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चौहार घाटी का प्रसिद्ध देव पशाकोट

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देव पशाकोट

देव पशाकोट मंदिर – यह मंदिर टिक्कन पुल के समीप लगभग 1 किलोमीटर दूर स्थित है। देव पशाकोट चौहार घाटी के प्रमुख देवता हैं। लोग यहां पूजा करने, मन्नत मांगने, स्थानीय समस्याओं के परामर्श एवं समाधान के लिए देवता के पास आते हैं। लोग देव पशाकोट का धन्यवाद करने व पिकनिक मनाने के लिए भी यहां आते हैं। मंदिर के चारों और सुन्दर दृश्यावली है। पास ही छोटी जलधारा बहती है। बहुत ही रमणीय व रोमांचक जगह है।
प्राचीन मंदिर – देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर देवगढ़ गांव में हैं। टिक्कन से ही यहां के लिए सडक़ जाती है। मंदिर निर्माण की पैगोड़ा शैली में बना यह मंदिर एक खूबसूरत स्थान पर स्थित है। गत वर्ष 65 लाख रुपये की लागत से एक नया मंदिर पुराने मंदिर के साथ ही बनाया गया हैं जो कि देखने योग्य है। काष्ठ शैली से निर्मित देवता के नए मंदिर को देवदार व कायल की लकड़ी से बनाया गया है। इस मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य मंदिर कमेटी द्वारा करवाया गया है। लोगों के भारी सहयोग तथा कमेटी के अथक प्रयासों से इस निर्माण कार्य को पूरा किया गया। इस मंदिर के निर्माण में देवदार तथा कैल की लकड़ी का प्रयोग किया गया है। धनराशी का प्रबंध कमेटी द्वारा मंदिर के चढ़ावे से तथा लोगों के सहयोग से किया गया है। उपमंडल पद्धर की चौहारघाटी के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल देव पशाकोट के 600 वर्ष पुराने मंदिर के स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। कुछ समय पूर्व पुरानी सराय में निवास कर रहे देव पशाकोट नए मंदिर का निर्माण पूरा होने पर विधिवत नए मंदिर में विराजमान हो गये। 600 वर्ष पुराने मंदिर का जीर्णोद्वार करके नए मंदिर का निर्माण किया गया है। चौहार समेत पूरे प्रदेश में देव पशाकोट की साक्षात देवता के रूप में लोग पूजा करते हैं।

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देव पशाकोट मंदिर का मुख्य द्वार

देव पशाकोट के आदेशानुसार कारीगरों को करना पड़ा था खाली पेट मंदिर निर्माण कार्य

मंदिर के निर्माण में सामान्य से अधिक समय लगा क्योंकि देव पशाकोट के आदेशों से इस निर्माण में इन कारीगरों को खाली पेट ही कार्य करना पड़ता था। भोजन कर लेने के बाद निर्माण कार्य करने की इजाजत नहीं थी। इस मंदिर का निर्माण काष्ठ कुणी शैली से किया गया है। मंदिर के मुख्य दरवाजे पर उकेरे गए भगवान शिव तथा हनुमान के चित्रों की भाग-भंगिमा में इन शक्तियों के साक्षात्कार रूप का आभाष होता है। काष्ठ कला की तमाम आकृतियां बालीचौकी क्षेत्र के रहने वाले कारीगर छरिंद्र कुमार ने बनाई गई है। प्रदेश में अति प्राचीन काष्ठकुणी शैली को जीवित रखने में अब कुल्लू तथा मंडी जिला के ही कुछ कारीगरों का सहयोग मिल पाता है। इस निर्माण में विशुद्ध रूप से लकड़ी तथा स्थानीय पत्थरों का प्रयोग होता है। देव पशाकोट के इस सदियों पुराने मंदिर को जाने वाले रास्तों की हालत भी बेहद खस्ता है। थल्टूखोड़ गांव में संस्था के पास से मंदिर को जाने वाले रास्ते का हाल बेहाल है।

