नौणी विवि ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय विश्व जल दिवस और वन दिवस

  • पानी सबसे मूल्यवान संसाधन व पारिस्थितिकी तंत्र का एक अनिवार्य अंग : डा. भारद्वाज
  • छात्रों जंगलों के संरक्षण के प्रति दिया वचन
नौणी विवि ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय विश्व जल दिवस और वन दिवस

नौणी विवि ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय विश्व जल दिवस और वन दिवस

शिमला : डॉ. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय,नौणी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के स्पेस क्लब ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी परिसर में विश्व जल दिवस मनाया। इस समारोह का विषय ‘प्रकृति के लिए जल- 21 वीं सदी में पानी की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रकृति आधारित समाधान रहा। क्लब के सदस्यों ने राज्य में बढ़ती सतह और भूजल प्रदूषण पर प्रकाश डाला और बताया की कैसे औद्योगिक और नगर के दूषित पानी प्राकृतिक स्रोतों में प्रवेश कर रहे हैं और वनस्पतियों और जीवों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है।

इस अवसर पर पर्यावरण विज्ञान के विभागाध्यक्ष डा. एस.के. भारद्वाज ने कहा कि औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण प्रदूषित जल के प्रभावों का सामना मानव स्वास्थ्य को करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि पानी सबसे मूल्यवान संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र का एक अनिवार्य अंग है, लेकिन अगर समय रहते इसका महत्व नहीं समझा गया तो साफ पानी जल्दी ही एक दुर्लभ वस्तु बन जाएगा।

डा. एम.के. ब्रह्मी और डा. अजय सिंह ने प्रकृति के संरक्षण, वन संपदा का उपयोग और पानी की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने की आवश्यकता की बात कही। सर्गुन कौर ने बताया कि भारत में, प्रति घर में प्रति दिन 150 से 200 लीटर पानी की खपत होती है। यह आकड़े हिमाचल प्रदेश में 135 लीटर प्रतिदिन शहर में और 90 लीटर ग्रामीण इलाकों में है जिसे 20 से 30 लीटर तक घटाया जा सकता है। इसके लिए सिर्फ सरल जीवन शैली परिवर्तनों को अपनाने की जरूरत है।

विश्वविद्यालया के छात्रों और कर्मचारियों ने अंतरराष्ट्रीय वन दिवस भी मनाया और जंगलों के संरक्षण के प्रति वचन दिया। अपूर्वा शर्मा ने पानी के संरक्षण के लिए कई तरीकों का विवरण दिया, जिसमें शौचालयों में संशोधित फ्लश सिस्टम का इस्तेमाल और स्नान के दौरान अलार्म का उपयोग ताकि पानी की खपत को कम किया जा सके। इस मौके पर विश्वविद्यालय के 16 विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसके तहत उनके संबंधित प्रयोगशालाओं में आसुत जल बनाने की प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न जल के अपव्यय को कम किया जा सके और प्रक्रिया के दौरान उत्पादित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग किया जा सके।

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