"श्री रघुनाथ" मन्दिर कुल्लू का इतिहास

“श्री रघुनाथ” मन्दिर कुल्लू का इतिहास

मूर्तियों के चमत्कार देखकर कुल्लू के सभी तीन सौ पैंसठ देवी-देवता दर्शनों को आए

 मूर्तियों के चमत्कार देखकर कुल्लू के सभी तीन सौ पैंसठ देवी-देवता दर्शनों को आए

मूर्तियों के चमत्कार देखकर कुल्लू के सभी तीन सौ पैंसठ देवी-देवता दर्शनों को आए

वैष्णव धर्म के पोषक कृष्णदास पयहारी महात्मा संत, कवि तथा वैष्णव धर्म के प्रचारक थे। उन्होंने राजा को अपना भक्त बना लिया। अपने गले की कंठी उतारकर उसे पहना दी। उन्होंने यहां नाथों के बढ़ते हुए प्रभाव को देखा। अपनी सिद्धि द्वारा अनेक अचम्भे दिखाकर नाथों की शक्ति को कम करने में समर्थ हुए तथा घाटी में वैष्णव धर्म के प्रचार के उद्देश्य में सफल हुए। उस समय से श्रीरामचंद्र जी कुल्लू के प्रखान देवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। मूर्तियों के चमत्कार को देखकर कुल्लू के सभी तीन सौ पैंसठ देवी-देवता श्री रघुनाथ जी के दर्शनों को आए। वैष्णव संप्रदाय के सभी उत्सव मंदिर में मनाए जाने लगे। मकड़हार गांव अयोध्या, ब्रज एंव मथुरा की अनूठी संस्कृति का संगम स्थल बन गया। मकड़हार से इन मूर्तियों को तीर्थस्थल मणिकर्ण ले जाया गया। वहां कुछ समय तक इन्हें श्रीराम मंदिर में रखा गया। राजा जगतसिंह ने 1645-50 के लगभग सुलतान पुर के राजा सुलतानचंद तथा उसके भाई लग के राजा जोगचंद को मारकर उनके क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया। सुलतानपुर में राजमहल बनवाए। श्री रघुनाथ मंदिर का निर्माण भी करवाया।

पैंतालीस के लगभग उत्सव मनाए जाते हैं यहां

आज भी जगतसिंह के वंशज का बड़ा सुपुत्र श्री रघुनाथ जी का छड़ीदार

सन् 1660 ई. में अपनी राजधानी से लगाई हुई मूर्तियों को मणिकर्ण से सारू-मारू के रास्ते होते हुए रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया। मंदिर की प्रतिष्ठा हेतु विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया। राजा ने अपने अधीन क्षेत्र के देवी-देवताओं के नाम जागीरें कर दीं। श्री रघुनाथ मंदिर के निकट के बाजार का नाम कालान्तर के रघुनाथ पड़ गया। यहां पैंतालीस के लगभग उत्सव मनाए जाते हैं। विजयादशमी की गणना प्रमुख उत्सवों में है। आज भी राजा जगतसिंह के वंशज एवं राज परिवार का बड़ा सुपुत्र श्री रघुनाथ जी का छड़ीदार सेवक कहलाता है और उसकी उपस्थिति हर उत्सव में अनिवार्य है। सभी उत्सव परम्परागत तरीके से इस मंदिर में मनाए जाते हैं। इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक हर साल यहां आते हैं। यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर कुल्लू शहर के मध्य मे मुख्य बस स्टैंड से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान विजयदशमी की स्थल ढालपुर मैदान राजा जगत सिंह की रानी के धान के खेत थे जो कि उत्सव के लिए दान स्वरूप दिए गए जिसका राजस्व रिकार्ड प्रमाण है।

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