सराहन में गिरा था सती का कान, जिससे प्रकट हुईं “माता भीमाकाली”

दैत्यों का वध करने के लिए मां दुर्गा के अनेकों अवतार ; सराहन में गिरा था सती का कान, जिससे प्रकट हुईं “माँ भीमाकाली”

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण सराहन 

मार्कण्डेय पुराण में “माता भीमाकाली” वर्णन

मार्कण्डेय पुराण में वर्णन : राक्षसों के विनाश के लिए मैं हिमाचल भूमि में भीम रूप में प्रकट होऊँगी

…तब मेरा नाम “भीमा काली” के रूप में होगा विख्यात

रामपुर तहसील के बशलकण्डा, थारलूधार, कण्डीधार एवं किंगणीधार की ढलानों की तलहटी में स्थित सराहन प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थान है। रामपुर से 44 और शिमला से 182 किलोमीटर की दूरी पर इस स्थान पर भीमाकाली का मंदिर पुरातत्व की अद्वितीय कृति है। मार्कण्डेय पुराण में वर्णन आता है कि दैत्यों का वध करने के लिए मां दुर्गा ने अनेक अवतार लेते हुए कहा था कि मैं हिमाचल भूमि में भीम रूप में प्रकट होकर ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए राक्षसों का भक्षण अर्थात विनाश करूंगी। उस समय सब मुनिजन भक्तिभाव से नतमस्तक होकर मेरी स्तुति करेंगे और तब मेरा नाम भीमा देवी के रूप में विख्यात होगा।

सराहन में गिरा था सती का कान, जिससे प्रकट हुई “माता भीमाकाली”

मार्कण्डेय पुराण में “माता भीमाकाली” वर्णन

मार्कण्डेय पुराण में “माता भीमाकाली” वर्णन

सराहन में भीमाकाली के स्थापित होने के सम्बंध में कहा जाता है कि यहां पर भीमगिरि नाम के सन्त ने काफी समय तक तपस्या की थी। उसके पास एक लाठी थी, जिसमें भीमाकाली को स्थापित किया हुआ था। तपस्या करने के बाद जब वह वहां से जाने लगा तो लाठी इतनी भारी हो गई थी कि वह उसे उठा न सका। वह समझ गया कि देवी वहीं रहना चाहती हैं। भीमगिरि के आग्रह पर राजा ने देवी को अपनी कुलज मानकर वहीं पर स्थापित किया। तब से ही बुशहर रियासत का राजवंश इसे अपनी कुलदेवी मानने लगा। लोकश्रुति में यह भी माना जाता है कि सती का कान सराहन में गिरा था जिसके कारण यहां पर माता भीमाकाली प्रकट हुई थीं। बुशहरी राजा देवी सिंह ने सराहन में देवी के लिए सुंदर मंदिर बनाकर परिसर में ही लांकड़ा वीर को भी स्थापित किया था।

देवी की मूल प्रतिमा अभी भी पुराने मंदिर में

मंदिर के कपाट चांदी से मढ़े हुए

चांदी के पतरों पर बनी हिंदू देवी-दवताओं की मूर्तियां

मंदिर पहाड़ी स्थापत्य शैली में बना है। पुरातत्ववेताओं के अनुसार यह सातवीं-आठवीं शती का बना है। मंदिर के विशाल परिसर में भवनों के मध्य तीन प्रांगण बने हैं, जिनका निर्माण आरोही क्रम में एक के बाद दूसरे की ऊंचाई की ओर बढ़ाते हुए है। सबसे ऊंचे स्थान में माता भीमाकाली के चार मंजिला दो भव्य मंदिर कोट शैली में बने हैं, जिनमें एक पुराना तथा दूसरा नया है। पुराना मंदिर टेढ़ा दिखता है। वर्ष 2007 में पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। देवी की मूल प्रतिमा अभी भी पुराने मंदिर में है, जिसके दर्शन नहीं किए जाते। नये मंदिर में सन् 1962 ई. में मूर्ति की स्थापना की गई है। मंदिर के कपाट चांदी से मढ़े हुए हैं। चांदी के पतरों पर हिंदू देवी-दवताओं की मूर्तियां बनाई गई हैं। एक प्रांगण से दूसरे प्रांगण के लिए बने प्रवेश द्वार भी इसी प्रकार अलंकृत किए गए हैं।

