ग्लोबल वार्मिंग : ...किस दिशा में, किस विकास की ओर बढ़ रहे हैं खुद भी पता नहीं?

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से प्रकृति में तेजी से परिवर्तन….चिंता का विषय!

ग्लोबल वार्मिंग को लेकर पूरा विश्व चिंतित

ग्लोबल वार्मिंग : …किस दिशा में, किस विकास की ओर बढ़ रहे हैं… हम ?

अगर… प्रकृति अपने रौद्र रूप में आएगी तो कहीं कुछ भी नहीं बचेगा

 “प्राकृतिक संपदा से किया खिलवाड़, तो आएगी विनाश की बाढ़”

“प्राकृतिक संपदा से किया खिलवाड़, तो आएगी विनाश की बाढ़”

ग्लोबल वार्मिंग इस बारे में यूं तो अक्सर बहुत कुछ कहा और सुना जाता रहा है। वहीं आने वाले समय में इससे होने वाले नुकसान को लेकर करीब-करीब पूरा विश्व ही चिंतित है। हो भी क्यों न, वाकये ही यह बहुत गंभीर चिंता का विषय है। प्राकृतिक संपदा से जिस प्रकार खिलवाड़ हम कर रहे हैं उसी तरह जब प्रकृति अपने रौद्र रूप में खिलवाड़ करने पर आएगी तो कहीं कुछ भी नहीं बचेगा। आज औद्योगिक रूप से जो विकास की बाढ़ आ रही है उसे देखते हुए साफ लग रहा है कि अगर हम समय रहते सचेत नहीं हुए तो प्रकृति की बाढ़ विनाश का रूप धारण कर सब कुछ तहस-नहस कर देगी। 1970 से यह महसूस किया जा रहा है कि जिस विकास की ओर हम बढ़ रहे हैं वो हमारे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। जिसे लेकर विश्व स्तर पर कई योजनाएं समाधान स्वरूप रखीं गयी। इन समस्याओं को लेकर जो विचार-विमर्श हुआ, उनके परिणाम न के बराबर ही हुए। जाहिर है बड़े-बड़े उद्योगों से जो करोड़ों का फायदा उद्योगपतियों को पहुंच रहा है वो प्रकृति तो नहीं दे सकती। प्रकृति सिर्फ शांति-सुकून दे सकती है करोड़ों का फायदा नहीं।

ग्लोबल वार्मिंग के धरती पर प्रभाव भीषण विनाश की ओर इशारा

ग्लोबल वार्मिंग के धरती पर प्रभाव भीषण विनाश की ओर इशारा कर रहे हैं क्योंकि जो प्रकृति में बदलाव आ रहे हैं वो अच्छे होने के संकेत नहीं है। कहीं भारी बारिश तो कहीं भीषण सूखा। अब तो मौसम में अजीब तब्दीली होती जा रही है। ग्लोबल वार्मिग अब न केवल भारत के लिये बल्कि पूरे विश्व के लिए सामाजिक मुद्दा है। लगातार पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। ग्रीनहाउस गैसों की रेडिएशन शक्ति हमेशा प्रकृति में नियंत्रित और संतुलित होती रहती है लेकिन अब जहां विभिन्न मानव गतिविधियों के कारण गैसों की मात्रा में कई वृद्धि हो रही है। साफ तौर पर कहूं तो शायद कई घातक गैसों के कारण पृथ्वी को भारी नुकसान पहुंच रहा है। जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है। फैक्ट्रियों, गाड़ियों, उद्योगों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों से निकलता धुंआ प्रकृति को खत्म करने की और अग्रसर है। इस ओर हम अपने विकास को देखकर फुले नहीं समाते। करोड़ों वाहन, लाखों के हिसाब से खतरनाक धुआं उगलती फैक्ट्रियां व आए दिन कार्बन उत्सर्जन में कटौती के बजाए बढ़ोतरी करने की ओर हमारा लगातार अग्रसर होना साफ जाहिर करता है कि हम सभी विकास की नहीं विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का मतलब है ही पृथ्वी के वायुमंडल तापमान में लगातार बढ़ोतरी होना। जिस विकास की ओर पूरा विश्व बढ़ रहा है उससे पृथ्वी के वायुमंडल के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, प्राकृतिक संपदा को नष्ट किया जा रहा है।

आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संपदा को तहस-नहस करने से कोई गुरेज नहीं

पर्यावरण संरक्षण पर आधारित चित्र

पेड़ों और जंगलों को अंधाधुंध काटा जा रहा है, नदियां सूख रही हैं, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, पहाड़ धंस रहे हैं, मानव अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संपदा को तहस-नहस करने से कोई गुरेज नहीं कर रहा है। पृथ्वी गर्म होती जा रही है। ग्रीन हॉउस गैसों की रेडिएशन शक्ति हमेशा प्रकृति में नियंत्रित और संतुलित होती है लेकिन अब लोगों की जरूरतें और ख्वाहिशें इस हद तक बढ़ गई हैं कि बढ़ती मानव गतिविधियों के कारण इन गैसों की मात्रा में भी बहुत ज्यादा वृद्धि होती जा रही है। आए दिन आधुनिक उद्योगों का विस्तार और निर्माण हो रहा है। बिजली जोकि पूरे विश्व की सबसे बड़ी जरूरत है उसके उत्पादन के लिए कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन का भारी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है। जाहिर है इसके अधिक इस्तेमाल करने से कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि हो रही है जो वन संपदा को भारी हानि पहुंचा रही है। बड़े-बड़े उद्योगों, विद्युत उत्पादन व कारखानों, यहां तक हमारे रसोई घर के चूल्हे में लकड़ी जलाना, गैस, स्टोव, फ्रिज पहले कम था लेकिन अब नए दौर में सब नया।

…किस दिशा से किस विकास की ओर बढ़ रहे हैं खुद भी पता नहीं

गाड़ी, बसें, ट्रक व स्कूटर एक-दूसरे की देखा-देखी में सबसे बेहतर और ज्यादा की होड़। किस दिशा से किस विकास की ओर बढ़ रहे हैं शायद लोगों को खुद भी पता नहीं, …और फिर खोज सुकून की, हरी-भरी वादियों की ओर रुख। लेकिन आगे बढ़ने की अंधाधुंध दौड़ में प्रकृति की गोद ही तो है जो माता-पिता के बाद सब कुछ सहकर भी आपको सच्चा सुकून, प्यार व शांति प्रदान करती है। आज से नहीं सदियों से। लेकिन हम और हमारी मानवजाति इतनी स्वार्थी है कि उसी प्रकृति का सीना छलनी करने से गुरेज नहीं करते। वो सब देती आ रही है जो अपने घर से लेकर आस-पास। यहां तक हमारी कृषि-बागवानी में भी उत्पादन वृद्धि के लिए आजकल रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। ये सभी तो ग्लोबल वार्मिंग के खतरे हैं जिन्हें हमने अपनी जरूरत और अब मजबूरी का नाम दे दिया है।

ग्लोबल वार्मिंग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा

ग्लोबल वार्मिंग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा

ग्लोबल वार्मिंग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा

अन्य देशों से आगे निकलने के लिए खुद को शक्तिशाली देश स्थापित करने हेतु खतरनाक मिसाइलों, बेहिसाब बड़े-बड़े उद्योगों, कारखानों को निर्मित करने की होड़, फिर अपने देश, अपने राज्य, अपने गांव, अपने शहर, अपने परिवार, अपने ऑफिस, यहां तक कि खुद के लिए अपनी धरती की प्राकृतिक संपदा को खत्म करने पर जोर दिए हुए हैं। असर साफ नजर आ रहा है आज ग्लोबल वार्मिंग पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा बन गया है। कुछ देश इस बात को लेकर गंभीर हो गए हैं तो कुछ अभी तक सचेत नहीं हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से प्रकृति में बदलाव आ रहा है। कहीं भारी बारिश, तो कहीं सूखा, बर्फ की चटटाने कहीं टूट रही हैं, कहीं समुद्री जल-स्तर में बढ़ोत्तरी हो रही है। आज जिस गति से ग्लेशियर पिघल रहे हैं इससे भारत और पड़ोसी देशों को खतरा बढ़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग से फसल चक्र भी अनियमित होना शुरू हो ही गया है जिससे कृषि उत्पादकता भी प्रभावित होने लगी है। मनुष्यों के साथ-साथ पक्षी भी इस प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग पक्षियों के दैनिक क्रिया-कलाप और जीवन-चक्र को प्रभावित करता है।

