टमाटर की फसल पर मौसम आधारित फसल बीमा योजना 31 जूलाई तक लागू

शून्य लागत प्राकृतिक खेती के उत्साहजनक परिणाम

शिमला: डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में शून्य लागत प्राकृतिक खेती के परीक्षणों के साथ जुड़े वैज्ञानिकों ने इस मॉडल के अंतर्गत लगाई गई पहली फसल की कटाई की। इस हफ्ते, विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के शून्य लागत प्राकृतिक खेती फार्म में मटर की पहली फसल निकाली गई और परिणाम काफी उत्साहजनक रहे। फ़ील्ड स्टाफ ने पूरी तरह इस प्राकृतिक खेती मॉडल पर विकसित मटर को तोड़ा। अगर निकाले गए मटर से हिसाब लगाए तो लगभग पाँच क्विंटल/एकड़ की दर से मटर मिला। इस प्रोग्राम से जुड़े वैज्ञानिकों को मटर की फसल दो से तीन बार मिलने की उम्मीद है।

नौणी विश्वविद्यालय ने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल और विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य देवव्रत के   निर्देश पर विश्वविद्यालय में शून्य लागत प्राकृतिक खेती पर परीक्षण शुरू किए थे। शोध दल ने खेत में दो किस्म के मटर लगाए थे। पहली किस्म पी-89 थी जबकि दूसरी किस्म आजाद पी-1 को 15 दिन बाद लगाया गया था। दोनों किस्मों में धनिया को सीमा फसल के रूप में लगाया गया, जो इस सप्ताह के अंत तक बिक्री के लिए तैयार होगी।

बीजों को बीजामृत से अच्छी तरह से शुद्ध कर बोया गया। हर 15 दिन में जीवामृत की स्प्रे की गई। इस मॉडल के तहत मटर की दोनों किस्मों के प्रदर्शन का भी मूल्यांकन किया जा रहा है। विश्वविद्यालय में शून्य लागत प्राकृतिक खेती के समन्वयक और संयुक्त निदेशक (वानिकी) डा॰ राजेश्वर चंदेल ने बताया कि परिणाम बहुत उत्साहजनक रहे हैं और हम इस विधि के तहत फसल क्षेत्र को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। आने वाले समय में टमाटर और शिमला मिर्च जैसी फसलों पर भी इस प्राकृतिक खेती के काम किया जा सके।

उन्होनें बताया की प्रत्येक पौधे में चार से आठ फली आई है। खेत में कोई भी कीट और बीमारी की घटना दर्ज नहीं की गई थी जबकी मटर में आम तौर पर लीफ़ माईनर कीट, इस फसल को नुकसान पहुंचाता है। काटी गई फसल अब स्थानीय लोगों को बेची जाएगी और फसल गुणवत्ता पर उनकी प्रतिक्रिया ली जाएगी। मटर के अलावा, विश्वविद्यालय ने फूलगोभी,प्याज और मेथी को भी इस मॉडल के तहत लगाया है और महीने के अंत तक इनकी भी फसल तैयार हो जाएगी। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभाग भी अपने शोध में इस प्राकृतिक कृषि मॉडल के तहत अध्ययन कर रहे हैं।

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