राष्ट्रीय पर्व “‘स्वतंत्रता दिवस”....

“स्वतंत्रता दिवस”….जब अंग्रेजों के कदम लड़खड़ा गए

15 अगस्त हर भारतीय के लिए बहुत मायने रखता है। हर साल इस राष्ट्रीय पर्व को हम हर्षोल्लास से मनाते हैं। इससे जुड़े इतिहास से भारत में शायद ही कोई अनजान होगा। हर कोई जानता होगा कि कैसे हमें आजादी मिली और कैसे अंग्रेजों की हुकूमत का अंत हुआ। बावजूद इसके इस दिन से जुड़े कई ऐसे पहलू हैं, जिनको जानना आवश्यक है। तो आईये विस्तार से इस राष्ट्रीय पर्व को जानने की कोशिश करें और इतिहास के उन पन्नों से धूल हटा सकें जिन्हें भूल से भी हमने कभी खोलने की कोशिश नहीं की :-

अंग्रेजों के कदम लड़खड़ा गए, इसलिए…

आजादी के इतिहास को जानने के लिए हमें 15 अगस्त 1947 से थोड़ा सा पीछे जाना पड़ेगा। दूसरा विश्व युद्ध यूं तो समूचे विश्व के लिए ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा, लेकिन ब्रिटिश सरकार को इससे नुकसान थोड़ा सा ज्यादा हुआ था। दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के सैलाब में कई सारे ब्रिटिश सैनिक और पैसा दोनों ही डूब गए थे। ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन ने एक लम्बे समय तक तो भारतीयों को रोके रखा था, लेकिन अब हालात बिगड़ते जा रहे थे भारत के लोग अंग्रेजों की मनमानी को ख़त्म करने के इरादे में पूरी तरह आ चुके थे। अंग्रेजों के हाथों से भारत एक तरह से फिसलता जा रहा था।

वह समझने लगे थे कि अब उनका राज नहीं बचेगा। जहां एक तरफ खौफ में आकर काफी सारे ब्रिटिश अधिकारी वापस अपने देश भाग चुके थे, वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश हुकूमत विश्व युद्ध के कारण बहुत कुछ खो चुकी थी। उनके पास सैनिक बहुत कम हो गये थे। उनकी पास इतनी ताकत ही नहीं बची थी कि वह भारत जैसे बड़े देश पर अब शासन कर पाते। उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि वह ज्यादा दिनों तक अब भारत को गुलाम नहीं रख सकेंगे।

परिस्थितियों को भांप गयी थी ब्रिटिश हुकूमत!

माना जाता है कि 1946 से ही भारत में हिंदू-मुस्लिम के बीच लड़ाईयां शुरू हो गई थी। जगह-जगह दंगों की शुरुआत होने लगी थी, तो तत्कालीन हुकूमत के खिलाफ आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था। अंग्रेजों ने इसे रोकने की खूब कोशिश की, लेकिन विफल रहे। उनका कोई भी दमन काम नहीं कर रहा था। उल्टा भारतीय लोगों में क्रांति की ज्लावा तेज हो रही थी। अंग्रेजों के खुद के अस्तित्व पर खतरा मडराने लगा था। ऐसे हालात अंग्रेजों के समझ से परे था। वह मजबूर हो चुके थे भारत को आजाद करने के लिए।

उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि अब वह भारत में कुछ नहीं कर सकते। इसी बीच देश में बंटवारे की चर्चाएं भी गर्म हो चुकी थी। अंततः अंग्रेजों को अपने घुटने टेकने ही पड़े और उन्होंने भारत को आजाद करने का ऐलान कर दिया। भारत की आजादी का यह फैसला पार्लियामेंट में लिया गया। ब्रिटिश भारत को आजाद करने के लिए तैयार हो गए थे। बस उन्होंने इसके लिए जून 1948 तक की मोहलत मांगी थी।

लुईस माउंटबेटन का भारत आना

ब्रिटिश सरकार जब तक अपनी सारी ताकत भारत को देने के लिए तैयार हुई, तब तक उनके आला अधिकारी अपने देश वापस लौट चुके थे। अंत में लुईस माउंटबेटन को अंग्रेजों के बचे हुए शासनकाल को खत्म करने की जिम्मेदारी दी गई।

लुईस माउंटबेटन को तब तक भारत में रुकना था, जब तक भारत अपने पैरों पर फिर से खड़ा न हो जाए। लुईस माउंटबेटन उस समय अपने आप में पूरी सरकार थे। लुईस माउंटबेटन जब भारत आए, उस समय हिन्दू-मुस्लिम लड़ाई काफी बढ़ चुकी थी। कई लोग रोजाना मारे जा रहे थे। कई बेघर हो रहे थे। भारत की जिम्मेदारी लुईस माउंटबेटन के कन्धों पर थी। उनकी जिम्मेदारी थी कि वह इन दंगों को ख़त्म कराएं। लुईस माउंटबेटन ने अपना सारा जोर लगा दिया था इन परिस्थियों से निपटने के लिए। हालांकि, उसके सभी प्रयास असफल रहे।

देखते ही देखते भारत गृहयुद्ध की आग में जलने लगा। लोग तेजी से एक दूसरे को मारने लगे थे। स्थिति अब बेकाबू हो चुकी थी। लुईस माउंटबेटन को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? उसे अपनी जान का खतरा तक महसूस होने लगा था। ऊपर से भारत में चल रहे दंगे बढ़ते जा रहे थे। आनन-फानन में माउंटबेटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद कर दिया। उसे लगा था कि यह खबर दंगों को ख़त्म कर सकती है, लेकिन उसका यह दांव भी उलटा पड़ गया।

भारी पड़ी लुईस माउंटबेटन की गलती

लुईस माउंटबेटन ने कह तो दिया था कि 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद कर दिया जाएगा, लेकिन उनका यह सोचा-समझा फैसला नहीं था। यह इतना आसान नहीं था, जितना लग रहा था। वह बात और है कि माउंटबेटन खुद जल्द से जल्द भारत से जाना चाहता था। एक किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में लुईस माउंटबेटन ने बताया कि 15 अगस्त की तारीख उन्होंने गलती से बोल दी थी।

उन्होंने 15 अगस्त को इसलिए चुना क्योंकि, 15 अगस्त को जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी वर्षगांठ थी। लुईस माउंटबेटन को यह बात इसलिए याद थी, क्योंकि जापान के आत्मसमर्पण के समय वह वहीं पर था। इसके बाद लुईस माउंटबेटन ने आजादी का बिल पार्लियामेंट में रखा, जिसे जल्द ही पास कर दिया गया।

भारत आजादी के लिए तैयार खड़ा था। भारत को उसकी सारी ताकत सौंपी गई। रात के जिस वक़्त आधा भारत सो रहा था उसी समय भारत को आजाद करार किया गया था। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लाल किले पर जाकर तीन रंगों से सजे भारतीय तिरंगे को पहली बार लहराया था।

आभार : https://roar.media/

 

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