराडा कर सकता है।
‘घर जवांतरी’ विवाह या घर जंवाई विवाह की प्रथा भी गद्दियों में कुछ अनोखे ढंग से प्रचलित है। वर को विवाह की खातिर अपने होने वाली ससुराल में सात से दस वर्ष तक रहना पड़ता है। वह नौकर की भांति काम करता है। उसे लगातार वहीँ रहना पड़ता है। यदि बीच में वह कही चला जाए तो रहने की अवधि बढ़ा दी जाती है। उसे अपने ससुर का हर कार्य करना पड़ता है। ससुर के प्रसन्न होने पर विवाह होता है। अवधि पूरी होने पर जब दूल्हा अपने घर वापस जाता है तो विवाह कर दिया जाता है।

गद्दी जनजाति में ‘रीत’ की भांति खेवत विवाह प्रचलित ‘रीत’ की भांति खेवत विवाह गद्दी जनजाति में प्रचलित है। यदि कोई पुरुष स्त्री के पहले पति को विवाह का पूरा खर्चा हर्जाने सहित अदा कर दे तो वह उस पुरुष से विवाह कर सकती है। प्रथम पुरुष यदि मान जाए तो स्त्री द्वारा ऐसा दूसरा विवाह किया जाना सम्भव है। किन्नौर की ओर से ‘इज्जत’ कहते हैं। यह विवाह स्त्री को पति गृह में मान-सम्मान न मिलने, पति का किसी अन्य स्त्री से प्रेम सम्बन्ध होने आदि के कारण होता है। इस विवाह पद्वति में कन्या का पिता, वर या वर के माता-पिता से कन्या के बदले रूपए लेता है। यह राशि पांच सौ रूपये से लेकर हजार तक हो सकती है। राशि के भुगतान पर कन्या का विवाह कर दिया जाता है।
यदि माता-पिता कन्या का मनचाहे युवक से विवाह न करें तो वह अपने प्रेमी युवक के साथ भाग जाती है। दोनों झिंड अर्थात झाड़ियाँ जलाकर अग्नि के फेरे लेकर विवाह कर लेते हैं। बाद में इस विवाह को मान्यता तो मिल जाती है किन्तु कन्या का घर से भागना एक ग्लानी उत्पन्न कर जाता है। यदि कभी विवाह से पूर्व लड़की मिल जाए तो उसे जबरदस्ती घर भी वापिस लाया जाता है।
गद्दी जनजाति में विवाह एक पवित्र बंधन माना जाता है अतः सामान्यतः विवाह-विच्छेद की नौबत नहीं आती। यदि कोई झगड़ा हो जाए तो पंचायत के हस्तक्षेप से दहेज़ की वस्तुएँ या नकदी पति को वापिस देनी पड़ती है। विच्छेद होने पर बच्चे पिता के घर रहते हैं। यदि गर्भ में शिशु हो तो वह भी जन्म के बाद पिता को सौंप दिया जाता है। स्त्री अकेली दूसरे पति के घर चली जाती है।

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