देव पशाकोट से जुड़ी एक पुरातन कथा

चौहार घाटी का प्रसिद्ध देव पशाकोट मंदिर जोगिन्दर नगर से 31 किलोमीटर की दूरीपर स्थित है। यह मंदिर लोहारड़ी से 10 -15 किलोमीटर की दूरी पर मराड़ नामक स्थान पर स्थित है। देव पशाकोट मंदिर से एक पुरातन कथा जुडी हुई है। बहुत समय पहले एक लडक़ी मराड़ में पशुओं को चराने जाती थी। वहीं पर एक सरोवर था। वह लडक़ी वहां पर पानी पीती थी। जब भी वह लडक़ी उस सरोवर में पानी पीती तभी कहीं से आवाज सुनाई देती । गिर जाऊं, गिर जाऊं  इसी तरह दिन बीतते गये और लडक़ी कमजोर होती गई। एक दिन लडक़ी की मां ने उससे पूछा बेटी तुम दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही हो। लडक़ी ने सारी बात अपनी मां को बताई। माँ ने बेटी से कहा, तुम कहना कि गिर जाओ। अगले दिन लडक़ी पशुओं को लेकर उसी जगह चली गई। वह सरोवर में पानी पीने ही लगी थी कि आवाज आई गिर जाऊं लडक़ी ने कहा, गिर जाओ। लडक़ी के ये कहते ही पहाड़ गिर गया। मूसलाधार बारिश हुई और वहां से लडक़ी गायब हो गई। लडक़ी पानी में बहती हुई टिक्कन आ पहुंची। इसी जगह नदी के किनारे देव-पशाकोट मंदिर है। कहा जाता है कि पशाकोट देव ने उस लडक़ी से विवाह किया था। बहुत दिनों के बाद वह लडक़ी अपनी मां के घर गई। लडक़ी ने अपनी मां को सारा वृतांत सुनाया। लडक़ी ने अपनी मां के घर में ही सांपों को जन्म दिया। यह देखकर लडक़ी की मां डर गई और उसने उन सांपों को मारना चाहा  लेकिन देखते ही लडक़ी और सांप वहां से गायब हो गये। लडक़ी और सांप टिकन आ पहुंचे। यहीं सांप देव महानाग, देव अजियापाल, देव ब्रहमा आदि के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि देव पशाकोट सांप का रूप धारण करके नदी से होके अपने ढोल–नगाड़ों के साथ मराड़ जाते हैं । प्रत्येक तीन साल के बाद मराड़ में मेला होता है। लोहारडी के आसपास ग्यारह गांव है। प्रत्येक गांव के हर घर के एक सदस्य को मराड़ में जाना जरूरी है। लोग यहां पर जाकर चढ़ावा चढ़ाते हैं। जो लोग यहां पर मन्नत मांगते है देव पशाकोट उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। यहां के स्थानीय लोगों में यह देव पशाकोट बहुत प्रसिद्ध हैं। मराड़ में एक फटा हुआ पत्थर है जिस में सांप दिखाई देते है। जब देव पशाकोट मराड़ से नदी में से ढोल–नगाड़ों के साथ टिक्कन वापिस आते हैं तो स्थानीय लोगों को ढोल–नगाड़ों की ही आवाज सुनाई देती है कुछ दिखाई नही देता है। देव पशाकोट जब मराड़ से टिक्कन वापिस आते हैं तो वे कुछ लोगों को सांप के रूप में दर्शन देते हैं लोग इनके दर्शनों को टिक्कन भी जाते हैं। टिक्कन में देव पशाकोट का मंदिर सुंदर व घने देवदार वृक्षों के नीचे लकड़ी का बना हुआ है। दूर-दूर से लोग मनचाही कामनाओं की पूर्ति के लिए यहां नतमस्तक होते हैं।

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