विशेषज्ञों ने की पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र व जलवायु परिवर्तन प्रभाव पर चर्चा

विशेषज्ञों ने की पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन प्रभाव पर चर्चा

विशेषज्ञों ने की पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन प्रभाव पर चर्चा

नौणी : पारिस्थितिक तंत्र में जलवायु परिवर्तन की जटिलता के मद्देनजर,डॉ. वाईएस परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी, के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सहयोग से पहाड़ पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन प्रभावों पर एक ब्रेनस्टॉर्मिंग मीटिंग का आयोजन किया। इस बैठक का विषय ‘पर्वत पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन प्रभाव- हिमाचल प्रदेश में टिकाऊ आजीविका के लिए अनुकूलन और शमन रणनीतियां’ था। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विशेषज्ञों के अलावा जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और नई दिल्ली से 100 से अधिक वैज्ञानिकों ने बैठक में भाग लिया।

जलवायु परिवर्तन और इसके विभिन्न आयामों पर चर्चा की गई ताकि न केवल शमन रणनीतियों तैयार की जा सके बल्कि हिमाचल प्रदेश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के किसानों की आजीविका को बढ़ाने में इसकी उपयोगिता भी हो सके। बैठक के दौरान चार मंथन सत्र आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम ने उत्तरी भारत के वैज्ञानिकों को जलवायु विज्ञान, बागवानी और वानिकी प्रथाओं के साथ जलवायु विज्ञान और इसकी जटिलता के क्षेत्र में अपनी क्षमता,कौशल और दक्षताओं को बढ़ाने का अवसर प्रदान किया। प्रतिभागी वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन,पर्यावरण पतन और प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से पानी को कम होने जैसी विभिन्न चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया।

इस कार्यक्रम का उद्घाटन नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति डा एचसी शर्मा ने किया। उन्होनें इस बात पर जोर दिया कि दुनिया भर में स्वीकार किया गया है कि जलवायु परिवर्तनशीलता (climate variability) और परिवर्तन, मानव और पृथ्वी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और आगाह किया कि यदि सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए तो आने वाले वर्षों में समस्याएं और बढ़ेगी। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को प्रबंधित करने और कम करने के लिए अनुसंधान और विकास गतिविधियों में पुनर्विचार की मांग की। इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों का मानना था कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को समझने, खाद्य और पोषण सुरक्षा,जल सुरक्षा,जैव विविधता हानि और संरक्षण को संबोधित करने के लिए अनुकूलन और शमन रणनीति तैयार करने के लिए दूरदर्शी प्रयासों की आवश्यकता होगी। यह भी महसूस किया गया कि जैव विविधता में होने वाले परिवर्तनों को उस क्षेत्र की जलवायु परिवर्तनशीलता के संदर्ब में मॉनिटर करने कि जरूरत है।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश सरकार के बागवानी निदेशक एमएस राणा ने की। उन्होंने सेब के उदाहरण देते हुए राज्य में पेड़-पौधे लगने की जगह में शिफ्ट के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की ओर इशारा किया। इससे पहले, प्रारंभिक वार्ता में कार्यक्रम के समन्वयक और नौणी विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एस के भारद्वाज ने बताया कि दुनिया के अन्य हिस्सों की ही तरह, हिमाचल प्रदेश में भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों और औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और परिवहन जैसी विभिन्न मानववंशीय गतिविधियों के अत्यधिक शोषण ने ही इस समस्या को जन्म दिया है। डॉ. भारद्वाज ने लोगों के बीच जलवायु परिवर्तन से संबंधित साक्षरता पैदा करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया ताकि जीवन शैली बदलकर हर कोई इस समस्या के शमन में भाग ले सके। आईएमडी के वरिष्ठ विशेषज्ञ डा॰ आनंद शर्मा ने जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तनशीलता और परिवर्तन के बारे में लोगों को शिक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन दीर्घकालिक औसत और जलवायु परिवर्तनशीलता से भ्रमित नहीं होना चाहिए, जो वास्तव में प्रकृति में आम घटना है। चर्चाओं के दौरान,यह सुझाव दिया गया कि राज्य के दूरदराज़ के क्षेत्रों के लिए समुदाय एफएम रेडियो के माध्यम से मौसम पूर्वानुमान का वैज्ञानिक प्रसार होना चाहिए। डॉ. एसएस रंधवा, प्रिंसिपल वैज्ञानिक अधिकारी, HIMCOSTE ने हिमनदों को कम होने, बर्फबारी में कमी, बारहमासी नदियों का मौसमी बनने और भूस्खलन के कारण बनने वाली झीलों पर सावधानी बरतने को कहा। नौणी विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ॰ एमएस झांगरा ने कहा कि हमें पर्यावरण के साथ बुद्धिमान होना होगा अन्यथा जलवायु परिवर्तन की समस्या और बढ़ जाएगी, जिससे विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं।

बैठक के अन्य प्रमुख प्रतिभागियों में डॉ. जगदीश चंदर, पीसीसीएफ सामुदायिक वन (हरियाणा); डॉ. राम निवास, प्रिंसिपल वैज्ञानिक एचएयू; डॉ. आई पी शर्मा, नौणी विवि के वानिकी कॉलेज के पूर्व डीन; डॉ॰ एसएस सामंत, जीबी पंत संस्थान कुल्लू; डॉ. कृष्ण कुमार, प्रमुख फल विज्ञान विभाग नौणी; डॉ. राजकुमार ठाकुर, नौणी विवि के संयुक्त निदेशक (संचार); डॉ.  रणबीर सिंह राणा, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, कृषि विवि पालमपुर; डॉ. मोहर सिंह ठाकुर, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, एनबीपीजीआर क्षेत्रीय स्टेशन, शिमला और डा॰ नरेश कुमार,पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, नई दिल्ली शामिल थे।

To mitigate and to adapt to the changing climate of the state, the following points emerged from the sessions:

  • Integrated farming, using traditional crops with more resilience as an option to be adopted by the mountain people
  • Rainwater harvesting and use of water with efficient systems of irrigation.
  • The framing of a climate matrix tool to overcome the challenges of non-availability of long-term weather data.
  • Formulation of the water source inventory of the state.
  • Increasing the land coverage by promoting multi-purpose plant species for increasing profile water storage and carbon sequestration.
  • Adoption of contour terracing and trenching for reduction of runoff vis- a- vis runoff water harvesting.
  • Promotion of the integrated farming based agro- ecotourism for adapting to changing situations in the state.
  • Issuance of regular weather forecasting based agro advisory at the block level.
  • Studies to segregate the effects of developmental activities and climate change as all the effects are not only due to climate change only.
  • To initiate systematic studies to assess the biological cycles of plants under present changing situations

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