प्रदेश का शिक्षा स्तर : बातें, आलोचनाएं, चर्चाएं व दावे तो बहुत, पर वास्तविकता...क्या !

शिक्षा : बातें, आलोचनाएं, चर्चाएं व दावे तो बहुत, पर वास्तविकता…क्या !

  • राजनीति की नीतियों से हटकर विकास की नीतियों पर कार्य करना आवश्यक

शिक्षा स्तर पर बहुत कुछ किया जाना बाकि है लेकिन उससे पहले जो बेवजह की अड़चनें हैं उन्हें सुलझाया जाना जरूरी है। प्रदेश में कुछ ऐसे स्कूल भी हैं जहां बच्चों को पर्याप्त शिक्षक ही उपलब्ध नहीं, कहीं बच्चों के लिए पढ़ने के लिए पर्याप्त कमरे नहीं, तो कहीं ऐसा भी है कि दूरदराज के इलाकों में शिक्षक ही बच्चों को पढ़ाने के मामले में गंभीर नहीं। हालांकि सरकार ऐसी समस्याओं को सुलझाने के दावे तो हर बार करती है लेकिन समस्या ज्यूँ की त्यूं ही बनी रहती है। इस प्रकार की समस्या को प्रदेश सरकार पहले सुलझाए तो बेहतर होगा। क्योंकि एक बेहतर कल के लिए प्रदेश और देश में ही नहीं अपितु विश्व भर में शिक्षा को सबसे अहम और मजबूत माना जाता है। हमें अपने कल को मजबूत करने के लिए राजनीति की नीतियों से हटकर विकास की नीतियों पर काम करना होगा तभी बेहतर कल की कल्पना की जा सकती है।

अधिकतर शिक्षक तबादलों के फेर में इतने उलझे रहते हैं कि उन्हें बच्चों के भविष्य से ज्यादा अपने भविष्य की चिंता रहती है। ऐसे में वो शिक्षक भी पीस जाता है जो अपने काम के प्रति ईमानदार और मेहनती होता है वो जिसे राहत मिलनी चाहिए लेकिन मिल नहीं पाती, क्योंकि जिसकी चलती है वो तो अपनी चला ही लेते हैं और चला ही रहे हैं। वहीं कुछ जगहों पर कई शिक्षकों के आपसी तालमेल से ही तबादलों की अदलाबदली होती आ रही है। कुछ शिक्षक कई वर्षों से दो स्कूलों के अलावा किसी अन्य स्कूल में तब्दील हुए ही नहीं हैं। कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जो दूरदराज स्कूलों में सालों से तैनात हैं लेकिन अपनी ऊँची पहुंच न होने की वजह से उन क्षेत्रों से बाहर ही नहीं निकल पाए हैं।

 मेहनत, ईमानदार और नेक शिक्षकों की भी प्रदेश में कमी नहीं

मेहनत, ईमानदार और नेक शिक्षकों की भी प्रदेश में कमी नहीं

लेकिन ऐसे शिक्षकों से मेरा एक सवाल है जो सालों से अपनी सहुलियत मुताबिक एक ही जगह तैनात हैं कि वो किस बात की इतनी तनख्वाह लेते हैं जब तबादलों के नाम पर अपनी जगह से हिलना ही नहीं चाहते? कहीं स्कूल में एक भी प्रिंसिपल नहीं तो कहीं बच्चों को शिक्षकों का अभाव। भला ये कसूर किसका है! हाल ही में एक ऐसा ही मामला चंबा जिले के बघेइगढ़ स्कूल का भी सामने आया है जहां 2 साल से शिक्षकों के 7 पद खाली पड़े हैं। लेकिन किसी भी विधायक और प्रशासन ने इसकी ओर ध्यान नहीं दिया। अब 250 बच्चों का भविष्य अंधकार की ओर बढ़ रहा है। पहले बच्चों ने मिड-डे मील का खाना छोड़ा अब 7 दिनों से उन्होंने स्कूल का बहिष्कार कर दिया। सरकार ने जल्द ही वहां शिक्षकों की कमी पूरी बात करनी की बात तो कही है लेकिन प्रदेश में अभी बहुत ऐसे स्कूल हैं जहाँ शिक्षकों की कमी है।

