नौणी विवि में मधुमक्खी पालन के विकास पर दो दिवसीय राज्य स्तरीय संगोष्ठी

  • परागण में मधुमक्खियों की भूमिका के बारे में प्रतिभागियों को करवाया अवगत
  • मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुरू करने के लिए बहुत संसाधन की आवश्यकता नहीं : डा. एचसी शर्मा
  • विश्वविद्यालय परिसर में मधुमक्खी पालन व उसमें प्रयुक्त प्रौद्योगिकियों पर लगी प्रदर्शनी

शिमला : मधुमक्खी पालन के विकास के लिए जागरूकता, प्रेरणा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण विषय पर दो दिवसीय राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आरंभ आज नौणी स्थित डॉ. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में हुआ। राष्ट्रीय माधवी परिषद द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में 100 से अधिक प्रतिभागियों जिसमें हिमाचल प्रदेश के नौ जिलों के 70 किसान शामिल हैं, के अलावा छात्र, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।

कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. अंजु खन्ना और समन्वयक डा. हरीश शर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश ने प्रबंधित परागण (managed pollination) के क्षेत्र में अग्रणी काम किया है,लेकिन इस क्षेत्र में सुधार की संभावना विशाल है। डा. हरीश शर्मा ने कहा कि संगोष्ठी का उद्देश्य किसानों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि राज्य में मधुमक्खी पालन की क्षमता बढ़ाने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का विकास हो सके। उन्होंने परागण में मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण भूमिका और इसके द्वारा विभिन्न फसलों के उत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि पर प्रकाश डाला।

नौणी विवि के कुलपति और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. एचसी शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि मधुमक्खी पालन एक ऐसा उद्यम है जिसमें किसी को एक नया व्यवसाय शुरू करने के लिए बहुत संसाधन की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने कहा कि समय की मांग है कि मधुमक्खियों की आनुवंशिक विविधता में सुधार लाया जाए ताकि बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सके। डा. शर्मा ने किसानों से आग्रह किया कि वह अपने पेशे पर गर्व करें ताकि कृषि की तरफ युवाओं को आकर्षित किया जा सके। उन्होंने युवा कृषि स्नातकों को भी कृषि उद्यमियों बनने की सलाह दी ताकि वह रोजगार प्रदाता बनें।

औद्यानिकी महाविद्यालय के डीन डा. राकेश गुप्ता ने मधुमक्खी पालन के माध्यम से किसानों की आय का दोहरीकरण पर बात की। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों (जिन्होनें ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूल से कक्षा 8,10 और 12 की कोई भी दो परीक्षा पास की है), के लिए बीएससी कार्यक्रम में 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित की है ताकि ग्रामीण इलाकों के छात्रों को कृषि का अध्ययन के लिए समान अवसर प्रदान किए जा सके।

इस संगोष्ठी के दौरान, मधुमक्खी पालन के विभिन्न पहलुओं जैसे गुणवत्ता वाले उत्पादों, मधुमक्खी परागण, रानी और जन रानी पालन के महत्व, वाणिज्यिक सब्जियों और बागवानी फसलों की परागण आवश्यकता और कीटनाशकों से कीट परागणकों की सुरक्षा जैसे विषयों पर ज्ञान साझा किया जाएगा। इसके अलावा मधुमक्खी पालन, विपणन अवसरों और उत्पादों के मूल्य वृद्धि के बारे में प्रतिभागियों को अवगत करवाया जाएगा। मधुमक्खी पालन और उसमें प्रयुक्त प्रौद्योगिकियों पर एक प्रदर्शनी भी विश्वविद्यालय के परिसर में प्रदर्शित की गई है।

 

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