डा. उमेश भारती के शोध से देश-प्रदेश व विश्व भर को होगा फायदा

डा. उमेश भारती के शोध से देश-प्रदेश व विश्व भर को होगा फायदा

  • डा. उमेश भारती के शोध से देश-प्रदेश व विश्व भर को होगा फायदा
  • भारत के लिए यह गर्व का विषय : जे.पी. नड्डा
  • रैबीज इम्युनोग्लोबिन सीरम को घाव पर लगाने से जल्द होगा असर, दवाई की मात्रा भी लगेगी कम
  • पागल कुत्ते और बंदर के काटने पर अब सस्ते में आसानी से होगा मरीजों का ईलाज

शिमला : जीवन में अगर कुछ करने की चाह हो तो राह मिल ही जाती है। ऐसा ही कुछ कर गुजरने की चाह लिए डॉ. भारती ने एक ऐसा शोध किया है जो हिमाचल के साथ-साथ देश व विदेश के लिए गर्व व काबिले तारीफ का विषय है। प्रदेश में रोजाना कुतों व बन्दरों के काटने के मामले सामने आते थे और लोगों के लिए इसका उपचार करवाना काफी मंहगा पड़ता था, तो वहीं कुछ लोगों के लिए इसका मंहगा ईलाज करवाना आसान नहीं हो पाता था। प्रदेश में आए दिन बढ़ रहे इस तरह के मामलों को देखकर डा. उमेश भारती काफी चिंतित थे। इसी उदेश्य से उन्होंने कुछ ऐसा करने का सोचा जिससे लोगों को सस्ता ईलाज मिल सके और घाव भी जल्दी ठीक हो तथा इसका फायदा न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश को मिल सके।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने डॉ. उमेश भारती को इस सफलता पर जहां शुभकामनाएं दीं, वहीं उन्होंने कहा कि भारत के लिए यह गर्व का विषय है

इस शोध पर कार्य कर सफल हुए शिमला के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में कार्यक्रम अधिकारी व स्टेट मास्टर ट्रेनर इंट्राडर्मल एंटी रैबीज वेक्सीनेशन के पद पर कार्यरत डा. उमेश भारती ने हिम शिमला लाइव को जानकारी देते हुए बताया कि वे इस प्रोजेक्ट पर करीब पिछले 17 वर्षों से कार्य कर रहे थे। जिस पर उन्हें सफलता मिली। काफी मरीजों पर इसका प्रयोग किया। वर्ष 2014 में 269 मरीजों पर इस सीरम का उपयोग किया जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। इस सीरम के प्रयोग करने से मरीजों के खून में किसी भी तरफ का वायरस नहीं पाया गया। डा. भारती ने सस्ते इलाज के लिए अपने स्तर पर पुलिंग सिस्टम भी शुरू किया था। घाव पर सिरम लगने से दवाई कम लगती थी। दवाई की शीशी में इंजेक्शन के बाद काफी दवाई बच जाती थी। उसे फेंकने के बजाए वे अन्य मरीजों में इसे लगा देते थे। ताकि इसका खर्चा मरीजों पर कम आए।

उन्होंने बताया कि पागल कुत्ते और बंदर के काटने पर अब मरीजों का ईलाज सस्ते में आसानी से हो सकेगा। पागल कुत्ते और बंदर के काटने पर एंटी रैबीज की वैक्सीन स्किन में लगाने के अलावा सीरम को घाव और मसल्स (मांसपेशियों) में लगाया जाता था। डा. भारती के शोध ने ये साबित कर दिया है कि रैबीज इम्युनोग्लोबिन सीरम को सिर्फ घाव पर लगाया जाए तो ये जल्द असर भी करता है और दवाई की मात्रा भी कम प्रयोग होगी। यानि ईलाज सस्ता होने के साथ दवाई भी कम लगेगी। 30 से 35 हजार में होने वाला इलाज 350 से 400 रुपए में संभव होगा।

सीरम घोड़े और आदमी के खून से बनती है। इसकी उपलब्धता बहुत कम है। जब मांसपेशियों में लगाया जाता था तो इसकी मात्रा करीबन 10 मिलीलीटर के आसपास रहती थी जो अब घाव में लगाने से अब 1 मिलीलीटर रह गई, जिससे इसकी उपलब्धता और खर्च पर विश्व स्तर पर भारी गिरावट और कमी आई है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने डा. उमेश भारती के इस शोध को विश्व स्तर पर मान्यता दे दी है। डा. भारती ने बताया कि इस शोध के लिए स्वास्थ्य विभाग का उन्हें पूरा सहयोग मिला है तो वहीं उन्हें निम्हेंस के स्वर्गीय डॉ. मधुसूदन और थाइलैंड में डब्लूएचओ के कंसलटेंट डॉ. हैनरी वाइल्ड ने भी इस शोध के लिए अपना तकनीकी सहयोग दिया। बैंग्लोर के निम्हेंस से टेकनिकल क्लीयरेंस के बाद हिमाचल में इसका प्रयोग 2014 से शुरू हो चुका था। डब्ल्यूएचओ की मान्यता के बाद अब देश दुनिया में भी इस सीरम का प्रयोग होगा।

राज्य में बंदरों और कुत्तों के काटने के साल भर में चार से पांच हजार मामले सामने आते हैं। राजधानी शिमला में ही रोजाना 15 से 20 मामले अस्पताल में पहुंचते हैं।  भारत में हर 2 सेकंड में एक व्यक्ति किसी जानवर द्वारा काटे जाने का शिकार बनता है और हर आधे घंटे पर एक व्यक्ति रेबीज की चपेट में आकर मौत के मुंह में चला जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन  और  भारत और में रेबीज की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एसोसिएशन के अनुसार, रेबीज से प्रति वर्ष 20,565 मौतें होतीं हैं। रेबीज से मरने वाले अधिकांश लोग गरीब तबके के होते हैं या जो लोग सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से बहुत ही कमजोर होते हैं।

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