अपने इतिहास, संस्कृति व पर्यटन के लिए विख्यात… “डोडरा-क्वार”

डोडरा-क्वार की सांस्कृतिक यात्रा

खेत-खलियान और बड़े-बड़े हरे पेड़ पौधों में अपनेपन का एहसास

डोडरा-क्वार की सांस्कृतिक यात्रा

डोडरा-क्वार की सांस्कृतिक यात्रा

हिमाचल अपने सौंदर्य, इतिहास,संस्कृति व पर्यटन के लिए अपनी विश्वभर में शानदार पहचान बनाए हुए है। ये ही वजह है कि यहां आने वाले पर्यटक बार-बार आने की चाह रखते हैं। यूँ भी आपको अगर यदि पहाड़ों के असली सौंदर्य और रंग-बिरंगी लोक-संस्कृति के दर्शन करने का सच्चा लुत्फ उठाना हो तो उसके लिए हिमाचल प्रदेश के दूर-दराज के गांवों में जाइए। वहां के खेत-खलियान और हरे पेड़-पौधे अपनेपन का एहसास दिलाते हुए मिलेंगे। जो भी पथिक यहां के गांवों में भ्रमण करता है, वह अपने साथ यहां की सुखद अनुभूतियों को समेटकर अपनी यात्रा को सफल बनाकर दोबारा आने की लालसा लिए हुए वापस लौटता है।

डोडरा में फाफरा, चुलाई, कोदा तथा राजमा की मुख्य फसलें

लोगों का रहन-सहन साधारण

मंदिर के दरवाजों में अनगिनत सिक्के श्रद्धालुओं द्वारा चिपकाए हुए

रोपण खड्ड के दायीं तरफ समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है डोडरा। डोडरा पंचायत में पुजारली तथा चमडार गांव शामिल हैं। इस पंचायत में 232 हैक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार इस गांव की जनसंख्या 1006 है। डोडरा में फाफरा, चुलाई, कोदा तथा राजमा की मुख्य फसलें होती हैं। लोगों का रहन-सहन साधारण है। यहां के लोग मेहमानों का विशेष ध्यान रखते हैं। लोकनृत्यों के प्रति विशेष रूझान है। गांव के बीच में सतलुज शैली में बना जाख देवता का तीन मंजिला पुरातन मंदिर पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण और पूर्णत: सुरक्षित है। मंदिर के तोरण द्वार की लकड़ी पर भगवान विष्णु की मूर्ति उकेरित थी। दरवाजों में दस, बीस, पच्चीस और पचास पैसे के अनगिनत सिक्के श्रद्धालुओं द्वारा चिपकाए हुए हैं।

गांव का प्रमुख उत्सव फाग

मंदिर के अन्दर की मूर्ति पर रखे कंवल फूल को बर्फ के गोलों से गिराने का प्रयत्न

इस गांव का प्रमुख उत्सव फाग फागुन मास में मनाया जाता है। माघ 15 को देवता का गूर भारथा सुनाता है और उसी दिन फाग उत्सव का दिन निश्चित किया जाता है। डोडरा में नंदवाण, जेतवाण, भुगवाण तथा परवाण इस चार खानदान के लोग रहते हैं। इन्हीं खानदान के लोग ही फाग उत्सव में मुख्य भूमिका निभाते हैं। जेतवाण खानदान के 17 परिवार हैं, इनमें से हर घर से एक व्यक्ति ओइड़ा बनता है। ओइड़ा एक दिन पूर्व एकांत में सोता है और दूसरे दिन प्रात: उठकर जब वह घर लौटता है तो उसे देवी के नाम से तैयार की गई सूर की बोतल दी जाती है, जिसे वह मांस अथवा सब्जी के साथ ग्रहण करता है। उसके बाद गांव के लोग उसके पास आकर उसे सफेद लट्ठे की पगड़ी बांधती हैं। उस समय उस घर के आंगन में वाद्य वादन होता है। तत्पश्चात ओइड़ा और गांव वाले गांव के मध्य एक निश्चित स्थान पर एकत्र होते हैं। वहां पर भी उसे सूर पिलाई जाती है। शाम के समय सभी ओइड़े अपनी-अपनी खुखरी और थैलेनुमा वस्त्र लेकर गांव के उत्तरी भाग की ओर प्रस्थान करते हैं। वहां पर बर्फ के गोलों को अपने थैलों में भरकर बिना बात किए गाजे-बाजे के साथ गांव लाया जाता है। मंदिर में पहुंचने पर हवा में बंदूक से फायर किया जाता है। मंदिर की दीवार पर बने छेद से मंदिर के अन्दर की मूर्ति पर रखे कंवल फूल को बर्फ के गोलों से गिराने का प्रयत्न करते हैं। फिर सभी गांव वाले आपस में बर्फ से खेलते हैं। उसके बाद सभी ओइड़े माला में नाचते हैं, और नंदवाण खानदान का एक व्यक्ति उनकी खुखरी लेकर और उन्हें घर ले जाकर सूर से उनकी सेवा करते हैं। तीन-चार दिन तक खाने-पीने का दौर चलता है। स्त्रियां नाटी में व्यस्त हो जाती हैं।

पूरी तहसील में देवता जाख की मान्यता

जाख देवता का मंदिर गांव के बीचों-बीच

डोडरा-क्वार की संस्कृति बड़ी रूचिकर है। पूरी तहसील में देवता जाख की मान्यता है। देवता के कर्मचारियों में पूजगी, कारदार, गूर तथा हलबंदी अर्थात चौकीदार मुख्य हैं। जाख देवता का मंदिर गांव के बीचों-बीच बना हुआ एक छोटा सा मंदिर है। देवता अधिकतर जाख गांव में ही रहता है। कभी-कभी जिशकुन के मंदिर में भी देवता की पालकी लाई जाती है। जिशकुन गांव के ठीक सामने उत्तर की ओर 6 किलोमीटर की दूरी पर धारा और काखा से पीछे रोपण जोत होते हुए सांगला घाटी को पैदल रास्ता है।

जाख देवता का सम्बन्ध किन्नौर के वेरिंग नाग के साथ

स्थानीय लोगों के अनुसार जाख देवता का सम्बन्ध किन्नौर के वेरिंग नाग के साथ है। दोनों देवता एक-दूसरे के यहां आते-जाते रहते हैं। डोडरा के बाद जाखा दूसरी पंचायत है, जहां देवता जाख को पूजा जाता है। जाख पंचायत पंचायत के अन्तर्गत बाउटा, पंडार, जिशकुन,जाखा, धारा तथा मटयान्टु गांव पड़ते हैं। जाखा और धारा गांव में प्राथमिक विद्यालय तथा जिशकुन में मिडल स्कूल स्थित है।

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