सभी तरह की जलवायु में की जा सकती है “आंवला” की खेती

  • कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला है “आंवला”

  • कलमी पौधों द्वारा भी लगाया जा सकता है आंवला

कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला है "आंवला"

कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला है “आंवला”

आयुर्वेद में आंवला को अमृत फल कहा गया है और इसे रसायन की श्रेणी में रखा गया है। आंवला विटामिन-सी से भरभूर एक ऐसा फल है जो कई तरह के रोगों को दूर कर गुणकारी औषधि का काम करता है। इसका फल पेट व हृदय सम्बन्धित रोगों तथा अन्य बीमारियों के उपचार के लिए प्रयुक्त होता है। विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा इसका विशेष गुण है। आंवला का उपयोग लगभग सभी तरह की आयुर्वेदिक औषधियों में किसी न किसी रूप में किया जाता है। आंवला विटामिन सी, आयरन,  पोटाशियम, कार्बोहाईड्रेट, फाइबर, प्रोटीन्स व मैग्नीशियम से भरपूर है। आंवला का नियमित सेवन आंखों, त्वचा, बालों, कब्ज व हृदय रोग  में बहुत ही लाभदायक है। आंवले का संबंध उष्ण कटिबन्धीय दक्षिण-पूर्वी एशिया से है इसका पौधा यूफोर्वियसी कुल का सदस्य है जिसे इण्डियन गूजबैरी नाम से जाना जाता है। यह औषधीय गुणों वाला फल है। इसके सेवन से शरीर के जीर्ण होने की प्रक्रिया मंद होती है। संस्कृत में आंवले का आमलकी, आदिफल, अमरफल, धात्रीफल नामों से जाना जाता है। इसके फल का उपयोग मुरब्बा, चटनी, अचार, रस तथा चूर्ण, च्यवनप्राश, त्रिफला, औषधि आदि में किया जाता है।

  • आंवला की खेती के लिए भूमि एवं जलवायु

आंवला की खेती लगभग सभी तरह की जलवायु में की जा सकती है। यदि सबसे उत्तम जलवायु की बात की जाये तो इसके लिए शुष्क जलवायु को सही माना जाता है। इस तरह आंवला की खेती उष्ण जलवायु के साथ उपोष्ण जलवायु में की जा सकती है। आंवले की खेती ऊसर, बंजर, अनुपजाऊ व असिंचित भूमि में भी की जा सकती है।

  • लू लगने और पाला पड़ने से पेड़ पर कोई असर नहीं

आंवला उष्ण जलवायु का पौधा होता है। इसलिए इसे शुष्क जगहों में भी उगाया जाता है। आंवला उपोषण जलवायु में आसानी से और सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। यह पौधा 0. 46 डिग्री सेल्सियस तापमान को भी सहन कर सकता है। आंवले के पौधे में फूल उगने के समय गर्म जलवायु होनी चाहिए। इसके बढ़ने में गर्म जलवायु बहुत उचित मानी जाती है। लू लगने और पाला पड़ने से इसके पेड़ को कोई असर नहीं पड़ता है।

आंवले की प्रमुख प्रजातियां :

  • बनारसी : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके फलों का रंग हल्का पीला होता है तथा इसका फल 40-50 ग्राम का होता है। कम रेशे की वजह से यह प्रजाति मुरब्बा के लिए सबसे अच्छी किस्म मानी जाती है।

  • चकैया : इसकी पैदावार सबसे अधिक होती है। फल का वजन 30-35 ग्राम तक होता है। इसके फल हरे रंग के , चपटे तथा रेशेदार होते हैं।

  • फ्रांसिस (हाथी झूल) : इसकी औसत फसल होती है। फल का वजन 40-50 ग्राम तक होता है। इसके फल ऊतक क्षय के कारण अन्दर से काले पड़ जाते हैं।

  • नरेन्द्र आंवला-4 : इसे कंचन नाम से भी जाना जाता है। मादा फूलों की अधिक संख्या होने के कारण उत्पादन क्षमता अधिक होती है। पल्प एवं अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं।

  • नरेन्द्र आंवला-5 : इसे कृष्णा के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्यम उत्पादन क्षमता वाली प्रजाति है। फल बड़े से मध्यम आकार के, गोल, चपटे एवं सफेदी लिए हुए हरे रंग के होते हैं। यह मुरब्बा के लिए अति उत्तम किस्म है व शीघ्र पकने वाली प्रजाति है।

  • नरेन्द्र आंवला-6 : यह चकैया से चयनित की गई प्रजाति है। मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्म है। यह कैण्डी व जैम के लिए उपयुक्त प्रजाति है।

  • नरेन्द्र आंवला-7 : यह फ्रांसिस किस्म के बीजू पौधों की चयनित किस्म है। फल मध्यम से बड़े आकार वाले लम्बे, गोल, चिकनी सतह तथा हल्के पीले रंग वाले होते हैं। इनका गुद्दा रेशाहीन होता है।

  • नरेन्द्र आंवला-10: यह आंवला एक अगेती किस्म है जिसके पौधे नरेन्द्र आंवला-10 के नाम से जाने जाते हैं। यह एक अच्छी प्रजाति की किस्म है।

  • रोग : आंवले की फसल को प्रभावित करने वाला कीट (शूट गाल मेकर) है जो पेड़ की डालियों के अग्रस्थ भाग को एक गांठ के रूप में फैलाकर पौधे की वृद्धि को रोक देता है। इस फसल को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य कीड़े स्टेमबोरर, लीफ कैटर पिलर, दीमक इत्यादि हैं।

आंवला के लिए शुष्क व अर्द्धशुष्क जलवायु उपयुक्त

यह उपोष्ण जलवायु का पौधा है। इसके लिए शुष्क व अर्द्धशुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। आंवला से बनने वाले उत्पादों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ने से किसानों का भी इस ओर रुझान बढ़ा है। कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला है आंवला। आंवले को कलमी पौधों द्वारा भी लगाया जा सकता है। लगभग 8×8 मीटर के अंतर पर 60×60 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदकर उनमें 15 से 20 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिला दी जाती है और इसके साथ ही गड्ढों को कीटों से बचाव के लिए अच्छी तरह का कीटनाशक का उपयोग किया जाता है।

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