“महाशिवरात्रि” पर बन रहा है अद्भुत संयोग : कालयोगी आचार्य महेंद्र शर्मा
“महाशिवरात्रि” पर बन रहा है अद्भुत संयोग : कालयोगी आचार्य महेंद्र शर्मा
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महाशिवरात्रि व्रत कथा :
महाशिवरात्रि व्रत कथा
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ शिवजी ने पार्वती जी को ‘महा शिवरात्रि’ की व्रत कथा सुनाई –
प्राचीन काल में ,किसी जंगल में गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था। वह वन्यप्राणियों का शिकार कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। वह एक बार जंगल में अपने कुत्तों के साथ शिकार के लिए गया। पूरे दिन परिश्रम के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला। भूख प्यास से पीड़ित होकर वह रात्रि में जलाशय के तट पर एक वृक्ष के पास जा पहुंचा जहां उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। अपने शरीर की रक्षा के लिए शिकारी ने वृक्ष की ओट ली लेकिन उनकी जानकारी के बिना कुछ पत्ते वृक्ष से टूटकर शिवलिंग पर गिर पड़े। उसने उन पत्तों को हटाकर शिवलिंग के ऊपर स्थित धूलि को दूर करने के लिए जल से उस शिवलिंग को साफ किया। इस प्रकार अज्ञानवश शिवलिंग की पूजा भी हो गयी।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी जलाशय पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर ज्यों ही तीर खींची, हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही लौट आऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी प्रसन्न हो तीर सांधने लगा और ऐसा करते हुए ,उसके हाथ से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अज्ञानवश शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी| इस हिरणी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर ,हिरनी ने उसे लौट आने का वचन दिया।शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट हिरण उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर हिरण विनीत स्वर में बोला,’ यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली हिरणियों तथा बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’ उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का अंजाने में ही शिव जी की पूजा हो गई और शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया, जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल भी भस्म हो गए। धनुष तथा बाण उसके हाथ से स्वतः ही छूट गए। भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। तब शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे तथा तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
निष्कर्ष: इस प्रकार प्राणी के द्वारा अज्ञानवश या ज्ञानपूर्वक किए गए शिवरात्रि की पूजा से भी शिव जी की कृपा प्राप्त होती है।