सभी को समय रहते संभलने व जागरूक होने की आवश्यकता

अधिक से अधिक पेड़ लगाएं व उनकी रक्षा करें

आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि समस्त विश्व के पास ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए मात्र 10 वर्ष का समय और है। यदि ऐसा नहीं होता है तो समस्त विश्व को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। हम सभी को समय रहते संभलना होगा। सभी को इस और जागरूक होने की आवश्यकता है। ये पूरे विश्व के प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी व कर्तव्य है। ग्लोबल वार्मिंग से बारिश, सूखा, बाढ़, वनस्पतियों व जीवों में अनियमितता, कृषि उत्पादन में कमी, वहीं स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। आवश्यकता है हम समय रहते प्रकृति की संपदा को बचाएं, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें। अधिक से अधिक पेड़ लगाएं व उनकी रक्षा करें। एक ही जगह जाने के लिए आस पड़ोस के लोग अपनी-अपनी अलग-अलग गाड़ी में निकलते हैं, बेहतर हो आसपास के लोग एक दूसरे को अपनी गाड़ी में साथ लेकर निकलें। पर्यावरण को दूषित न करें। पेड़-पौधों को लगाएं। नदियों, नालों व तालाबों को गंदा न करें। विकासशील देश बनने के लिए बड़े-बड़े उद्योगों, कारखानों, मिसाइलों को निर्मित करने व चलाने से पहले अपनी प्राकृतिक संपदा को भी सहज कर रखें। ठीक वैसे ही जैसे बच्चों को समाज का बेहतर नागरिक बनाने के लिए अच्छे संस्कारों की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार किसी भी देश को विकास की ओर अग्रसर होने के लिए पहले उससे होने वाले नुकसान और फायदे को जान और समझ लेना चाहिए।

विश्व ग्लोबल वार्मिंग के समाधान तलाशने होंगे

अगर बात हो हमारे पर्यावरण की तो हमें पहले उसकी सुरक्षा पर विचार करना चाहिए। हमें इस वक्त विश्व ग्लोबल वार्मिंग के समाधान तलाशने होंगे। क्योंकि यह एक विकट समस्या है और इसके लिए हम सबको एकजुट होकर हल निकालना होगा। हमें अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने होंगे, उनका संरक्षण करना होगा। अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचाना होगा। यह सरंक्षण व बचाव सब हमें खुद को यानि अपने आपको ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे बदलाव से बचाने के लिए करना होगा, वरना आपदा तो कभी भी कहीं भी आ सकती है।

जल संसाधन- रिपोर्ट हिमाचल प्रदेश के जल संसाधनों पर अंतर्दृष्टि प्रदान करती है और हिमाचल प्रदेश में ग्लेशियरों की स्थिति पर प्रकाश डालती है जो चिंता का कारण है।

• पर्यावरण प्रदूषण और प्रबंधन
सरकार हिमाचल प्रदेश ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए सर्वोत्तम प्रयास कर रहा है लेकिन फिर भी यह चिंता का विषय है और इसके लिए एकाग्र प्रयासों की आवश्यकता है।

• दैवीय आपदा
राज्य प्राकृतिक और जलवायु प्रेरित खतरों से बहुत अधिक प्रवण है। किसी भी आपदा से संबंधित मुद्दों को पूरा करने के लिए संस्थागत व्यवस्था की आवश्यकता होती है। रिपोर्ट में विनाशकारी बाढ़ पर भी प्रकाश डाला गया है जिससे निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। जंगल में आग की घटनाएं बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती हैं।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *