झील के रूप में पूजी जातीं हैं देवी "रेणुका"

इसलिए पड़ा झील का नाम “रेणुका जी”….

झील के रूप में पूजी जाती हैं माँ “रेणुका जी”,  राजा प्रसेनजित् की पुत्री थी देवी “रेणुका”

हिमाचल में सदियों से ही देवी-देवताओं का वास रहा है। यहां के लोगों की देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था है।  आज हम हिमाचल के सिरमौर में बनी देवी रेणुका जी झील के बारे में आपको अवगत कराने जा रहे हैं। हिमाचल की बर्फ में जहां पर्वत पुत्री पार्वती नदी होकर बहती है वहां दूसरे छोर पर सिरमौर में देवी रेणुका जी को झील के रूप में पूजा जाता है। किसी झील को पूजा जाना अचम्भा नहीं है, उसे साक्षात देवी मान लेना जनमानस की अद्भुत आस्था का प्रतीक है।

परशुराम का प्रचण्ड पौराणिक व्यक्तित्व एक ओर कुल्लू के निरमण्ड में हुआ है प्रकट

पुराणों में परशुराम के क्षात्र-तेज और प्रचण्ड व्यक्तित्व का मिलता है वर्णन

परशुराम का प्रचण्ड पौराणिक व्यक्तित्व एक ओर कुल्लू के निरमण्ड में प्रकट हुआ है जहां उनके पांच स्थान और आठ ठहरियां हैं, दूसरी ओर वे हर वर्ष अपनी मां रेणुका से मिलने रेणुका झील में आते हैं। इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन करने वाले परशुराम का स्थान पौराणिक साहित्य में महेन्द्र पर्वत पर माना गया है जहां अनेक ऋषि वास करते थे। महाभारत में वर्णन है कि जब भाइयों सहित युधिष्ठिर उनके दर्शनों के लिए गए तो वहां उपस्थित ऋषियों ने बताया कि उनका दर्शन-चतुर्दशी और अष्टमी को होता है। युधिष्ठिर ने वहां प्रतीक्षा कर निश्चित तिथि को उनके दर्शन प्राप्त किए। पुराणों में परशुराम के क्षात्र-तेज और प्रचण्ड व्यक्तित्व का वर्णन मिलता है। अनूप देश के राजा कीर्तवीर्य अर्जुन ने एक बार ऋषि जमदगिन द्वारा आदर-सत्कार किए जाने के बावजूद आश्रम की गाय का बछड़ा हर लिया। परशुराम ने आश्रम आने पर कार्तवीर्य अर्जुन की हजारों बांहें काट कर उसे मार डाला। इस पर अर्जुन के पुत्रों ने ऋषि जमदगिन का वध कर दिया। पिता की हत्या पर परशुराम अगिन के समान प्रज्जवलित हो उठे। उन्होंने क्षत्रिय वध की प्रतिज्ञा ली। कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों को मार कर उन्होंने उन सब क्षत्रियों को भी मार डाला। जिन्होंने उनका पक्ष लिया। इस प्रकार इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियविहीन करके समन्तपंचक क्षेत्र में रक्त के पांच सरोवर भर दिए। ऋषि ऋचिक द्वारा इस दुष्कर कर्म से रोके जाने पर परशुराम पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर महेन्द्र पर्वत पर चले गए।

इसलिए पड़ा झील का नाम “रेणुका जी”….

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में यहां सहस्त्रबाहु नामक राजा का राज्य था, वह बहुत ही अहंकारी और अत्याचारी था, उसने ही महर्षि परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि का वध किया था। जब वह उनकी माता रेणुका की ओर बढ़ा तो धरती फट गई और वह उसमें समा गई। उनकी धरती में समाधि लेते ही वह पानी भर गया और झील बन गई। उस झील का नाम रेणुका जी पड़ा।

रेणुका जी राजा प्रसेनजित् की पुत्री थी

परशुराम के विषय में एक अनोखा किस्सा भी महाभारत आदि कई ग्रन्थों में मिलता है। रेणुका जी राजा प्रसेनजित् की पुत्री थी। महाप्रतापी जमदगिन ने वेदाध्ययन के बाद राजा प्रसेनजित् के पास जाकर उनकी पुत्री की याचना की जिसे राजा ने स्वीकार कर लिया। रेणुका से ऋषि के पांच पुत्र हुए। परशुराम सबसे छोटे थे। कहा जाता है कि एक बार रेणुका स्नान करने गई। वहां उसने दैवयोग से सम्पत्तिशाली राजा चित्ररथ को देखा। रेणुका का चित्त चलायमान हो गया। ऋषि जमदगिन ने रेणुका की वापसी पर बात भांप ली और क्रुद्ध होकर अपने बेटों से माता का वध करने को कहा। ऋषि के चारों पुत्र रूक्मवान, सुषेण, वसु और विश्वावसु यह सुन सहम गए। परशुराम ने पिता की आज्ञा से फरसा लेकर उसी क्षण माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। पिता ने प्रसन्न हो पुत्र को वर मांगने को कहा। परशुराम ने अपनी मां के जीवित होने की कामना की। अपने इस पाप के नाश होने तथा मां द्वारा इस घटना के विस्मृत होने की इच्छा की। ऋषि जमदगिन ने सभी कामनाएं पूर्ण कर दीं।

झील के पास मां रेणुका, परशुराम के मंदिर

झील के पास मां रेणुका, परशुराम के मंदिर

दूर से किसी नारी की आकृति की तरह प्रतीत होती है झील

झील के पास मां रेणुका, परशुराम के मंदिर

मनोहारी झील रेणुका जी शिमला से 135 किलोमीटर और नाहन से 37 किलोमीटर है। झील के चारों ओर घुमावदार सडक़ बनी है। सडक़ के एक ओर झील है तो ऊपर अभ्यारण्य। बीस हैक्टेयर में फैली इस झील की गहराई पांच से तेरह मीटर है। दूर से किसी नारी की आकृति की यह झील प्रदेश की झीलों में एक बड़े आकार की झील वन व पशु-पक्षियों से घिरी है। झील के पास मां रेणुका, परशुराम के मंदिर हैं तथा साथ ही कुछ साधु-सन्यासियों के आश्रम। झील के किनारे चारों ओर वन्य पशु विचरण करते हैं। झील के किनारे 18 वीं सदी में निर्मित रेणुका माता का मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण रातों रात हो गया था।

सबसे आनंददायक है झील की परिक्रमा करना

वहां कुछ नौकाएं भी झील में डाली गई हैं किन्तु नौकाविहार कम ही होता है। हां, मछलियों को आटा या चारा अवश्य खिलाया जा सकता है। साथ में कुछ जानवर तथा छोटे जीव-जन्तु भी पिंजरों में बंद कर रखे हैं। सबसे आनंददायक है झील की परिक्रमा करना जहां शेर और अन्य जीव-जन्तु भी फुदकते नजर आ जाते हैं।

दीपावली के पश्चात दशमी के दिन परशुराम जी की निकाली जाती है शोभायात्रा

प्रत्येक वर्ष दशमी के दिन मां रेणुका से मिलने आते हैं परशुराम

यहां रेणुका जी का प्रसिद्ध मेला मनाया जाता है। दीपावली के पश्चात दशमी के इसी दिन परशुराम जी की शोभायात्रा निकाली जाती है। कहा जाता है कि परशुराम प्रत्येक वर्ष दशमी के दिन डेढ़ दिन के लिए अपनी मां रेणुका से मिलने आते हैं। परशुराम जी की शोभायात्रा में लोकनाट्य, लोकनर्तक तथा श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। एकादशी के दिन झील में पवित्र स्नान होता है। मेले में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब से श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से रथ यात्राएं और पालकियां पहुंचती हैं। लोग झील में स्नान कर रेणुका माता की पूजा करते हैं और झील की परिक्रमा करते हैं।

कुछ वर्षों से मेले में रात्रि को सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे आधुनिक तत्व भी जुड़ गए हैं। सरकार द्वारा इस मेले को राज्य स्तरीय उत्सव का दर्जा दिया गया है। रेणुका झील के विकास के लिए रेणुका विकास बोर्ड गठित किया गया है। यहां श्रद्धालुओं व पर्यटकों के रहने के भी हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम का एक आकर्षक काफी हाउस भी है और टूरिस्ट विश्रामगृह व अन्य व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं।

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