प्रांगण तथा प्रवेश द्वारों को सन् 1927 में बनाया गया है। प्रथम प्रांगण के दोनों ओर के प्रवेश द्वार पीतल के पतरों से मढ़े गए हैं। आंगन में पत्थर के स्लेट बिछाए गए हैं। मंदिर की दीवारें काठकुणी शैली में लकड़ी और पत्थर की चिनाई से की गई है। छतें स्लेटों से आच्छादित ढलानदार हैं। पुजारी के अनुसार पहले यह राजाओं का निजी देवालय था। अब यह मंदिर सबके लिए सुलभ है। भीमाकाली की मूल मूर्ति का निर्माण यहां से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गमसोट की गुफा में किया गया था, जिसे 200 साल पहले वर्तमान मंदिर में स्थापित किया गया था। मूर्ति की ऊंचाई लगभग 4 फुट है। मूर्ति के दोनों ओर चामुंडा, ब्रजेश्वरी, अन्नपूर्णा, गणेश, शिव-पार्वती तथा गौतम बुद्ध की मूर्तियां भी रखी गई हैं।

इनके अतिरिक्त मंदिर न्यास की देखरेख में श्री दुर्गा मंदिर शराईकोटी, श्री रघुनाथ मंदिर, अयोध्यानाथ मंदिर, बौद्धमंदिर, श्री जानकीमाई गुफा, श्री रघुनाथ मंदिर बड़ा अखाड़ा, नृसिंह मंदिर रामपुर बुशहर, दत्तात्रेय मंदिर दत्तनगर आदि शामिल हैं। भीमाकाली मंदिर के अतिरिक्त सराहन में नागर शैली में निर्मित श्री रघुनाथ मंदिर तथा नृसिंह मंदिर भी दर्शनीय हैं। रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू से आई है तथा नृसिंह की मूर्ति बुशहर के राजाओं ने यहां स्थापित की है। श्रद्धालु पर्यटकों के अतिरिक्त पर्यटक, ट्रैकर, प्रकृति प्रेमियों के लिए सराहन में सब कुछ है। मंदिर सराय के अलावा पर्यटन निगम तथा निजी होटलों में रहने की सुविधा उपलब्ध रहती है।

बाणासुर ने बनाया था सराहन

सराहन का पुराना नाम शोणितपुर था। यह बाणासुर की राजधानी थी। बाणासुर भक्त प्रहृलाद के पौत्र बलि राजा के सौ पुत्रों में से सबसे बड़ा था। उसने अपने राज्य की बागडोर श्रीकृष्ण के पुत्र एवं अनिरूध के पिता प्रद्युम्र को सौंपी थी। प्रद्युम्र शोणितपुर का राजा बना। राजा छत्र सिंह के समय बुशहर की राजधानी स्थायी रूप से कामरू से सराहन स्थानांतरित हुई। एक समय सराहन होकर ही किन्नौर को रास्ता जाता था। ट्रैकिंग रूट अब भी सराहन होकर है। कामरू के बाद यह रामपुर रियासत की पुरानी राजधानी थी। सन् 1550 ई. के आसपास राजा रामसिंह ने ही सराहन से अपनी राजधानी रामपुर लाई थी और उनके नाम से ही इसका नाम रामपुर बुशहर पड़ा। सन् 1554 ई. में लवी मेले के लिए रामपुर के राजा केहरी सिंह और तिब्बती शासकों के बीच व्यापारिक संधि हुई।

: लेखक : डॉ. सूरत ठाकुर

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