वहीं कुछ समय  पहले हमीरपुर में एक ही पद पर स्कूल में दो शिक्षकों का विवाद इतना उछला था,  कई स्कूलों में  प्रिंसीपल और एक विषय को पढ़ाने वाले शिक्षक दो-दो हैं और दोनों ही आराम से स्कूल भी चला रहे हैं और पढ़ा भी रहे हैं। कोई पूछने वाला नहीं। तनख्वाह भी मिल रही है। कोई काम का बोझ भी नहीं।अपनी मनपसंद जगह नौकरी भी।

ये शिक्षकों का बच्चों के भविष्य के साथ यह खिलवाड़ नहीं तो क्या है? शिक्षा विभाग, शिक्षामंत्री नीतियों में उलझे पड़े हैं। शिक्षामंत्री जी का बयान कि उन्हें तबादलों से फुर्सत नहीं। श्रीमान जी, पहले जो तबादले आप कर रहे हैं उन्हें भी जायज ढंग से किया जाए तो बेहतर होगा, बाकि नीतियां बाद में देखेंगे जो स्कूली बच्चों की समस्याएं हैं उन पर पहले ध्यान दें तो ज्यादा बेहतर।

वहीं अगर स्कूलों के शिक्षा परिणाम की बात की जाए तो बेहतर परिणाम के बजाय परिणाम और भी बदतर सामने आ रहे हैं। दसवीं और जमा दो कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं में साल 2017 में 51 सरकारी और निजी स्कूलों में सभी विद्यार्थी फेल हो गए थे। दसवीं में 37 स्कूलों और जमा दो 14 स्कूलों का वार्षिक परिणाम शून्य रहा था। इस तरह से इस बार 55 सरकारी स्कूलों का परिणाम शून्य है। ऐसे में पिछली बार से भी परिणाम ज्यादा खराब रहे।

शिक्षकों से भी निवेदन है कृप्या अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही ढंग से करें। आपको बच्चों को शिक्षित करने के लिए अच्छी खासी तनख्वाह दी जाती है अगर आप अपने काम के प्रति ईमानदारी नहीं बरत सकते तो नौकरी छोड़ दीजिए ताकि इस जिम्मेदारी को कोई दूसरा जिम्मेदार शिक्षक उठा सके। मेहनत, ईमानदार और नेक शिक्षकों की भी प्रदेश में कमी नहीं, अगर काम के प्रति लापरवाह शिक्षक हैं तो काम के प्रति निष्ठावान शिक्षक भी मौजूद हैं। बस सबको समान नीति में लाया जाए लेकिन उससे पहले जो फ्री की तनख्वाह और आराम परस्ती की नौकरी कर रहें उन पर कड़ी कार्यवाही भी की जाए। शिक्षा के क्षेत्र में कोताही बरतने वालों और गलत करने वालों को न बख्शा जाए। प्रदेश की जनता बदलाव चाहती है। विकास, उन्नत और बेहतरी का बदलाव। जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना जयराम सरकार के लिए भले ही किसी चुनौती से कम नहीं। लेकिन अपने किये वायदों को निष्पक्ष पूरा करना जयराम सरकार के लिए जनता का भरोसा जीतने का ये बहुत बड़ा अवसर है। इस अवसर पर अगर शिक्षा के मापदंडों पर सही और ईमानदार नीति से सरकार काम करे तो नि:संदेह भाजपा लोगों के दिलों में राज करने का पहला पड़ाव पार कर लेगी।

अभी मंजिलें और भी हैं  इम्तिहां और भी है…

 ये तो शुरुआत है तुम्हारी, , कारवां और भी है….

भरोसा सौंपा है लोगों ने तुम पर

उनकी उम्मीदों पर खरा उतरो, क्योंकि अभी बहुत कारवां और भी है…..

 

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